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उर के उफानों में ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
सकल सिकुड़न गात अकड़न, छोड़ सब संकोच जाती; मानसिक परिधि परे जा, वृत्तियाँ मृदु मधुर होती !