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ऊर्ध्व हर विन्दु रहा अवनी तल ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
ऊर्ध्व हर विन्दु रहा अवनी तल, गोल आकार हुआ प्रति-सम चल; जीव उत्तिष्ट शिखर हर बैठा, रेणु कण भी प्रत्येक है एेंठा ! कम कहाँ किसी से रहा कोई, लगता पृथ्वी पति है हर कोई; देख ना पाता कौन इधर उधर, समझता स्वयं को महा भूधर ! अधर फैला हुआ…