अमेरिका-ईरान तनाव और भारत के हित

दुलीचंद कालीरमन

 पिछले कई महीनों से पश्चिम एशिया मैं युद्ध के जो बादल छाए हुए थे,वह जनवरी 2020 के पहले ही सप्ताह में शोले में बदल गए. जब अमेरिका ने ईरान के सुप्रीम कमांडर कासिम सुलेमानी को बगदाद हवाई अड्डे के पास ड्रोन के हमले से ढेर कर दिया. ईरानी जनता के आक्रोश को देखते हुए बदले की कार्रवाई के तहत ईरान ने भी बगदाद स्थित अमेरिकी दूतावास और इरबिल तथा अल-असद स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर मिसाइलों से हमला कर दिया. 

भारत इस संघर्ष में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं है. लेकिन वर्तमान वैश्विक-परिस्थितियों में विश्व के किसी भी कोने में होने वाले सैन्य-संघर्ष का परिणाम विश्वव्यापी होता है.  भारत इसलिए भी इससे अछूता नहीं है क्योंकि पश्चिम एशिया के देशों में लगभग 80 लाख भारतीय कार्यरत हैं. जो प्रतिवर्ष लगभग 40 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा भारत में भेजते हैं. खाड़ी युद्ध के समय भी भारत सरकार ने लाखों भारतीयों को युद्ध क्षेत्र से निकाला था. वर्तमान तनाव के बाद विदेश मंत्रालय ने निर्देश जारी कर इराक में रह रहे  नागरिकों को सतर्क रहने को कहा गया है.  भारतीय विमानन कंपनियों को भी खाड़ी के देशों के हवाई-क्षेत्र को प्रयोग करने से बचने का सलाह दी गई है.

भारत कच्चे तेल के आयात के मामले में पश्चिम एशिया के देशों पर निर्भर है. अमेरिका ने ईरान पर पहले ही आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं. इस कारण भारत भी उससे ज्यादा कच्चा तेल आयात नहीं कर रहा है. फिर भी इस क्षेत्र में अस्थिरता का प्रभाव कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी के रूप में  होगा. भारत  80 से 85  प्रतिशत कच्चा-तेल आयात करता है. कच्चे तेल के दामों में तेजी भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी. यह संतोष का विषय है कि वर्तमान में विदेशी मुद्रा भंडार 457 बिलीयन डॉलर के स्तर पर है. कच्चे तेल के दाम वर्तमान संघर्ष के कारण $70 प्रति बैरल तक पहुंच चुके हैं. वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई मंदी की मार से पूरा विश्व परेशान है. भारत ने भी  चालू वित्तवर्ष मेंअपनी जीडीपी का आंकड़ा घटाकर 5% कर दिया है. भारत में बढ़ती बेरोजगारी के साथ साथ वर्तमान परिस्थितियों में महंगाई भी बढ़ेगी. जो बजट से पहले वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं. अगर  वर्तमान तनाव कम नहीं हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना वास्तविकता नहीं बन पाएगा.

 भारत से 40 हजार करोड रुपए का चावल निर्यात होता है. इसमें से 34% बासमती चावल अकेले ईरान को जाता है. पिछले साल 14 लाख टन चावल का निर्यात ईरान को किया गया था. हरियाणा राइस मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष जे. एस. सिंगला के अनुसार ईरान में तनाव की स्थिति में उत्तर भारत विशेषकर हरियाणा के राइस मिलों को बड़ा आर्थिक नुकसान होगा. क्योंकि उनका ज्यादातर माल बंदरगाहों पर अटक गया है. इसके अलावा पहले ईरान भेजे गए चावल का भुगतान भी अभी तक नहीं हुआ है.

 भारत के इरान के साथ अच्छे कूटनीतिक संबंध रहे हैं. भारत में रणनीतिक महत्व की चाहबार बंदरगाह के विकास में अरबों डॉलर खर्च किए हैं. इस क्षेत्र में चाहबार बंदरगाह की मदद से भारत की अफगानिस्तान तथा उससे भी आगे मध्य एशिया के देशों तक पहुंच बन गई है. अफगानिस्तान को पिछले वर्ष गेहूं की खेप भेजने में इस बंदरगाह का उल्लेखनीय योगदान रहा था. 

अमेरिका और भारत में रणनीतिक साझेदारी भी पिछले दशक में बढ़ी है. युद्ध की स्थिति में अमेरिका भारत से कई प्रकार की सैन्य सहायता मांग सकता है. यह स्थिति भारत के लिए धर्म संकट में डालने वाली होगी. इसी तरह की स्थिति 1991 में खाड़ी युद्ध के समय भी बनी थी. जब अमेरिका ने अपने सैन्य विमानों में इंधन भरने की सुविधा भारत से चाही थी. लेकिन भारत की तत्कालीन सरकार ने अमेरिका की इस मांग को खारिज कर दिया था. परंतु आज की परिस्थितियां बहुत बदल चुकी है.

 आज के वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए तनाव को टालना ही समझदारी होगी. वर्तमान समय में युद्ध किसी भी देश के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करता. अमेरिका भी युद्ध नहीं चाहता है क्योंकि वह लंबे समय से अफगानिस्तान तथा खाड़ी के क्षेत्रों में लड़ाई लड़ रहा है. जिसमें उसके हजारों सैनिक शहीद हो चुके हैं. अमेरिका अफगानिस्तान से भी अपनी सेनाओं को निकालने के लिए उसी तालिबान से वार्ता के अंतिम चरण में है जिसके आतंकवादियों ने 9/11 के आतंकवादी  हमले में अमेरिका को हिला दिया था. अमेरिका इराक से भी अपने तथा मित्र नाटो देशों के सैनिकों को भी इराक से निकालना चाहता है सैनिक  जो खाड़ी युद्ध के समय से ही इराक में तैनात हैं.ऐसे में विश्व की सभी शीर्ष नेताओं और कूटनीतिक विशेषज्ञों की यह जिम्मेदारी बनती है कि कि वह वर्तमान परिस्थितियों से अमेरिका और ईरान को आगे न बढ़ने दें तथा शांति की दिशा में अपने प्रयास जारी रखें.

दुलीचंद कालीरमन

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