विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने मानव को अब तक बहुत सी सुविधाएं प्रदान की हैं। विज्ञान मानव के लिए वरदान भी साबित हुआ है तो वहीं दूसरी ओर विज्ञान मानवजाति के लिए अभिशाप भी साबित हुआ है। आज हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(कृत्रिम बुद्धि)के युग में सांस ले रहे हैं। जी हां ,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कि कृत्रिम बुद्धि। दूसरे शब्दों में यदि हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(कृत्रिम बुद्धि)को समझना चाहें तो हम यह बात कह सकते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कि कृत्रिम बुद्धि मशीनों द्वारा मानव संज्ञानात्मक(कोगनेटिव) प्रक्रियाओं का अनुकरण है। यह प्रक्रियाओं को स्वचालित(आटोमैटिक )करता है और आईटी सिस्टम में संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग (मानव विचार प्रक्रियाओं का अनुकरण) को लागू करके मानव बुद्धि को अनुकरण करना इसका लक्ष्य है। सरल शब्दों में यह बात कही जा सकती है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कि कृत्रिम बुद्धि कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलिजेंस तरीके से सोचने वाला सॉफ़्टवेयर बनाने का एक तरीका है। यह इसके बारे में अध्ययन करता है कि मानव मस्तिष्क कैसे सोचता है और समस्या को हल करते समय कैसे सीखता है, कैसे निर्णय लेता है और कैसे काम करता है ? वर्तमान सदी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक नया संप्रत्यय या कंसेप्ट है जो हम सभी के सामने है। वास्तव में, कृत्रिम बुद्धि या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर साइंस की एक ऐसी शाखा है जो कुछ इस प्रकार की मशीनों, सॉफ्टवेयर और रोबोट को विकसित करती है जो इंसानों की तरह सोच सकें। जैसे कि किसी समस्या को सुलझाना, आवाज़ आदि की पहचान करना और कोई हलचल का आभास करना आदि। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से बहुत से कामों को अंजाम दिया जा रहा है। मशीनें आज आदमी की तरह सोचने लगीं हैं और आदमी जैसे अपनी बुद्धि से काम करता है, ठीक वैसे ही आदमी का सारा काम मशीनें करने लगीं हैं। हाल ही में राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा नवाचार किया गया है। यहां कक्षा तीन से कक्षा आठवीं तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से कोई एकाध लाख नहीं अपितु 1.35 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं की जांच की गई। यह ठीक है कि आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से संचार, रक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और कृषि आदि क्षेत्रों में बड़ा बदलाव आ सकता है या आ रहा है। आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग कंम्पयूटर गेमिंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (नेचुरल लेंग्वेज प्रोसेसिंग), एक्सपर्ट सिस्टम, विजन सिस्टम, स्पीच रिकग्निशन, इंटेलीजेंट रोबोट आदि में किया जा रहा है। इतना ही नहीं आज चिकित्सा, परिवहन, विज्ञान, शिक्षा, सेना, निगरानी, वित्त और इसके विनियमन, कृषि, मनोरंजन, खुदरा, ग्राहक सेवा और विनिर्माण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग लगातार किया जा रहा है। वास्तव में आज मानव ने ऐसा सिस्टम या ऐसी मशीनों को विकसित कर लिया है जो बिना इंसानी मदद के इंसान का सारा काम करने में सक्षम है। यानी कि आज मशीनों को मानव द्वारा बुद्धिमान बनाया गया है। आज मशीनें आदमी की तरह सोच समझकर निर्णय ले रहीं हैं, अपनी बुद्धि का प्रयोग कर रहीं हैं, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से आज मशीनें अपनी समस्याओं को खुद ही पलभर में हल कर रहीं हैं। यहां पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में सबसे पहले दुनिया को जॉन मैकॉर्थी ने बताया था। इसीलिए उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक कहा जाता है। जॉन मैकॉर्थी एक अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक और
शोधकर्ता थे। वर्ष 1956 में उन्होंने डार्ट माउथ कालेज की एक कार्यशाला में भाग लिया था और कृत्रिम बुद्धि या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी।जॉन मैकॉर्थी के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक उच्च कोटि का कम्प्यूटर विज्ञान है। जिसकी मदद से मशीनों में बुद्धिमत्ता का विकास किया जा सकता है। अर्थात् ऐसे रोबोटस और कम्प्यूटर प्रोग्राम बनाए जा सकते हैं, जो मानव मस्तिष्क के सिद्धांत पर कार्य करें, और उन्हीं तर्कों का इस्तेमाल करें, जो मानव मस्तिष्क करता है। बहरहाल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज के युग में वरदान साबित हो रही है, वहीं दूसरी ओर इसके खतरे भी कम नहीं हैं। विज्ञान मानव के लिए सहूलियतें लेकर आता है तो वहीं दूसरी ओर कुछ खतरे भी लेकर आता है। जानकारों का यह कहना है कि
एआई(कृत्रिम बुद्धि)से गलत सूचना पैदा कर समाज में अस्थिरता लाई जा सकती है। इसका एक बड़ा खतरा है कि इससे सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो सकती है। एक खतरा ये भी है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ताकत दुनिया के चुनिंदा लोगों तक ही सीमित रह सकती है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने ए आई को लेकर चिंता जताई है और ए आई को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठन बनाने तक की बात कही है। बताया गया है कि परमाणु हथियारों व रोबोटिक्स में ए आई का इस्तेमाल चिंताजनक है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने यह बात कही है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(कृत्रिम बुद्धि)का उपयोग मुख्य तौर पर साइबर हमले करने, डीपफेक बनाने या ग़लत सूचना और नफरत फ़ैलाने में हो तो ये वैश्विक शांति के लिए एक बड़ा व गंभीर खतरा हो सकता है। उन्होंने सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ब्रिटेन की पहल पर बुलाई गई एक बैठक के दौरान हाल ही में
यह बात कही है कि एआइ और परमाणु हथियारों, जैव प्रौद्योगिकी, न्यूरोटेक्नोलॉजी और रोबोटिक्स के बीच की अंतरक्रिया की स्थिति बेहद चिंताजनक है।गुटेरस ने कहा कि जेनरेटिव एआई में भलाई और बुराई की अपार क्षमताएं हैं, लेकिन आतंकवादी, आपराधिक या राज्य उद्देश्यों के लिए एआइ का दुर्भावनापूर्ण उपयोग भयावह स्तर पर मौतें, विनाश और अकल्पनीय पैमाने पर मनोवैज्ञानिक आघात का कारण बन सकता है। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की इस चिंता को जायज ही ठहराया जा सकता है, क्यों कि मानव आज कहीं न कहीं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके प्रकृति को चैलेंज ही देता नजर आ रहा है। स्वयं ब्रिटेन ने सीमाहीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर लगाम लगाने की बात कही है। वास्तव में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहीं न कहीं मानव जीवन के हर पहलू को मौलिक रूप से बदलने की क्षमता रखता है। यह ठीक है कि मेडिकल साइंस, सेना, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन समेत अनेकानेक क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मददगार साबित हो रही है लेकिन हमें यह चाहिए कि हम इसके नकारात्मक पहलुओं पर भी ध्यान रखें। यहां तक कि स्वयं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के रचनाकारों ने एआई(कृत्रिम बुद्धि)के ख़तरों से अवगत कराया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण मनुष्य के समक्ष विनाशकारी और अस्तित्व मूलक खतरे पैदा हो सकते हैं। आज दुनिया के विकसित कहलाने वाले देश आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में लगे हैं,यह संपूर्ण विश्व के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। स्वयं चीन ने यह बात कही है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर विकसित देशों का ही वर्चस्व कदापि नहीं होना चाहिए। यह ठीक है कि आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण विमानन और सुरक्षा में एआई के इस्तेमाल से हमारी दुनिया अब एक सुरक्षित जगह बन गई है। भविष्य में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे शहरों की दक्षता, हमारी स्वास्थ्य सेवा और शायद पर्यावरण के स्वास्थ्य में भी सुधार करेगी। यह कठिन परिश्रम को दूर करने और अधिक सार्थक कार्य को संभव बनाने का वादा करती है, लेकिन इसके बावजूद हमें इसके ख़तरों के बारे में भी चिंतन करने की आवश्यकता है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
में मनुष्यों के स्थान पर मशीनों से काम लिया जाएगा, मशीनें स्वयं ही निर्णय लेने लगेंगी और उन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो इससे मनुष्य के लिये खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। यह बड़ा खतरा तब है जब मशीनें बिना मानवीय हस्तक्षेप के नैतिक प्रश्नों जैसे- जीवन, सुरक्षा, जन्म-मृत्यु, सामाजिक संबंध आदि से जुड़े फैसले लेने लगेंगीं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में शुद्धता और निष्पक्षता का भी प्रश्न रहना स्वाभाविक ही है क्यों कि सबकुछ डेटा से ही अनुकूलित होता है। डेटा का ग़लत इस्तेमाल किया जा सकता है। सच तो यह है कि डेटा के माध्यम से कोई भी हमारी गतिविधियों, अतीत और पैटर्न अथवा किसी के सामान्य जीवन के प्रतिरूप के विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी हासिल कर सकता है। इससे आदमी की निजता को भी कहीं न कहीं खतरा रहेगा । ए आई से बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकीय बेरोजगारी पैदा हो सकती है। अंत में, यही कहूंगा कि प्रौद्योगिकीय क्रांति समृद्धि और विकास के तो बेहतर अवसर प्रस्तुत करती है, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस प्रौद्योगिकी का सही दिशा में अनुप्रयोग और उपयोग किया जाएगा।