प्लास्टिक का उपयोग और जागरुकता की जरूरत

योगेश कुमार गोयल

      राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर केन्द्र सरकार द्वारा देश की जनता से ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ (एकल उपयोग वाली प्लास्टिक) की आदतों पर नियंत्रण का आव्हान किया गया। हालांकि अभी तक यही माना जा रहा था कि सरकार इस अवसर पर इस तरह के प्लास्टिक के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर इसे आम व्यवहार से पूरी तरह दूर करने के कड़े कदम उठाएगी लेकिन त्यौहारी सीजन में फिलहाल सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान को जन जागरूकता तक ही सीमित रखते हुए इस पर पूर्ण रोक नहीं लगाने का निर्णय लिया है और स्पष्ट किया है कि 11 सितम्बर 2019 को प्रधानमंत्री द्वारा लांच किए गए ‘स्वच्छता ही सेवा’ मिशन का उद्देश्य सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना नहीं है बल्कि इसके खिलाफ जागरूकता फैलाना है। दरअसल एकाएक सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देने से पहले ही मंदी के दौर से गुजर रही देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका लगता क्योंकि ऐसा करने से इसका सीधा असर उद्योग जगत पर पड़ता, जिससे लाखों लोगों की नौकरी भी खतरे में पड़ती। इसीलिए गांधी जयंती के अवसर पर इस प्रकार के प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के बजाय जग-जागरूकता फैलाने पर जोर दिया गया है।

      आज इस कोई इस बात से परिचित है कि प्लास्टिक का उपयोग भले ही हमें सुविधाजनक लगता है किन्तु यह जल, वायु और जमीन सहित हर प्रकार से पर्यावरण को किस प्रकार दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा रहा है और आश्चर्य एवं चिंता की बात यह है कि प्लास्टिक के तमाम खतरों को जानते-बूझते हुए भी न आमजन की ओर से इसके उपयोग से बचने के प्रयास होते दिखते हैं और न ही सरकारों द्वारा इससे मुक्ति के लिए कोई ठोस कार्ययोजना अमल में लाई जाती दिखी है। यह सर्वविदित है कि प्लास्टिक में इतने घातक रसायन होते हैं, जो इंसानों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बनकर सामने आ रहे हैं, जिसके खतरनाक प्रभावों से जलचर प्राणियों के अलावा पशु-पक्षी भी अछूते नहीं रहे हैं। दरअसल प्लास्टिक खेतों की मिट्टी के अलावा तालाबों, नदियों से होते हुए समुद्रों को भी बुरी तरह प्रदूषित कर चुका है। प्लास्टिक से पर्यावरण को हो रहे व्यापक नुकसान के मद्देनजर ही सरकार द्वारा गांधी जयंती से देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए जाने की घोषणा की गई थी। हालांकि इस उद्देश्य में एक अच्छी सोच निहित थी किन्तु चूंकि एकाएक लगाए जाने वाले ऐसे प्रतिबंध से उपजने वाली परेशानियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा पूरी तैयारियां नहीं की गई थी, इसीलिए यह प्रतिबंध व्यावहारिक भी नहीं होता। बेहतर है कि सरकार द्वारा फिलहाल प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए जन-जागरूकता अभियान पर जोर देने का निर्णय लिया गया है।

      हालांकि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित देशभर के डेढ़ दर्जन राज्यों में पहले से ही प्लास्टिक की प्लेट, चम्मच, कप, स्ट्रा इत्यादि सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध है लेकिन यह भी सही बात है कि बगैर जन-आन्दोलन के इस तरह के खतरनाक प्लास्टिक से पूर्णतः मुक्ति पाना असंभव ही है और यही कारण है कि पिछले कुछ समय से यह मांग की जा रही है कि इस तरह के प्लास्टिक पर पाबंदी लगाने से पहले सरकार उसका सस्ता और पर्यावरण हितैषी विकल्प देश की जनता को दे ताकि वे स्वयं पर्यावरण हितैषी सस्ते विकल्प की ओर आकर्षित हों और सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग अपने आप कम होता जाए। दरअसल कपड़े की थैलियां, दोबारा उपयोग किए जा सकने वाले मोटी प्लास्टिक के डिब्बे, मोटे कागज के लिफाफे, मिट्टी के बर्तन बहुत महंगे विकल्प साबित हो रहे हैं और इस प्रकार की वस्तुओं के लिए ग्राहकों से अतिरिक्त कीमत भी नहीं वसूली जा सकती, इसलिए बेहद जरूरी है कि सिंगल यूज प्लास्टिक के सस्ते और पर्यावरण हितैषी विकल्प जल्द से जल्द खोजे जाएं।

      पहले जान लेते हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक आखिर है क्या? प्लास्टिक की थैलियां, प्लेट, गिलास, चम्मच, बोतलें, स्ट्रा और थर्मोकोल इत्यादि यह वह प्लास्टिक है, जिसका उपयोग प्रायः एक ही बार किया जाता है और इस्तेमाल के बाद फैंक दिया जाता है। इस प्रकार के प्लास्टिक में पाए जाने वाले रसायन पर्यावरण के साथ-साथ लोगों और तमाम जीव-जंतुओं व पशु-पक्षियों के लिए बहुत घातक साबित होते हैं। पॉलीथिन चूंकि पेपर बैग के मुकाबले सस्ती पड़ती हैं, इसीलिए अधिकांश दुकानदार इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। प्रतिवर्ष उत्पादित प्लास्टिक कचरे में से सर्वाधिक प्लास्टिक कचरा सिंगल यूज पलास्टिक का ही होता है और इसका खतरा इसी से समझा जा सकता है कि ऐसे प्लास्टिक में से केवल 20 फीसदी प्लास्टिक ही रिसाइकल हो पाता है, करीब 39 फीसदी प्लास्टिक को जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है, जिससे जमीन की उर्वरक क्षमता प्रभावित होती है और यह जमीन में केंचुए जैसे जमीन को उपजाऊ बनाने वाले जीवों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर देती है। 15 फीसदी प्लास्टिक जलाकर नष्ट किया जाता है और प्लास्टिक को जलाने की इस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में वातावरण में उत्सर्जित होने वाली हाइड्रो कार्बन, कार्बन मोनोक्साइड तथा कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसें फेफड़ों के कैंसर व हृदय रोगों सहित कई बीमारियों का कारण बनती हैं। ब्रसेल्स आयोग के सदस्य फ्रांस टिमरमंस के अनुसार प्लास्टिक की थैली सिर्फ पांच सैकेंड में ही तैयार हो जाती है, जिसका लोग अमूमन पांच मिनट ही इस्तेमाल करते हैं, जिसे गलकर नष्ट होने में पांच सौ साल लग जाते हैं। प्लास्टिक की एक थैली को नष्ट होने में 20 से 1000 साल तक लग जाते हैं जबकि एक प्लास्टिक की बोतल को 450 साल, प्लास्टिक कप को 50 साल और प्लास्टिक की परत वाले पेपर कप को नष्ट होने में करीब 30 साल लगते हैं। प्रतिवर्ष प्लास्टिक बैग का निर्माण करने में करीब 4.3 अरब गैलन कच्चे तेल का इस्तेमाल होता है।

      प्लास्टिक किस कदर समुद्रों की सेहत भी बिगाड़ रहा है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि समुद्र के प्रति मील वर्ग क्षेत्र में लगभग 46 हजार प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाते हैं। धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं के अलावा समुद्री जीवों पर भी प्लास्टिक के कहर की बात करें तो हर साल एक लाख से ज्यादा जलीय जीवों की मौत प्लास्टिक निगलने के कारण होती है। प्लास्टिक के बारे में यह जान लेना भी बेहद जरूरी है कि अधिकांश प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता और यही कारण है कि हमारे द्वारा उत्पन्न किया जाने वाला प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। वर्तमान में प्रतिवर्ष करीब 15 हजार टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है और हर साल हम इतनी ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक कचरा इकठ्ठा कर रहे हैं, जिसके निस्तारण का हमारे पास कोई विकल्प ही मौजूद नहीं है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने कहा भी था कि यदि सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग नहीं रोका गया तो भू-रक्षण का नया स्वरूप सामने आएगा और जमीन की उत्पादकता को वापस प्राप्त करना नामुमकिन होगा।

      यही कारण है कि प्लास्टिक के उपयोग के प्रति लोगों को हतोत्साहित करने के लिए व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत महसूस की गई है। गांधी जयंती के अवसर पर लोगों को जागरूक करने के लिए दिल्ली में दूध और दुग्ध उत्पादों की निर्माता कम्पनी मदर डेयरी द्वारा दिल्ली और पड़ोसी शहरों से एकत्रित किए गए बेकार प्लास्टिक से रावण का एक 25 फुट ऊंचा पुतला तैयार किया गया, जिसे जलाने या मिट्टी में दबाने के बजाय ध्वस्त कर पुनर्चक्रण के लिए भेज दिया गया। ऐसा करके कम्पनी द्वारा उपभोक्ताओं को प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया गया। सुखद संकेत यह है कि पिछले करीब एक माह से चलाए जा रहे जन-जागरूकता अभियान का जमीनी स्तर पर असर दिखने भी लगा है और अभी इस दिशा में लोगों को जागरूक करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। प्लास्टिक प्रदूषण से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय यही है कि लोगों को इसके खतरों के प्रति सचेत और जागरूक करते हुए उन्हें प्लास्टिक का उपयोग न करने के लिए प्रेरित किया जाए।

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