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उठे कहाँ मन अब तक ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
शब्द परश रूप गंध, रस हैं तन्मात्रा; छाता जब श्याम भाव, होता मधु-छत्ता ! राधा भव-बाधा हर, मिल जाती भूमा; अणिमा महिमा गरिमा, भा जाती लघिमा ! तनिमा तरती जड़ता, सुरभित कर उर कलिका; झंकृत तन्त्रित झलका, सुर आता रस छलका !