उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव २०१२ की चकल्लस और मतदाता

 अरविन्द विद्रोही

जाति के रथ पे सवार तमाम राजनीतिक दलों की सेनाएं लोकतान्त्रिक रण भूमि में अपने कौशल दिखाने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनाने में कोई गुरेज़ नहीं करती है | वर्तमान राजनीति में नैतिकता की बातें कभी कदार जिह्वा का स्वाद बदलने हेतु राजनेता कर लेते है और फिर अपनी उस कही नैतिकता की बात पे रात गयी बात गयी वाला रुख अख्तियार कर लेते है | तमाम राजनीतिक दलों के सिद्धांत हीन,सत्ता लोलुप आचरण के ही कारण चुनाव आयोग तानाशाही रुख अख्तियार किये हुये है और तो और स्व गठित चन्द लोगो का एक समूह भी अब राजनीतिक दलों से बेवजह के सवाल-जवाब करने पर आमादा है | सड़क पर तमाशा खड़ा कर के,अंट-शंट कर के सदन को नकारने व चुनौती देने वाले स्वगठित समूह के लोगो की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत तक नहीं पड़ी और जगह जगह घूम कर कोरी बयान बाज़ी कर के अपने मुह मिया मिट्ठू बनने में लगे ये स्वयंभू लोग आत्म मुग्धता में डूबे ,उसी गलत फहमी की दरिया में डुबकी लगा रहे है |माना कि भावनाओ में बह कर भारत में जनता जुटती खूब है,खेल और तमाशे,नाटक-नौटंकी देखने में अपना समय भी देती है और उसका हिस्सा भी बनती है लेकिन जैसे ही उसको ये पता चलता है कि मदारी अब खेल दिखा चुका है और अब मदारी को खेल देखने के एवज़ में धन भी देना पड़ेगा ,जनता शाबाशी देकर ताली बजा कर अपना रास्ता पकड़ लेती है | जनता के व्यक्तिगत हित का काम लगातार करते रहते राजनेता भी जब चुनाव लड़ने के लिए चुनावी मैदान में उतारते है तो उनको आटे-दाल का भाव मालूम चल जाता है | जनता – मतदाता के पास अपना जन प्रतिनिधि चुनने की कई कसौटिया है , सभी कसौटियो पर कसे जाने और मुख्य चुनावी दौड़ में शामिल होने की बात साबित होने के बाद ही मतदाता अपनी नज़रे प्रत्याशी विशेष की तरफ इनायत करता है | अपने को बेहतर और अक्लमंद समझने वाले लोग चुनावी समर में आम जनता के सम्मुख जाने से घबराते है और तमाशा खड़ा कर के खुद को जनता की बात कहने वाला नुमाइन्दा साबित करने की कुचेष्टा में लगे है | चुनाव आयोग के सख्त निर्देशों के अनुपालन में जुटा प्रशासन देखते है कब तक राजनीतिक दबाव में नहीं आता है या भेद-भाव नहीं बरतता है | अब चुनावी नारे – गाने से सुसज्जित रथ विधान सभाओ में घुमने शुरु हो चुके है , चुनाव जीतने की व्यवस्थाएं प्रारंभ हो चुकी है ,देखना है कि चुनाव आयोग और प्रशासन इन व्यवस्थाओ को रोकने में कितना कामयाब साबित होता है | चुनाव प्रचार थमने के बाद और मतदान के पहले तक मतदाताओ को लोभ-लालच व जातीय उन्माद के बलबूते अपने अपने पाले में करने का खेल भी खेला जाना निश्चित है | चुनाव की इस बेला में प्रत्याशियो के पक्के समर्थक अपनी जी जन लगाकर अपने प्रत्याशी को जिताने की कोशिश में जुटे है ,चुनावी दंगल में मारपीट व हत्याओ का दौर इस विधान सभा चुनाव में भी शुरु हो चुका है | प्रशासन को ध्यान अधिक मतदान के साथ साथ शांति व्यवस्था बनाये रखने की तरफ भी ज्यादा देना पड़ेगा | चुनावो में आम मतदाताओ की अभी तक की ख़ामोशी ने प्रत्याशियो के साथ साथ उनके समर्थको के भी होश उड़ा दिये है |

1 COMMENT

  1. बसपा जा रही है सपा की गठबंधन सर्कार बन्ने जा रही है. मतदाता की ख़ामोशी बता रही है.

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