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वाणिनी - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कुछ ताख की मजबूरीतो, कुछ लाख की मजबूरीकुछ छड़ और खनक जाकुछ पल और सह ले तू इन रोब के उष्णता कोसुन ले ए नृत्यकार , कुछ न कहना रहजा सहन कर संसार के आहट कोसमाज के स्वरों की गूंजे गिनातीमेरी समय को ,के देख यही बिसात तेरीके तू लाख…