वार्ताओं से ही बनेगी बात

मृत्युंजय दीक्षित
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजग सरकार बनने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का जो तीखा वातावरण बना था उसमें अब काफी कुछ नरमी आ गयी है। फ्रांस की राजधानी पेरिस में जलवायु परिवर्तन की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पक पीएम नवाज शरीफ के बीच जो बैठक हुई उसके बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तांें के बीच भी जलवायु परिवर्तन के संकेत मिलने प्रारम्भ हो गये थे। लेकिन इसी बीच थाईलैंड की राजधानी बैकांक में भारत और पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकारों के बीच बैठक होने के बाद इस बात को और अधिक बल मिला कि दोनों देशों के बीच किसी न किसी बहाने कुछ न कुछ पक रहा है। उधर एक ओर दोनों देशो के मध्य कूटनीतिक रास्तों के बीच वार्ता के द्वार खुल रहे थे तो दूसरी ओर भारत के विपक्षी दल भात सरकार के महाप्रयासों को महाधोखा, झूठ और पता नहीं क्या- क्या बता रहे थे।
पाक के मामलों में विगत 65 वर्षों से शासन कर रही सरकारों ने पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के प्रति किस प्रकार का नजरिया पेश किया है वह पूरा देश जानता है। यह वहीं कांग्रेस पार्टी व विपक्ष है जिसने जब भारत और पाक के बीच वार्ता बंद हुई थी तब कहा था कि पाकिस्तान के साथ वार्ता होनी चाहिये और जबकि अब समग्र वार्ता का दौर फिर से प्रारम्भ होनें जा रहा है तब फिर सरकार के कदमों की तीखी आलोचना की जा रही है। मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस व विपक्ष का यह दोहरा नकारात्मक रवैया हेै जो बेहद खतरनाक व देशविरोधी है। पहले कांग्रेस को अपने गिरबान में झंाककर देखाना चाहिये कि उसे दो नेताओं मणिशंकर अय्यर औरपूर्व विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने पाकिसतान जाकर मोदी सरकार के खिलाफ किस प्रकार से जहर उगला और आधुनिक जयचंद की भूमिका में आ गये। जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस ने नेता फारूख अब्दुल्ला किस प्रकार से भारतीय सेना के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी कर रहे हैं।
यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस बार पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत और पाकिस्तान के मध्य वार्ता का दौर शुरू करने के लिए सबसे अधिक अंतर्राष्ट्रीय दबाव पाकिस्तान पर पड़ा है। पाक के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पूरी दुनिया में मात खा चुके हैं। अमेरिका यात्रा के दौरान पाक पीएम का सार्वजनिक अपमान हुआ जबकि ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरून का समर्थन भी उन्हें नहीं हासिल हो सका। विश्वभर कंे नेताओं ने अधिकांश बड़े नेताओं ने पाक पीएम को यही नसीहत दी कि वह भारत के साथ संबध सुधारने के लिए पहल करें कोई मध्यस्थता नहीं करेगा। यह भारत व पीएम मोदी का बड़प्पन ही था कि हर बार पीएम मोदी ने ही आगे बढ़कर पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया हैं और वह भी क्षेत्र की सभी समस्याआंें का समाधान विकास के मंत्र के साथ । पीएम मोदी का स्पष्ट मत है कि दक्षिण एशियाई देश अपनी समस्याका समाधान विकास के माध्यम से ही कर सकते हैं तथा इसके लिए हमें आगे बढ़ना होगा।
भारत और पाकिस्तान के बीच समग्र वार्ता का नया दौर 17 सालों के बाद फिर से शुरू होने जा रहा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मानना है कि इस वार्ता के अंतर्गत कश्मीर, आतंकवाद, व्यापार सहित सभी कुछ शामिल होगा । लम्बे समय के बाद हार्ट आफ एशिया सम्मेलन के बहाने विदेश मंत्री का पाकिस्तान दौरा हुआ और इस दौरे के दौरान भारतीय मीडिया अपने परम्परागत अंदाज में यह अनुमान लगाता रहा कि अब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट संबंध एक बार फिर बहाल हो जायेंगे। लेकिन मीडिया का सारा आंकलन अभी तक तो गलत निकल रहा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और स्वयं पीएम मोदी इस बात के प्रबल पक्षधर हैं कि सार्क देशों के बीच आपसी संबंध मजबूत हों । अभी तक पिछली सरकारें सार्क को मजबूत करने के लिए गंभीर नहीं थीं। यहीं कारण है कि पीएम मोदी अगलेे साल पाकिस्तान में आयोजित होने वाले सार्क सम्मेलन में भाग लेने जा रहे है। इस बात की भी संभावना प्रबल हो रही है कि तब तक भारत और पाकिस्तान के बीच समग्र वार्ता का एक दौर हो भी चुका होगा। हालांकि वार्ताओं की आड़ में पीठ में छुरा घोपना भी पाकिस्तान की आदतों में शुमार रहा है। इसलिए भारतीय कूटनीतिज्ञ व सामरिक विशेषज्ञ पीएम मोदी व शरीफ की इस पहल को एक बेहद आखिरी व करीबी अवसर भी मान रहे हंैं। भारतीय पक्षकार हर बार की तरह इस कवायद को बेकार की कवायद मान रहे हैं। सोशल मीडिया व व इलेक्ट्रानिक चैनलों में कारगिल व मुंबई हमलों सहित अनलय आतंकी हमलों को याद किया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इस बार भी समग्र वार्ता ऊंट के मुंह में जीरा साबित होने जा रही है। पाकिस्तानी पक्ष से किसी प्रकार की उम्मीद करना अपने आप को धोखा देना ही होगा।
अब इस बार पहली बार ऐसा होने जा रहा हैं कि पाकिस्तान के साथ वार्ता को लेकर भारतीय पक्ष किसी भी प्रकार से दबाव में नहीं हैं । साथ ही पाकिस्तान के अंदर भारतीय सेना व सुरक्षा सलाहकार अजीत डांेभाल का इस कदर भय व्याप्त हो गया है कि उन्हें पता है कि यदि इस बार कोई गड़बड़ हुई तो भारत बलूचिस्तान तो अलग करवायेगाही साथही गुलाम काश्मीर को भी खाली करवा लेगा। इस बार पाकिस्तानी पक्ष को किसी मुलागते में नहीं रहना चाहिये। दूसरी ओर पाक पीएम नवाज शरीफ छवि बेहद खराब हे रही है तथा कई बार यह खबरें आ चुकी हैं कि पाकिस्कतान सैन्य तख्तापलट की ओर बढ़ रहा है दूसरी ओर वहां पर पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी सत्ता पर खतरनाक दबदबा हैै। सेना व पाक खुफिया एजेंसियों की राजनीति व रणनीति भरत विरोध पर जिंदा है। अतः फलहाल समग्र वार्ता का दौर शुरू होना एक अच्छी खबर है लेकिन इससे कोई बड़ा बदलाव आयेगा यह तो भविष्य के गर्त में है।

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