वास्तुदोष और रोग

आज का वास्तु टिप्स-

यदि परेशान हैं घर के सदस्यों की बीमारियों से हैं तो इसका कारण हो सकता है वास्तुदोष….

भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है. आपके घर का गलत वास्तुदोष व्यक्ति को आर्थिक रूप के साथ-साथ शारीरिक रूप से भी परेशान कर सकता है। घर में रोग और आर्थिक परेशानी सदा बनी रहती है तो इसका कारण वास्तुदोष भी हो सकता है। किसी भी तरह की नकारात्मकता घर के मुख्य द्वार से घर में प्रवेश करती है। घर के आस-पास का वातावरण भी पारिवारिक सदस्यों के जीवन पर बहुत प्रभाव डालता है।

वास्तुशास्‍त्र में कहा गया है कि कुछ रोगों का कारण घर में जुड़ा वास्तुदोष हो सकता है। वास्तुशास्‍त्र में कुछ रोगों से घर में कुछ बदलाव करने से बचा जा सकता है।

जानिए विभिन्न दिशाओं के दोष और उनके फलस्वरूप होने वाले रोग/बीमारिया—

पश्चिम दिशा में दोष:-
पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.पश्चिम दिशा कालपुरुष के पेट​, और प्रजनन अवयव पर अमल करती है. इस दिशा में शनिदेव का आधिपत्य है.
—-यदि आपने अपने घर में रसोईघर का निर्माण पश्चिम दिशा में करवाया हैं. तो इससे आपके घर के किसी भी सदस्य को गर्मी, पित्त, फोड़े – फुंसी तथा मस्सों से जुडी हुई परेशानियाँ हो सकती हैं.
—-यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.
—यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.
— यदि घर के पश्चिम तरफ़ दरार हो , पश्चिमाभिमुख मुख्य द्वार क्षतिग्रस्त हो तो घर में रोग और बीमारी का वातावरण रेहता है. आर्थिक स्थिति भी निर्बल रेहती है.
— पश्चिम दिशा में बाथरुम होना शुभ नहि है. पति-पत्नी के बीच कायमी टकराव रेहता है.
—-यदि आपके घर की पश्चिम दिशा की दीवारों में सीलन या दरार आ गई हैं. इसका प्रभाव भी गृह मुखिया पर पड़ता हैं और उसे गुप्तांग से जुडी हुई बीमारियां हो जाती हैं.
—यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.
—-यदि आपके घर में जल निकासी की व्यवस्था पश्चिम दिशा की ओर से हैं तो आपके घर के मुखिया गम्भीर बीमारी से लम्बे समय तक पीड़ित रहते हैं.
—यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.
—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.
—-यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.
— पश्चिम भाग का कक्ष ब्रह्मस्थान से नीचा हो तो बदनामी/अपशय मिलता है. और बारंबार आर्थिक नुकशान होने के पसंग बनते रेहते है.
—- पश्चिम भाग में पानी के निकास की व्यवस्था की हो तो भवन के स्वामी को कोइ लंबी बीमारी या रोग रेहता है.

बचाव के उपाय:-
—- ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.
—-परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.
—पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.
—- इस दिशा के बुरे प्रभावों से बचने के लिए इस दिशा की दीवार को थोडा ऊंचा करवा दें या घर के बाहर इसी दिशा में अशोक के पेड़ लगायें.
—- भवन के स्वामी को हर शनिवार काले उडद और सरसो के तेल का दान करना चाहिये.
—- जन्मकुंडली का सप्तम भाव कालपुरुष के पश्चिम भाग का सूचन करता है. जिससे शरीर के पेट​, और गुप्तांग पर उसका अमल होता है. जिस का कारक शनि है. अत​: पश्चिम भाग के दोष उस अवयव को निर्बल करते है. शनिवार का व्रत करने से इस दोष का निवारण हो सकता है. हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करे.
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उत्तर दिशा में दोष-

उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.
—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं | इसके साथ ही आपको घर में आलस, थकावट तथा घुटन महसूस होती हैं.
—यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.
बचाव के उपाय :-
—-उत्तर दिशा के हानिकारक वास्तु दोष के प्रभावों से बचने एक लिए बरामदे की ओर अपने घर के चबूतरे की ढाल रखें. इससे आपके घर की महिलाएं स्वस्थ और निरोग रहेंगी. इसके साथ ही आपको धन के अधिक व्यय का सामना नहीं करना पडेगा और आपके घर पर से अकाल मृत्यु होने का खतरा भी टल जायेगा | पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें |
—- इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.
—-परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.
—-भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.
—-उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा(Parrot Green) रंग करवायें.
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दक्षिण दिशा में दोष:-

दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण दिशा में भूत – प्रेत निवास करते हैं. इसीलिए इस दिशा का कुछ स्थान थोडा खाली जरूर छोड़ना चाहिए. वरना इन बुरी शक्तियों का प्रभाव भी घर पर तथा सदस्यों पर पड सकता हैं.
—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.
—–दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.
—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.
—यदि आपके अगर भवन की दक्षिण दिशा का स्थान नीचा हैं, उत्तर दिशा की तुलना में यह स्थान अधिक खुला और खाली हैं. तो इससे आपके घर के वृद्ध व्यक्तियों की सेहत खराब हो सकती हैं तथा उन्हें उच्च रक्तचाप, पाचनक्रिया की खराबी, खून की कमी, चंक मृत्यु या दुर्घटना का शिकार होने आदि की समस्याओं का सामना करना पड सकता हैं.
—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.
—-आपके घर का मुख दक्षिण दिशा की ओर हैं. लेकिन आपने अपने घर का मुख्य द्वार नैऋत्य कोण की ओर बनवा रखा हैं. तो इससे आपके घर में विभिन्न प्रकार की समस्याएं खड़ी होती हैं. जिनसे आपके घर के सदस्य बीमार रहते हैं और आपको धन से जुडी हुई हानि का सामना करना पड़ता हैं.

बचाव के उपाय:-
—-इस दिशा के कुप्रभावों को दूर करने के लिए आप घर की दक्षिण दिशा की दीवार को ऊंचा कर सकते हैं और अपने घर के प्रवेश द्वार के अंदर और बाहर दक्षिणावर्ती सुंड वाले गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित कर सकते हैं. इस दोनों ही उपायों से घर पर से इस दिशा के बुरे प्रभाव समाप्त हो जायेंगे.
—-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.
—–घर के पूजन स्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.
—- दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.
—– प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.
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पूर्व दिशा में दोष:-

—- यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.
—- यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.
—- यदि घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.
—यदि आपने घर की इस दिशा में शौचालय बना रखा हैं तो इससे आपके घर की बेटियां अस्वस्थ रहती हैं.
—- यदि भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
—- यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.
—-अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.

बचाव के उपाय:-
—-पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.
—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.
—–पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.
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— वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया घर का दक्षिण पश्चिम कोण रोग को बढ़ाने का अहम कारक है। यदि दक्षिण पश्चिम कोण में कुआं, पानी का बोरिंग या भूमिगत पानी का स्‍थान हो तो इससे रोग होते है। यही नहीं इस कोण में बगीचा और छोटे छोटे पौधे भी नहीं होने चाहिए।
— वास्तुशास्त्री पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया दक्षिण पश्चिम कोना घर में छोटा या सिकुड़ा हुआ हो तो इससे भी रोग बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। इसीलिए कोशिश करें कि यह हिस्सा सबसे ऊंचा हो।
— घर के ब्रह्म स्‍थान का भारी होना, घर के मध्‍य में अधिक लोहे का प्रयोग या ब्रह्म स्‍थान सीढ़ियों हो तो ये भी रोगों को न्यौता देती है।
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वास्तुशास्त्र में भी कैंसर क्यों होता है इसके बारे में वर्णन मिलता है।
वास्तु शास्त्र में दिशाओं के लेकर कुछ दोष बताए गए हैं जो कैंसर जैसी बीमारी को जन्म देते हैं।

वास्तुशास्त्र के अनुसार, अगर घर की उत्तर-पूर्व दिशा पूरी तरह से बंद कर दी जाए तो इससे जो वास्तुदोष उत्पन्न होता है उसके कारण सीने के किसी भाग में कैंसर हो सकता हैं।
वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर घर की दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिशा नीची हो तो ब्रेन कैंसर हो सकता है।
अगर घर की उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण दिशा में वास्तुदोष हो तो यूट्स का कैंसर होने का खतरा रहता है।

अगर घर की उत्तर-पूर्वी दिशा ऊंची है और पश्चिम दिशा दबी हुई है तो नसों और गर्दन में कैंसर होने का खतरा होता है।
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इन वास्तुदोष के कारण होता है मधुमेह/ शुगर/डायबिटीज—

प्रिय पाठकों/मित्रों, मधुमेह/शुगर या डायबिटीज एक बहुत ही गंभीर बीमारी है. यह बीमारी पूरे विश्व मैं फैली हुई है. यह एक बहुत ही भयंकर बीमारी है. यह बीमारी एक बार किसी व्यक्ति को हो जाती है तो फिर यह ठीक नहीं होती है. इन्सुलिन और दवाइयों द्वारा इसे कंट्रोल किया जा सकता है. शुगर की बीमारी हमारी जो रोगों से लड़ने की जो कुदरती क्षमता है उसे कमजोर बना देती है. शुगर होने का एक बड़ा कारण हमारी जीवन शैली भी है. वर्तमान समय में हमारा खान-पान और रहन-सहन का तरीका भी मधुमेह का कारण बनता है. नियमित रूप से खाना न खाना, व्यायाम न करना आदि से भी शुगर होता है. वास्तुदोष भी शुगर होने का कारण बनता है. वास्तु नियम का पालन करके भी शुगर से बचाव किया जा सकता है.

वास्तु शास्त्र एक बहुत ही पुरानी वैज्ञानिक जीवन शैली है. वास्तु शास्त्र विज्ञान के अनुरूप तो है ही और इसके अलावा वास्तु शास्त्र का सम्बन्ध ग्रह, नक्षत्र और धर्म से भी होता है. जब हमारे ग्रह अशुभ चल रहे होते हैं और वास्तु दोष भी विद्यमान होते हैं तो ऐसे में हमें बहुत भयंकर दुखों को झेलना पड़ता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश और वायु व् वास्तु के आठ कोण दिशायें और ब्रह्म स्थल केंद्र को संतुलित करना बहुत जरूरी होता है. ऐसा करने से हम और हमारा परिवार सुखी होकर जीवन बिता सकते हैं. चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण देखने और सुनने को मिलते हैं लेकिन वास्तु शास्त्र मैं साफ़ तौर पर बताया गया है कि घर का जो दक्षिण-पश्चिम भाग होता है वह शुगर की बीमारी का कारण बनता है |

 मधुमेह/डायबिटीज/ शुगर होने के कारण कुछ प्रमुख वास्तु दोष बताये गए हैं ——

1. यदि घर के दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ हो या पानी की बोरिंग हो या फिर पानी का टैंक हो तो यह शुगर बढाने का कारण बनता है.

2. यदि घर के दक्षिण-पश्चिम कोण में बगीचा हो या छोटे-छोटे पोधे हों तो यह शुगर होने का कारण बनते हैं.

3. घर का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा होने से भी शुगर का रोग होता है.

4. घर का दक्षिण-पश्चिम कोना सबसे छोटा हो तो समझो शुगर का दरवाजा खुल गया है.

5. घर का दक्षिण-पश्चिम भाग सबसे ऊँचा रखें क्योंकि यह भाग सबसे नीचा होने से शुगर होती है.

6. घर के दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना शुगर का कारण बनता है.

7. घर का जो ब्रह्म स्थान होता है अर्थात घर का जो मध्य भाग होता है वह भारी हो या उसको बनाने में ज्यादा लोहे का इस्तेमाल किया गया हो तो या फिर ब्रह्म स्थान से सीडियां ऊपर की तरफ जा रही हों तो इससे शुगर का घर में प्रवेश हो जाता है. अर्थात घर का जो दक्षिण-पश्चिम भाग उसे हम ठीक कर लेते हैं तो, सुधार लेते हैं तो कई असाध्य रोग दूर हो जाते हैं.

मधुमेह/ शुगर/डायबिटीज के उपचार के लिए वास्तु नियम—-

1. भूखंड या भवन के जो बीच का जो स्थान होता है उस स्थान में स्टोर, लोहे का जाल या फ़ालतू की वस्तुएं पड़ी नहीं होनी चाहिये, और हमारे घर की जो उत्तर-पूर्व दिशा होती है उसमें नीले फूल वाला पौधा लगा होना चहिये.

2. बेडरूम में कभी भी खाना नहीं खाना चाहिये.

3. बेडरूम में कभी भी जूते या चप्पल न रखें.

4. पीने के पानी के लिए मिट्टी के घड़े का प्रयोग करें और उस घड़े में रोजाना सात तुलसी के पत्ते डालें.

5. दिन में कम से कम एक बार अपनी माँ के द्वारा बनाया हुआ खाना जरूर खाएं.

6. आपका जो पिता है और जो घर का बड़ा है उसका पूरा सम्मान करें.

7. हर रविवार अपने दोस्तों को मिठाई खिलाएं.

8. ब्रहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लें. इसे एक चम्मच शहद में सिल पत्थर पर घिस लें. सुबह खाली पेट इसका सेवन करें. ऐसा करने से शुगर की बीमारी ठीक हो सकती है. रविवार के दिन भगवान् सूर्य को जल दें और बंदरों को गुड़ खिलाएं. इससे आप स्वयं महसूस करेंगे की शुगर कितनी जल्दी खत्म हो रहा है.

9. ईशान कोण में लोहे का कोई भी सामान ना रखें.

यदि उपरोक्त कार्य किसी योग्य एवं अनुभवी वास्तुविद की सहायता (मार्गदर्शन में) से करने से डायबिटीज/मधुमेह/शुगर ठीक हो सकती है |

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