वेद विज्ञान और इतिहास

संस्कृत भाषा से भारत वासियों की दूरी बनाकर विदेशी लेखकों , विद्वानों , साहित्यकारों और इतिहासकारों को भारत और भारत के बारे में झूठी और भ्रामक धारणाएं स्थापित करने का अच्छा अवसर उपलब्ध हुआ । भारतवासियों ने अज्ञानता के कारण और पश्चिमी जगत के विद्वानों को ही विद्वान मानने की अपनी मूर्खता के कारण अपने बारे में उनकी बनाई धारणाओं को ही सच मानना आरंभ कर दिया । जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारे देश में पश्चिमी विद्वानों की देखादेखी कई ऐसे लोग निकलकर सामने आए जिन्होंने वेदों में इतिहास मानने की पश्चिमी जगत की फैलाई गई भ्रामक धारणा का समर्थन करना आरंभ कर दिया ।
इसका परिणाम यह हुआ कि वेदों में आए संस्कृत नामों को या शब्दों को इतिहास के नामों के साथ या ऐतिहासिक स्थलों के साथ जोड़ने की कसरत आरंभ हो गई । यह कसरत इतनी बढ़ी कि मोहम्मद साहब , ईसामसीह , कबीर और अन्य मत या संप्रदायों के प्रवर्तकों के नामों को भी वेदों में खोजने का क्रम आरंभ हो गया । हिन्दू समाज में भी ऐसे अनेकों लोग हैं जो श्रीराम, कृष्ण, गणेश, विभिन्न और देवी-देवताओं जैसे इन्द्र, वरुण, अग्नि आदि से लेकर भौगोलिक स्थान यथा पर्वत , नदी , राजाओं के राज्य आदि का वर्णन वेदों में मानते हैं। कई लेखक वेदों में गंगा, सरस्वती आदि नदियों का वर्णन होना मानते है।
वेदों में इतिहास मानने की इस भ्रामक धारणा का लाभ उन लोगों को अधिक हुआ जो वेदों को ईश्वरीय वाणी नहीं मानते और उनकी गरिमा को कमतर करके आंकते हैं । इन लोगों ने वेदों को ‘ग्वालों के गीत’ कहा और भारतवासियों की दृष्टि में इनकी महिमा और गरिमा को कम करने का प्रयास किया । जिससे वेदों का आध्यात्मिक पक्ष भारत के लोगों की दृष्टि से ओझल हो जाए और वे पश्चिम के भौतिकवादी अध्यात्म को ही वास्तविक अध्यात्म मान लें। भारत से द्वेष भावना रखने वाले विदेशी लोगों के ऐसे प्रयास तो समझ में आ सकते थे , परंतु जब इन कुत्सित प्रयासों का समर्थन भारत के लोगों ने करना आरंभ किया तो वेदों की उत्कृष्ट मान्यताओं और धारणाओं का गुड़ – गोबर होने लगा।
ऐसी भ्रामक धारणाओं का शिकार होकर हम यह भूल गए कि वेद शाश्वत व सनातन हैं और परमात्मा की वाणी हैं , जो कि सृष्टि प्रारंभ में अग्नि , वायु ,आदित्य और अंगिरा के अंतःकरण में प्रकट हुई । इसलिए सृष्टि प्रारंभ में ही वेदरूपी ईश्वरीय वाणी के प्रकट होने के कारण इसमें बाद की घटनाओं का कोई उल्लेख संभव ही नहीं है । इसमें किसी व्यक्ति विशेष का या मानवकृत किसी घटना का या किसी भी ऐसी प्राकृतिक आपदा का उल्लेख होना संभव नहीं है जो सृष्टि प्रारंभ होने के हजार दो हजार , लाख दो लाख या और भी अधिक समय बाद घटित हुई हो। वेदों में दिया गया ज्ञान सृष्टि दर सृष्टि चलता है । यह शाश्वत है , सनातन है । यह व्यक्ति के जीवन को उत्कृष्ट बनाने की साधना का मार्ग दिखाने वाला ज्ञान है , ना कि उसके इतिहास की घटनाओं को अंकित करने वाला कोई दस्तावेज।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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