चुनाव सुधार की छाया में विधानसभा निर्वाचन

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electionप्रमोद भार्गव

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ चुनावी शंखनाद हो गया। ये निर्वाचन दो चुनाव सुधारों की छाया में संपन्न होंगे, इसलिए पिछले चुनावों की तुलना में अनूठे होंगे। ये दोनों ही सुधार सर्वोच्च न्यायालय की दृढ़ता के चलते निर्वाचन प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हैं। अदालत द्वारा जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को शून्य कर दिए जाने के कारण अब सजायाफता नेता चुनाव नहीं लड़ पाएगें। हालांकि इस फैसले के क्रम में पुराने दागियों को दागी नहीं माना जाएगा। चुनाव लड़ने के उनके अधिकार बदस्तूर रहेंगे। दूसरा चुनाव सुधार मतदाता को प्रतिनिधियों को नकारने के अधिकार से मिला है। इस चुनाव में र्इवीएम मशीनों में विकल्प के रुप में एक नया बटन चस्पा होगा। जिस पर लिखा होगा, ‘इनमें से कोर्इ नहीं अर्थात ‘नोटा ;नन आफ द अबभ। अब यह मतदाता की जिम्मेबारी है कि वह इसका कितना इस्तेमाल करता है। हालांकि अभी खारिज के हक में बहुमत आने के बावजूद चुनाव निरस्त नहीं होगा। प्रत्याशियों में से जिसके ज्यादा मत आएंगे, उसे विजयी घोषित कर दिया जाएगा। जाहिर हैं, इस दिशा में अभी सुधारों की और जरुरत है। राजनीतिक दल इन उपायों की काट के विकल्प भी तलाश रहे हैं। बावजूद चुनावों पर इन सुधारों की छाया दिखेगी।

राजनीति से गंदगी दूर कर उसे स्वच्छ बनाने के प्रयास होते रहे हैं। समाज सेवी अन्ना हजारे इन सुधारों के प्रबल पैरोकार रहे हैं। लोकपाल आंदोलन के साथ वे दागियों से मुकित और प्रतिनिधि को नकारने के हक की मांग करते रहे हैं। संयोग से इन दोनों सुधारों का प्रभाव पांच राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगा। चुनाव आयोग भी गुंडा-शकित से चुनावों को छुटकारा दिलाने में एक हद तक सफल रहा है। अब पहले की तरह न तो मतदान केंद्रों को कब्जा पाना मुमकिन होता है और न ही हिंसा होती है। लायसेंसी हथियार थानों में जमा कराने की बाध्यता के चलते भी रक्तपात और मतदान केंद्रों की लूटपाट पर अंकुश लगा है। जाहिर है, बाहूबल की धमक कम हुर्इ है, लेकिन इसी के बरक्ष धन-बल का प्रभाव बढ़ा है। नैतिकता और र्इमानदारी की दुहार्इ देने वाले प्रत्याशी भी वोट खरीदते हैं और शराब परोसते हैं। पेड न्यूज के मार्फत उपलब्धियों के भ्रामक समाचार छपवाकर भी ये अपने पक्ष में माहौल बनाने का काम करते हैं। मीडिया के इस पक्षपात पर निगरानी के लिए आयोग के निर्देश पर प्रत्येक जिले में मीडिया सर्टिफिकेशन एंड मानीटरिंग समितियां वजूद में लार्इ गर्इ हैं। ये समितियां पेड न्यूज पर निगरानी रखेंगी और संदिग्ध समाचारों को जिला निर्वाचन अधिकारी की जानकारी में लाएंगी। हालांकि समिति को फिलहाल पेड न्यूज से जुड़े समाचार अथवा चैनल और प्रत्याशी को दंडित करने का अधिकार नहीं है। अलबत्ता समिति को लगता है कि वाकर्इ न्यूज पेडन्यूज है। तो इस खर्च को संबंधित उम्मीदवार के खर्च में जुड़वाया जाएगा। कालातंर में इस दिशा में और सुधार होने की उम्मीद की जा रही है।

हमारे यहां दलीय राजनीति में एक संकट है कि वे अपने स्तर पर कोर्इ सुधार नहीं करना चाहते। बलिक अपने फौरी हितों की पूर्ति के लिए राजनीति को बिगाड़ने में बहुमत से सकि्रय हो जाते हैं। जैसा कि हमने दागियों को बचाने वाले अध्यादेश और विधेयक के घटनाक्रम में देखा। अदालत द्वारा शून्य घोषित की गर्इ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को पुनर्जीवित करने का काम सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने सर्वसम्मति से कर दिया था, वह तो भला हो राहुल गांधी का जिनकी मति सही वक्त पर सदगति को प्राप्त हो गर्इ और दागी अध्यादेश व विधेयक सिरे से खारिज कर दिए गए। राहुल ने राजनीति में सुधार के मोर्चे पर जो उल्लेखनीय पहल की है, उसकी हुबहू तस्वीर अब होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी दिखनी चाहिए। अब राहुल और कांग्रेस की संयुक्त जवाबदेही बनती है कि वे संगीन अपराधों में लिप्त एक भी विचाराधीन आरोपी को टिकट न मिलने दें। बलिक उनसे उम्मीद तो यह की जाती है कि वे गंभीर आरोपों में सजा भुगत चुके उन कांग्रेसियों को भी टिकट न दें जो हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे आरोपों में पंजीबद्ध हैं। सभी दलों को ऐसे लोगों को उम्मीदवार इसलिए भी नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि यदि आगामी पांच साल के दौरान अदालत दो साल या इससे उपर की सजा सुना देती है तो तत्काल प्रतिनिधि को जेल जाना होगा और उसकी विधायी सदस्यता भी रदद हो जाएगी। इसलिए वे अदालत और जनभावना का आदर करते हुए संदिग्ध आरोपियों को उम्मीदवार ही न बनाएं तो कहीं ज्यादा बेहतर होगा। वैसे भी भारतीय लोकतंत्र में निर्वाचन प्रकि्रया को चुनावी महायज्ञ की संज्ञा दी जाती है, लिहाजा इस यज्ञ की पवित्रता बनाए रखने की दृशिट से भी दलों को प्रत्याशी चयन में फूंक – फूंक कर कदम रखने की जरुरत है।

हालांकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी नैतिक भरोसे के साथ आगे बढ़ रही है। पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का कहना है कि हमें नामांकन वाले दिन तक भी यदि उम्मीदवार के दागी होने की खबर लगती है तो हम उसे तत्काल बदल देंगे। यही नैतिक जवाबदेही अन्य सभी दलों को लेने की जरुरत है। आप नर्इ भले ही हो, लेकिन दिल्ली में उसका हस्तक्षेप रंग लाएगा। वह कांग्रेस और भाजपा के बाद तीसरे प्रमुख दल के रुप में पेश आ सकती है। आप ने केजरीवाल को  मुख्यमंत्री के रुप में भी घोषित कर दिया है। केजरीवाल ने इस मौके पर ऐलान किया है कि दिल्ली में यदि उनकी सरकार बनती है तो वे समाज को भ्रष्टाचार  मुक्त बनाने के लिए अन्ना हजारे द्वारा तैयार किया लोकपाल लाएंगे। उनकी इस प्रतिबद्धता की कद्र की जाने की जरुरत है।

राजस्थान में भाजपा की वसुंधरा राजे सिंधिया ने भी चुनाव प्रचार के साथ अशोक गहलोत सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार के खुलासे का शंखनाद कर दिया है। उन्होंने 100 घोटालों का 100 पन्नों का काला चिटठा जारी किया है। इसमें घोटालों का ब्यौरा हवार्इ नहीं है, व्यकित व संस्था के नाम सहित है। इनमें से 12 प्रकरण अदालत के संज्ञान में हैं। इन घोटालों की सीडी भी जारी की गर्इ है। लेकिन वंसुधरा खुद अपने दल के दागियों से दूर रह पाती हैं, यह उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद साफ होगा। गोया, चुनावी मुहिम के शुरुआती दौर में इतना जरुर लग रहा है कि चुनाव सुधारों का असर उन पर  है।

मध्यप्रदेश में सत्तारुढ़ दल भाजपा के 11 मंत्री दागी हैं। लोकायुक्त इन्हें अदालत की देहरी तक ले जाना चाहते है, लेकिन कमोबेश साफ-सुथरी छवि के माने जाने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकायुक्त को पुलिस प्रकरण बनाने की हरी झंडी नहीं दी। इन दागियों को यदि शिवराज प्रत्याशी बनाते हैं तो उन्हें मुश्किलें पेश आएंगी। कांग्रेस के चुनाव प्रचार प्रभावी ज्योतिरादित्य सिंधिया आरोप लगा सकते हैं कि भाजपा मुखौटों वाली पार्टी है। वह कांग्रेस द्वारा दागियों को संरक्षण देने वाले अध्यादेश को वापस लेने के बावजूद दागियों से मुकित नहीं चाहती। हालांकि सिंधिया के पास सरकार के भ्रष्टाचार से संबंधित न तो दस्तावेजी साक्ष्य हैं और न ही अपनी बुआ वसुंधरा की तरह सिलसिलेबार ब्यौरे हैं, इसलिए उनकी भ्रष्टाचार को लेकर आक्रमकता महज हवार्इ है। जबकि सरकार की नाभिनाल पर अभी भी सटीक हमला दिगिवजय सिंह ही बोल रहे हैं। उन्होंने हाल में शिवराज पर सीधा आरोप लगाते हुए बयान दिया है कि रेत ठेकेदार शिवा कन्सटक्षन में शिवराज के छोटे भार्इ भागीदार हैं। भ्रष्टाचार को लेकर यदि हमले तीखे नहीं हुए तो कांग्रेस को बहुत ज्यादा हासिल करना मुश्किल होगा ? कमोवेश यही सिथति छत्तीसगढ़ में है।रमन सिंह कारपोरेट घरानों के खिलौना बने हुए हैं। इस लिहाज से जल, जंगल और जमीन की लड़ार्इ लड़ने वाले लोग उनकी निगाह में माओवादी हैं। कांग्रेस को यह मुददा भुनाने की जरुरत है।

बहरहाल न्यायपालिका, मीडिया और निर्वाचन आयोग की पहल से देश चुनाव-सुधार की दिशा में आगे बढ़ा है। यदि आंशिक रुप से ही सही अपराधी,भ्रष्ट और सत्तालोलुप प्रतिनिधियों के स्थान पर योग्य और र्इमानदार प्रतिनिधि चुने जाते हैं तो राजनीतिक सुधार के मोर्चे पर शेष रह गए सुधार भी कालांतर में हो सकने की उम्मीद बढ़ जाएगी।

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