विजय गोयल की दिल्ली

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-फखरे आलम-

vijay goel
विजय गोयल अपने राजनीति सफर के प्रारम्भ से ही दिल्ली को लेकर असफल राजनीति करने का प्रयास करते आए हैं। शायद गोयल देश के अन्य प्रान्त में सफल क्षेत्रवाद और जातिवाद की सपफल राजनीति से प्रेरणा लेते रहे हैं। हां, गोयल पुराने दिल्ली वाले हो सकते हैं, मगर उनकी पार्टी के दिल्ली के अध्यक्ष ही उस प्रदेश से आते हैं जिस प्रदेशों को गोयल निशाना बनाते आए हैं। गोयल अपने आप को दिल्ली का आठवां सांसद मानते हैं। मगर मुझे उनका और उनके परिवार का दिल्ली के विकास में कोई योगदान दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता।
दिल्ली देश की राजधनी है। देश का ताज है और यह सिर्फ विजय गोयल का नहीं बल्कि 120 करोड़ भारतीयों का है। यह किसी पार्टी विशेष की न तो जागीर है न ही मिरास है। दिल्ली बार बार बसती रही उजड़ती रही। लोग यहां पर आते रहे दिल्ली को संवारते और सजाते रहे, दिल्ली किसी एक वर्ग, जाति अथवा पार्टी के द्वारा विकसित नहीं हुई है। हां, दिल्ली के विकास में उन दोनों प्रदेशों से आऐ कामगारों का बड़ा योगदान है। जिन्होंने अपने खून और पसीनों से दिल्ली को वर्तमान व्यवस्था में ला खड़ा किया है।

दिल्ली पर राजनीति की जा सकती है, मगर दिल्ली के इतिहास पर परदा नहीं डाला जा सकता है। दिल्ली भारतवर्ष के सभ्यता और संस्कृति का आइना है। दिल्ली अपने आप में पूरा भारत है। जहाँ पर सभ्यता, संस्कृति भाषा कश्मीर से कन्याकुमारी तक रहती है। 1500 ईसा पूर्व में राजा युधिष्ठिर ने यमुना के किनारे इन्द्रप्रस्थ नामक नगर बसाया था फिर वसरवा, गौतम वंश, ने राज किया और गौतम वंश के एक अध्किारी स्वरूप दत्ता ने अपने राजा के नाम पर दिल्ली नामक शहर बसाया था। फिर दिल्ली समुद्रपाल, पाल वंश का राज्य दिल्ली पर स्थापित हुआ था। राजा आनन्दपाल ने 731 ई. में दिल्ली को नए रूप में बसाया था। 1052 में आनन्द पाल द्वितीय ने दिल्ली को फिर से बसाया था। चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज चौहान ने 1155 ई. में परास्त करके दिल्ली को अपने अधीन कर लिया था। 1191 ई. में कुतुबउद्दीन ऐबक की अगुवायी में दिल्ली मुसलमानों के अधीन आ गया था। कैकएबाद ने केलूखरी, अलाउद्दीन ने सीरी, तुगलक ने तुलगकाबाद, सुल्तान मुहम्मद ने आदिलाबाद, पिफरोजशाह ने पिफरोजाबाद, खिज्रा शाह ने ख्रिजाआवाद, मुबारकशाह ने मुबारकाबाद, शेरशाह ने शेरगढ़ और सलीमशाह ने यमुना के किनाने सलीम गढ़ का निर्माण करवाया था। शाहजहां ने राजधनी आगरा से दिल्ली में स्थापित की ओर एक नए नगर शाहजहांबाद की नींव रखी थी और यह राजधनी अंग्रेजी शासन के प्रारम्भकाल अर्थात् 1803 ई. तक रहा।

हिन्दु शासकों की दिल्ली, मुसलमान बादशाहों की देहली और अंग्रेजी सरकार की डेली! दिल्ली का शाब्दिक अर्थ ऊंचाई के अर्थ में है। दिल्ली जैसे ऊंची जगह पर बनाई गई थी, वैसे दिल्ली में रहने वालों का दिल भी बड़ा होता है। प्राचीन दिल्ली की विस्तृत इतिहास भाटो के शिला अभिलेख में लिखा है। लोहे के इस स्तम्भ पर लिखे चन्द्रगुप्त और विक्रमादित्य की जीवनी सर्वप्रथम मथुरा में थी। और तंवर वंश के राजा आनन्द पाल के द्वारा इसे दिल्ली लाया गया था जो वर्तमान समय में कुतुबमिनार के परिसर में स्थापित है।

इस छोटी-सी मेरे लेख और दिल्ली के विशाल इतिहास में बड़े-बड़े अहम पड़ाव है। दिल्ली की प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास इतना विशाल है कि इसे छोटे से लेख में समेटना न तो सहजता है और न ही न्याय संगत। लेकिन मैंने जितना भी दिल्ली को पढ़ा और समझा उसमें मुझे विजय गोयल और उनका परिवार कहीं से कहीं तक दिल्ली वाले एकलौते नहीं दिखाई दिए। मैंने सभी को दिल्ली से बाहर का पाया, कोई आज आया तो कोई कल आया। मगर दिल्ली सबकी है और सब दिल्ली वाले हैं। यहाँ की सभ्यता और समागम का क्या कहना, यहां की विकास प्रगति, कानून व्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर देश भर में सबसे ऊंचा है। चौड़ी सड़कें, फ्लाईओवर, मेट्रो, यातायात की उत्तम व्यवस्था इनके पीछे सिर्फ विजय गोयल के अकेले की भूमिका नहीं है।

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