विजयादशमी: स्वयं अब जागकर हमको, जगाना देश है अपना

–    डॉ. पवन सिंह मलिक

आज का दिन विजय के संकल्प का दिन है। यह विजय न किसी एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति पर और न ही किसी देश की दूसरे देश पर विजय है। अपितु यह धर्म की अधर्म पर, नीति की अनीति पर, सत्य की असत्य पर, प्रकाश की अंधकार पर और न्याय की अन्याय पर विजय है। अपनी परंपरा में आज का दिन स्फूर्ति का दिवस है। आज के दिन ही दैवी प्रवृति द्वारा दानवी प्रवृति पर विजय प्राप्त की गयी थी। यही वो दिन है जिस दिन प्रभु श्री राम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त की गयी थी। इस दिन शस्त्रपूजन की भी परंपरा है बारह वर्ष के वनवास तथा एक वर्ष के अज्ञातवास के पश्चात पांडवों ने अपने शस्त्रों का पूजन इसी दिन किया था और उन्हें पुन: धारण किया था। विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी हिन्दुत्व का स्वाभिमान लेकर हिंदू पद – पादशाही की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी द्वारा सीमोल्लंघन की परंपरा का प्रारंभ भी आज के दिन हुआ था। दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन आरएसएस की स्थापना भी डॉ. हेडगेवार द्वारा नागपुर में आज के दिन की गयी थी। शक्ति संचय से आज देश में फैली कुरीतियों को समाप्त करने में अपनी व्यक्तिगत भूमिका तय करने का दिन भी है।

समाज में नया चैतन्य, आत्मविश्वास एवं विजय की आकांक्षा निर्माण कर, उसकी सिद्धि के लिए शक्ति की उपासना करने के लिए, उसे प्रवृत करने के निमित्त यह विजय दशमी का उत्सव एक परंपरा प्राप्त साधन ही है। आज अपना देश पहले से कहीं अधिक व तेज गति से आगे बढ़ रहा है। विकास, विस्तार व स्वाभिमान के अनेक कीर्तिमानों को हमने स्थापित किया है और करते भी जा रहे है। आज प्रत्येक राष्ट्रभक्त के मनों में भारत बसता है। भारत बोध के आधार पर आगे बढ़ना, ये अब हमारी प्राथमिकता में पहले से अधिक हो गया है। स्वदेशी, स्वभाषा, आत्मनिर्भरता, शिक्षा, सैन्य शक्ति, कृषि सब क्षेत्रों में में एक नया क्षितिज हमारे सामने है। यह इक्कीस वीं सदी का भारत सभी क्षेत्रों में नेतृत्व करने के लिए, सबको साथ लेकर चलने के लिए तैयार है।        

राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व त्याग व समर्पण कर देने वाले, अपने जीवन को इस मातृभूमि के लिए तिल – तिल जला देने वाले महापुरुषों की एक लंबी परंपरा अपने यहाँ रही है। जिसके कारण पिछले कुछ वर्षों में एक राष्ट्र स्वाभिमान, आत्मगौरव, अपने देश की विश्व पटल पर पहचान इन सब गर्व करने वाली बातों के कारण एक सुखद अनुभूति का स्पंदन पूरे समाज में महसूस होता हुआ दिखता है। परंतु इस सुखद व सकारात्मक वातावरण में हमें आलस, स्वार्थ, निष्क्रियता, सब बातों के लिए शासन पर निर्भरता के स्वभाव को त्यागना होगा। और तेज गति से अपनी अपनी भूमिका का निर्धारण कर आगे बढ़ना होगा। क्योंकि यह समय अब कोई गहन निद्रा में सोने का नहीं है। यह समय तो समाज के सारे मतभेदों को छोड़ कर एक होने का समय है। जिससे भारत का बल बढ़ेगा और भारत की शक्ति में ही विश्व की शक्ति का केंद्र है। जिस दिशा में हम लोगों ने चलना प्रारंभ किया है, उतना भर भारत की नियति नहीं है। परमवैभव संपन्न भारत का स्वप्न अभी दूर है। राष्ट्र विरोधी शक्तियों के रुप में अभी रास्ते में कई प्रकार की बाधाएं है। इन सब प्रकार की बाधाओं व प्रश्नों का समाधान, हम सबको अपने कुशलतापूर्वक व्यवहार, परिश्रम की पराकाष्ठ व समाज केंद्रित जीवन की सक्रियता से करना होगा। समाज में घर कर चुकी एक – एक समस्या को चिन्हित करना, उसके लिए जन जागरण कर, उसके समाधान के लिए अपना जीवन लगाना होगा। क्योंकि जीवन से सदा देश बड़ा होता है और जब हम मिटते हैं, तब देश खड़ा होता है।  

भारत की बढ़ती तरक्की व प्रतिष्ठा से बहुत से लोगों को समस्या भी है। ऐसे लोग भारत में भी है व दुनिया में भी है। वो भारत को इस प्रकार से विश्व पटल पर बढ़ते हुए नहीं देखना चाहते। ऐसे भितरघात करने वाले लोग समय – समय पर जाति, पंथ, भाषा, क्षेत्रवाद को विषय बना कर समाज को तोड़ने का काम करते हुए, अभी भी सक्रियता के साथ दिखाई देते है। आज विजयादशमी दिवस पर ऐसी सामाजिक आसुरी शक्तियों को पहचान कर, पूर्ण सजगता के साथ उनके राष्ट्र विरोधी एजंडे को बौद्धिक व सामाजिक स्तर पर विध्वंस करने की आवश्यकता है। समाज के संगठित प्रयास व विषयों संबंधित जागरुकता के कारण से ऐसा होता हुआ अभी दिखता भी है, लेकिन इसको सक्रियता से और बढ़ाना होगा।   

अब हमें अपने दायित्व बोध को ओर व्यापक करके देखना होगा। क्योंकि आज विश्व को भारत की नितांत आवश्यकता है। भारत को अपनी प्रकृति, संस्कृति के सुदृढ़ नींव पर खड़ा होना ही पड़ेगा।  इसलिये राष्ट्र के बारे में यह स्पष्ट कल्पना व उसका गौरव मन में लेकर समाज में सर्वत्र सद्भाव, सदाचार तथा समरसता की भावना सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। परन्तु यह समय की आवश्यकता तभी समय रहते पूर्ण होगी जब इस कार्य का दायित्व किसी व्यक्ति या संगठन पर डालकर, स्वयं दूर से देखते रहने का स्वभाव हम छोड़ दें। राष्ट्र की उन्नति, समाज की समस्याओं का निदान तथा संकटों का मात करने का कार्य ठेके पर नहीं दिया जाता। समय-समय पर नेतृत्व करने का काम अवश्य कोई न कोई करेगा, परंतु जब तक जागृत जनता, स्पष्ट दृष्टि, निःस्वार्थ प्रामाणिक परिश्रम तथा अभेद्य एकता के साथ वज्रशक्ति बनकर ऐसे प्रयासों में स्वयं से नहीं लगती, तब तक संपूर्ण व शाश्वत सफलता मिलना संभव नहीं होगा। इसलिए अब प्रत्येक राष्ट्र उत्थान केंद्रित दृष्टि रखने वाले व्यक्ति को स्वयं से प्रारंभ कर, अपने आस-पास के लोगों को जागृत करते हुए आगे बढ़ना होगा। यही समय की मांग है और यही हमारी ज़िम्मेदारी भी है।

आज का समय पूरे विश्व को भारत की विजय गाथा बताने का समय है। जिसे सुनने के लिए व जिसका अनुसरण करने के लिए पूरी दुनिया तैयार है। अब वो दिन नहीं रहे, जब कोई भी हमारे देश को आँखें दिखा देता था। अब हम आँखें दिखाने वाले को घर में घुस कर मारते है। तो आईये, आज विजयादशमी के इस शुभ अवसर पर हिंदू समाज को संगठित करते हुए, राष्ट्र की भक्ति के रुप में उत्तम कार्य करने संकल्प करते हैं। क्योंकि वर्तमान परिस्तिथियों में हिंदू समाज की संगठित शक्ति ही सभी समस्याओं का एक अचूक निदान है।

‘कभी थे अकेले हुए आज इतने, नहीं तब डरे तो भला अब डरेंगे।

विरोधों के सागर में चट्टान हैं हम, टकराएंगे जो हमसे वो मौत अपनी मरेंगे’।।

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