विकीलीक्स का खुलासा-नरेन्द्र मोदी हत्या की साजिश

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

विकीलीक्स ने अमेरिका सरकार के लाखों संदेश सार्वजनिक कर दिये हैं, जिसको लेकर दुनियां भर में तहलका मचा हुआ है। अमेरिका के अलग अलग देशों में जो दूतावास हैं, वे वहां से वाशिंगटन को समय समय पर संदेश भेजा करते हैं। यह संदेश उस देश की आंतरिक अवस्था के बारे में टिप्पणियां या आकलन होते हैं। जाहिर है जमीनी स्तर से मिली हुई इन जानकारियों से ही अमेरिका अपनी विदेश नीति बनाता है। और दूसरे देशों में अपनी भावी राजनीति को अंतिम रूप देता है। मीडिया, संदेशों के इस खुलासे को कुछ इस तरह से उछाल रहा है मानों इससे कोई भूकम्प नुमा रहस्योद्घाटन हुआ हो। जबकि कूटनीति शास्त्र का सामान्य विद्यार्थी भी यह जानता है कि प्रत्येक देश का राजदूतावास क्रियात्मक रूप से यही कार्य करता है। वास्तव में यह उसके कार्यकलापों का हिस्सा ही है। विश्व राजनीति में जिस देश की जितनी ज्यादा दखलंदाजी होती है उतने ही स्तर पर यह कार्य करता है। लगभग तीन दशक पहले जब इरान में विद्यार्थियों ने तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया था तो दूतावास के अधिकारियों ने तुरंत ही इस प्रकार की सामग्री की जलाने की कोशिश की थी। कुछ सामग्री जला दी गई थी और जो कागज बच गये थे उसे इरान सरकार ने सात खंडों में प्रकाशित किया था। उस समय बहुत से संदेश और फाईले ऐसी थीं जिसमें इरान के राजनीतिज्ञों की विस्तृत जानकारी के साथ उनकी मानवीय कमजोरियों का विस्तार से उल्लेख किया गया था। इतना ही नहीं महत्वपूर्ण व्यक्तियों की पत्नियों की जानकारी भी उपलब्ध करवाई गई थी। उनकी वैचारिक पृष्ठ भूमि और व्यक्तिगत कमजोरियों के भी संकेत दिये गये थे। कौन व्यक्ति किन प्रलोभनों से अमेरिका के पक्ष में काम कर सकता है, यह सारी सूचनाएं दूतावास की और से वांशिगटन डी0सी0 को भेजी जाती थी और उसके आधार पर अमेरिका अपने हितों को ध्यान में रखते हुए इरान की स्थानीय राजनीति को प्रभावित करने की रणनीति तैयार करता था। तीन दशक पहले इरान की विद्यार्थियों ने यह खुलासे किये थे और आज 21वीं शताब्दी के प्रथम दशक में विकीलीक्स यह खुलासे कर रहा है।

मीडिया, भारत में इन खुलासों को लेकर इतना शोर मचा रहा है कि उसकी आवाज में सोनिया गांधी की कांग्रेस और अमेरिकी सरकार के भारत सम्बन्धी षड्यंत्र से ध्यान हटता जा रहा है। हो सकता है मीडिया के एक वर्ग की, जो मुख्य तौर पर विदेशी मालिकों से संचालित है, यह भी एक सोची समझी योजना हो।

इसलिए जरूरी है कि विकीलीक्स के इन खुलासों की पृष्ठ भूमि में भारत को लेकर रचे जा रहे षड्यंत्र को ठीक ढंग से समझा जा सके। सबसे पहले गुजरात में वहॉं के मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेन्द्र मोदी को खत्म करने के लिए एक बड़े षडयंत्र की रूपरेखा। इन खुलासों से स्पष्ट हो गया है कि नरेन्द्र मोदी को मारने के लिए लश्कर-ए-तोयबा एक लम्बे समय से अपना जाल बुन रहा है, जिसकी पूरी जानकारी अमेरिका को थी और है। भारत सरकार का कहना है कि अमेरिका ने इसकी सूचना उसको नहीं दी। फिलहाल तर्क के लिए भारत सरकार की इस बात को स्वीकार किया जा सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि अमेरिका चाहता था कि लश्कर-ए-तोयबा मोदी को मारने के अपने इस अभियान में सफल हो जाये। अमेरिका का अपना एक एजेंट भी भारत में इसी प्रकार की आतंकवादी योजनाओं में तालमेल बिठाने और उन्हें निष्पादित करने में सक्रिय था। हेडली नाम का यह व्यक्ति पाकिस्तान की आई0एस0आई0 के लिए भी काम कर रहा था और अमेरिका की सीआईए के लिए भी। उपर से देखने पर लगता है कि हेडली डबल क्रास कर रहा था। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं था। क्योंकि पाकिस्तान की आई0एस0आई0 और अमेरिका की सी0आई0ए0 व्यवहारिक रूप में एक दूसरे से सहयोग करके ही चल रहे हैं। डेविड कोलमैन हेडली इस सहयोग का उत्कृष्ट नमूना है। इसका वास्तविक नाम दाऊद सैयद गिलानी है और यह मूलतः पाकिस्तान का रहने वाला है। बाद वह अमेरिका का नागरिक बन गया। स्वभाविक है कि यदि वह अपने असली नाम से बार बार भारत के चक्र लगाता तो निश्चय ही सुरक्षा एजेंसियों की नजर में आ सकता था। इसलिए अमेरिका ने उसे हेडली के नाम से पासपोर्ट प्रदान किया। अमेरिकी पासपोर्ट और उपर से हेडली नाम।

कोई भी कल्पना कर सकता है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नजर आसानी से उस पर नहीं पड़ेगी। इसलिए वह लम्बे समय तक भारत में आतंकवादी योजनाएं बनाने में और उनको निष्पादित करने के लिए आवश्यक संरचनागत ढांचा तैयार करने के काम में लगा रहा। लेकिन सी.आई.ए. के दुर्भाग्य से वह अमेरिका में ही पकड़ा गया और मीडिया के चलते यह खबर छिपी भी नहीं रह सकी। अब अमेरिका की चिन्ता बढ़ना स्वभाविक था। यदि नियमानुसार उसे भारत को सौंपना पड़ा तो न जाने वह अमेरिका के कितने राज उगल दे। इसलिए अमेरिकी सरकार ने उससे तुरंत अपने अपराधों की स्वीकृति करवाई और उसे जेल में बंद कर दिया।

यानी एक प्रकार से उसे भारत की जांच एजेंसियों की पहुंच से बाहर कर दिया। वैसे भारत सरकार की रूची भी हेडली से बचने की ही रही क्योंकि यदि जांच एजेंसियां उससे गहन पुछताछ करती तो हो सकता था, भारत सरकार की आतंकवादियों से लड़ने की अपनी नीति की राजनीति के ढोल की पोल खुल जाती।

अमेरिका सरकार जानती थी कि लश्कर-ए-तोयबा भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेन्द्र मोदी की हत्या की तैयारियां कर रहा है। इसके बावजूद वह लश्कर-ए-तोयबा को इस हत्या के लिए एक काल्पनिक साम्प्रदायिक और उन्मादित आधार प्रदान करने के काम में जुटी हुई थी। नरेन्द्र मोदी को अमेरिका का वीजा न देना इसी बड़ी योजना का एक हिस्सा था।किसी को वीजा देना या न देना अमेरिका की सरकार का अपना अधिकार है। इसके लिए उस पर उगली नहीं उठाई जा सकती और न ही किसी को अमेरिका की पर्दे के पीछे की भूमिका पर शक हो सकता था।

परन्तु नरेन्द्र मोदी को वीजा न देने के कारणों की आड़ में अमेरिका ने जो प्रवचन दिया, वह अप्रत्यक्ष रूप से लश्कर-ए-तोयबा और अन्य आतंकवादी संगठनों को मोदी की हत्या के लिए प्रेरित करने जैसा ही था। अमेरिका ने मोदी पर मुस्लिम विरोधी होने, मुसलमानों का नरसंहार करनवाने इत्यादि के न जाने कितने आरोप मढ़े। यह ठीक है कि अमेरिकी सरकार द्वारा दिये गये कारण कुतर्क की श्रेणी में आते हैं। परन्तु अमेरिका भी जानता है कि लश्कर-ए-तोयबा जैसे संगठनों को आतंकवाद की प्ररेणा के लिए कुतर्कों की ही जरूरत होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि अमेरिका मोदी की हत्या होते चुपचाप देखते रहने का इच्छुक था। यदि उसकी ऐसी इच्छा न होती तो निश्चिय ही वह यह सूचना भारत सरकार को देता। अब दूसरी संभावना पर भी विचार कर लेना चाहिए। मानलिजिये अमेरिका ने भारत सरकार को यह सूचना मुहैया करवा दी थी। तब भारत सरकार ने इस छीपा कर रखा इससे भी भारत सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह लगता है। यहॉं तक ही बस नहीं गुजरात की सुरक्षा एंव जांच एजेसियां अपने बलबुते गुजरात में आतंकवाद को लेकर की जाने वाली घटनाओं की जानकारी हासिल करती है और जान हथेली पर रख कर पुलिस के लोग आतंकवादियों से टक्कर लेते हैं। जब किसी आतंकवादी की इस टक्कर में मौत हो जाती है तो कुछ लोग तुरन्त मरे हुए आतंकवादियों के पक्ष में और आतंकवाद का मुकाबला करने वाले पुलिस बल के खिलाफ मानवाधिकार के नाम पर मोर्चा लगा लेते है। तीस्‍ता सीतलबाड़ तो गुजरात में आतंकवादियों के खिलाफ की गई कार्यवाहियों को अर्न्तराष्ट्रीय संस्थाओं में उठाती रहती है। यहॉं तक कि न्यायलय को भी उसके इस व्यवहार पर आपत्ति करनी पड़ी। सीतलबाड़ पर गवाहों को डराने धमकाने के आरोप भी न्यायलय में लगते रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि लश्कर-ए-तोयबा गुजरात में नरेन्द्र मोदी को मारने का प्रयास करेगा और कुछ लोग उससे पहले वहॉं के पुलिस बल को हतोत्साहित करने का प्रयास करेंगे।  इशरत जहां और सोहराबुदीन के मामलों से ऐसे ही संकेत मिलते हैं।

दुर्भाग्य से भारत सरकार तीस्‍ता सीतलवाड़ों के साथ खड़ी दिखाई देती है न कि लश्कर-ए-तोयबा का साजिशों को विफल करने वालों के साथ।

2 COMMENTS

  1. अमेरिका ने अपने ट्विनटावर को गिराने की कुटिल नीति अपना कर मुस्लिम आतंकवादियों का इस्तेमाल किया था. अतः डा. अग्निहोत्री जी की बात में दम है की वे मोदी जी की ह्त्या में भी इस्लामी आतंकवादियों के इस्तेमाल का प्रयास कर रहे हों. जिहादियों को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करने की अमेरिकी निति अब गुप्त नहीं रही है, डा. अग्निहोत्री जी के संकेतों को समझने की ज़रूरत है.

  2. पिछले एक-डेढ दशक से अमेरिका के उपर भारत ने पुरा भरोसा किया है, एक अच्छे मित्र की तरह। अमेरिका का व्यवहार भी मित्रोचित रहा है, मोटे तौर पर। लेकिन कभी-कभी लगता है की अमेरिका हमारे से चालबाजी करता है। लेकिन ऐसा शंका करना उचित नही है। भारत को अपनी तरफ से सच्ची मित्रता निभानी चाहिए। यह दोस्ती दुर तक जानी चाहिए।

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