डॉ. मयंक चतुर्वेदी
अयोध्या मामले पर चल रही बहस के बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने दिल्ली की जामा मस्जिद को भी हिंदू मंदिर करार दिया है, उन्होंने इसे जमुना देवी का मंदिर बताया है। उनके इस तरह से जामा मस्जिद को मंदिर कहे जाने को बहुत से मीडिया संस्थान एवं धर्मनिरपेक्षता के पेरोकार आज साम्प्रदायिकता की नजरों से देख रहे हैं। किंतु क्या धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर इतिहास को नकारा जा सकता है जो यह चीख-चीख कर पुख्ता प्रमाण के साथ विनय कटियार की इस बात को कह रहा है कि मुगल काल में साढ़े छह हजार मंदिर स्थानों को ढहाया गया था, जो हिंदुओं के थे।
वस्तुत: गुजरात में सोमनाथ मंदिर बन जाने के बाद बहुसंख्यक हिन्दुओं की मांग स्वतंत्र भारत में इतनी ही है कि पुरानी बातों को भुलाकर हमें देश के तीन स्थानों पर जिसमें कि आराध्य भगवान श्रीराम का अयोध्या में राम जन्म स्थान दे दिया जाए। मथुरा में कृष्ण जन्म स्थान और बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर जिसमें आज भी मस्जिद हर हिन्दू को उसकी पराजय तथा अपमान का बोध कराती है उन्हें दे दिए जाएं। वस्तुत: क्या यह बहुसंख्यक हिन्दू समाज की इतनी बड़ी मांग है कि उसे सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पूरा नहीं किया जा सकता है?
इतिहास का संक्षिप्त पुनरावलोकन भी यदि कर लिया जाए तो यही पता चलता है कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज का ह्दय कितना विशाल है। इतिहास के आइने में मौहम्मद बिन कासिम के माध्यम से इस्लामी सेनाओं का पहला प्रवेश सिन्ध में 711-12 ई. में हुआ। प्रारंभिक विजय के पश्चात उसने ईराक के गवर्नर हज्जाज को अपने पत्र में लिखा-‘दाहिर का भतीजा, उसके योद्धा और मुख्य अधिकारी कत्ल कर दिये गये हैं। हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया है, अन्यथा कत्ल कर दिया गया है। मंदिरों के स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी गई हैं और वहां अजान दी जाती है।’ इतिहास बताता है कि ‘मौहम्मद बिन कासिम ने रिवाड़ी का दुर्ग विजय करने के साथ ही वहां मौजूद 6000 हिन्दू योद्धाओं का वध कर दिया था, उनकी पत्नियाँ, बच्चे, नौकर-चाकर सब कैद कर दास बना लिये गये थे, जिनकी संख्या लगभग 30 हजार थी। बिन कासिम भारत के जिस कौने में गया उसने तलवार की नोंक पर वही किया जो सिन्ध में प्रवेश करते वक्त उसकी नीयत इस्लामिक साम्राज्य के विस्तार और लूट की थी।
इसके बाद भारत में मुस्लिम आक्रांता सुबुक्तगीन का प्रवेश 977 ईसवीं में होता है, उसके बारे में अल उतबी नामक मुस्लिम इतिहासकार ‘तारिखे यामिनी’ में लिखता है कि ‘सुल्तान ने जयपाल के राज्य पर धावा बोला। उसे विजयकर, उसके आस-पास के सभी क्षेत्रों में, जहाँ हिन्दू निवास करते थे, आग लगा दी गई। वहाँ के सभी मूर्ति-मंदिर तोड़कर वहाँ मस्जिदें बना दी गईं। उसकी विजय यात्रा चलती रही और सुल्तान उन (मूर्ति-पूजा से) प्रदूषित भाग्यहीन लोगों का कत्ल कर मुसलमानों को संतुष्ट करता रहा। सुबुक्तगीन के बाद आक्रान्ता महमूद गजनवी का (997-1030) तक बार-बार भारत में प्रवेश होता है। अल उतबी इस सुल्तान की भारत विजय के विषय में लिखता है-‘अपने सैनिकों को शस्त्रास्त्र बाँट कर अल्लाह से मार्गदर्शन और शक्ति की आस लगाये सुल्तान ने भारत की ओर प्रस्थान किया। अपने प्रत्येक आक्रमण में गजनवी ने योजना से मंदिरों को अपना निशाना बनाया। 1009 ई में गजनवी ने कांगड़ा केज्वालामुखी मंदिर को लूटा और तोड़ दिया।1014 ई में थानेश्वर पर आक्रमण करके वहाँ के मंदिरों को लूटा और तोड़ दिया।1018 ई में मथुरा के मंदिरों को लूटा और तोड़ दिया।1025 ई में गुजरात के सोमनाथ मंदिर को लूटा और वहाँ स्थापित शिवलिंग को तोड़ा ।
गजनवी के बाद मोहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किया। गौरी के गुलाम सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1194 ई में अजमेर के जैन मंदिर तथा संस्कृत महाविद्यालय को नष्ट कर एक मस्जिद तथा ढाईदिन का झोपड़ा नामक एक भवन बना दिया। दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनाने के लिए 27 मंदिरों को तोड़ कर उसके अवशेष का इस्तेमाल किया गया था। मस्जिद की जाली, स्तम्भ और दरवाजे मंदिर के ही अवशेष हैं। इसके बाद बख्तियार खिलजी जो कि गौरी के साथ सिर्फ धन के लिए आक्रमणों में शामिल होता था, ने बंगाल की ओर आगे बढ़ते हुए नालंदा, ओदन्तपुरी और विक्रमशिला के विशाल विश्वविद्यालयों को तोड़ दिया और वहाँ स्थापित महान कृतियों और शोध पत्रों से परिपूर्ण पुस्तकालयों को आग लगा कर भस्मीभूत कर दिया।
इतिहास कहता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति मलिक काफूर के द्वारा कई मंदिरों को तुड़वाया। काफूर ने 1310-11ई में द्वार समुद्र पर आक्रमण करके वहाँ के मंदिरों को लूटा और तोड़ा। मद्रास के निकट चिदंबरम मंदिर को लूटा और तोड़ दिया गया। मदूरा में भी कई मंदिरों को लूटा और तोड़ा गया। इसके अलावा अलाउद्दीन ने गुजरात के पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर सहित कई और मंदिरों को लूटा व ध्वस्त किया । 1300 ई में निर्मित भड़ौच की जुम्मा मस्जिद हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर ही बनाई गई है। आगे फिरोज तुगलक ने 1359 ई में उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर को लूटा और तोड़ा था। फिरोज ने 1361 ई में कांगड़ा के पुनर्निर्मित ज्वालामुखी मंदिर को फिर से लूटा और तोड़ा तथा मंदिर में स्थापित मुख्यमूर्ति को तोड़ कर विजय चिन्ह के रूप में मदीना मस्जिद के सीढ़ियों में लगाने के लिए भेज दिया। इसके बाद 1398-99 ई में तुर्क अक्रांता तैमूरलंगड़े ने जम्मू, मेरठ, हरिद्वार और कांगड़ा के मंदिरों और लोगों को लूटते हुए हजारों ब्राह्मणों सहित कितने ही आम हिन्दू जनता को मौत के घाट उतार दिया था। इन सब से जितना हो सका इन्होंने धर्म परिवर्तन का काम तलवार की दम पर जारी रखा।
आगे सिकंदर लोदी ने भी तीसरी बार पुनर्निर्मित कांगड़ा के ज्वालामुखी मंदिर को तोड़ कर मुख्य प्रतिमा के अवशेष को कसाईयों को जानवर काटने और तौलने के लिए दे दिए थे। कश्मीर के शासक सिकंदर ने मार्तण्ड सूर्य मंदिर, विश्य मंदिर, ईसाना मंदिर, चक्रवत मंदिर और त्रिपुरेश्वर मंदिर को लूटकर तोड़ दिया था। बंगाल के पाण्डुआ में कई मंदिरों को तोड़ कर मंदिरों के अवशेष से जलालुद्दीन मुहम्मदशाह का मकबरा लक्खी मस्जिद बनाया गया।
1408 ई में इब्राहिम शाह शर्की ने कन्नौज के राजा विजयचंद्र के द्वारा निर्मित अटाला देवी मंदिर को तोड़ कर अटाला मस्जिद बनवा दी। इन सब आक्रमणकारियों से कई कदम आगे बढ़ते हुए औरंगजेब ने मंदिरों को नष्ट करने के लिए शाही फरमान जारी किया। इसके आदेश के बाद गुजरात में कई मंदिरों को तोड़ा गया। सन् 1666 ई में मथुरा के केशवदेव मंदिर को तोड़ा गया।1669 ई में उड़ीसा, मुल्तान और सिन्ध के अनेक मंदिरों के साथ काशी के विश्वनाथ मंदिर को भी तोड़ दिया गया था। उदयपुर में लगभग 235 मंदिर तथा जयपुर में 66 मंदिर तोड़े गए। इसी समय में हरिद्वार तथा अयोध्या में भी सैकड़ों मंदिर तोड़े गए थे ।
मंदिरों को तोड़कर किस तरह से जगह-जगह मस्जिदें खड़ी की गई, इसके पुख्ता प्रमाण देशभर से प्राप्त अभिलेख भी हैं। 1953-54 में आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में बनी जामी मस्जिद में एक अभिलेख मिला। अरबी भाषा में लिखा यह अभिलेख बताता है कि हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को तोड़कर मंदिर के स्थान पर शेर मुहम्मद खान गाजी ने इस मस्जिद का निर्माण कराया था। उसी स्थान पर मिले एक और अभिलेख में लिखा है कि इस कार्य के लिए शेर मोहम्मद खान को गोलकुण्डा के सुल्तान अब्दुल्लाह कुतुब शाह ने फिरूज जंग की पदवी दी थी। महाराष्ट्र के अकोला जिले में अकोट नामक स्थान पर स्थित जामी मस्जिद की मेहराब के बीच फारसी भाषा में एक अभिलेख मिलता है। इसके अनुसार,”अल्लाह के अलावा और कोई खुदा नहीं है। आलमगीर के एक वफादार सरदार मोहम्मद अशरफ ने यहां एक मंदिर देखा तो खलील (पैगम्बर अब्राहम) का अनुकरण करते हुए मंदिर तोड़ दिया और बड़ी तेजी से मस्जिद का निर्माण शुरू करवाया। 1667 में इसका निर्माण पूरा हुआ।
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में स्थित जामी मस्जिद में फारसी भाषा में एक अभिलेख मिलता है जिसमें इस्लाम की शान बढ़ाने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर की मूर्तियां तोड़ने का जिक्र बड़ी शान से किया गया है। जदुनाथ सरकार द्वारा अनूदित पुस्तक “मासिर-ए-आलमगिरि’ में उल्लेख है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के ध्वंस के बाद औरंगजेब ने खुश होकर इस काम को अंजाम देने वाले अपने सरदार अब्दुल नबी खान को फौजदार का दर्जा दे दिया था। औरंगजेब को पक्का यकीन हो गया था कि अब्दुल नवी खान दीन को मानने वाला व्यक्ति है और वह बादशाह की मंदिर तोड़ने की नीति का पूरी तरह पालन करवाएगा। फौजदार बनने के बाद अब्दुल नबी ने 1661 में हिन्दू मंदिर की छाती पर जामी मस्जिद का निर्माण कराया।
दिल्ली के महरौली क्षेत्र में कुतुब मीनार के निकट स्थित कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद में फारसी भाषा में मिले अभिलेख हिन्दू और जैन मंदिरों के ध्वंस की कहानी कहते हैं। “दिल्ली और उसका पड़ोस’ शीर्षक पुस्तक में उल्लेख मिलता है कि “कुतुबुद्दीन ऐबक ने लालकोट में 27 हिन्दू व जैन मंदिरों का ध्वंस करके उनके उत्कीर्ण स्तम्भों, छत के पत्थरों आदि का इस्तेमाल करके 1191 ई. में कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद का निर्माण कराया था। कुव्वतुल इस्लाम का अर्थ है “इस्लाम की ताकत।’ सन् 1334 में मध्य एशिया से इब्नबतूता जब भारत आया तो उसने यह अभिलेख पढ़कर लिखा, “यह मस्जिद जहां खड़ी है, वहां पहले बुतखाना था। दिल्ली की विजय के बाद उस मंदिर को मस्जिद में बदल दिया गया।’
इस तरह से यदि अभिलेखों में भी इस संबंध में सत्यता खोजी जाए तो समुचे देश में तमाम अभिलेख इस बात का एतिहासिक साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि किस तरह से इस्लाम की आंधी ने हिन्दुस्थान की जमीन को धर्मांधता के चलते खून और घृणा से पूर्ण कर दिया था। इसके बाद यह बहुसंख्यक हिन्दुओं की महानता ही है लगातार अपना अपमान सहने एवं अपना सर्वस्व समाप्त करवाने के बाद, देश का विभाजन धर्म के आधार पर दो धर्म दो देश मुसलमानों द्वारा किए जाने के बाद भी स्वतंत्र भारत में इतने अधिक मुसलमान रहते हैं जितने की आज विभाजित भारत के अंग पाकिस्तान में भी नहीं हैं।
वस्तुत: हिन्दू समाज जिस सर्वधर्म सद्भाव की अवधारणा को स्वीकार्य करते हुए दैनन्दिन जीवन जीता है, उसी के अनरूप आज भारत में रह रहे अल्पसंख्यक मुसलमानों से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वह हिन्दुस्थान के बहुसंख्यक हिन्दुओं के मानबिन्दुओं का सम्मान करें। अपनी बेकार की जिद छोड़ें और देश को अपना बड़ा दिल दिखाएं। अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर बनाने में सहयोग दें । काशी में विश्वनाथ मंदिर का विस्तार होने दें और मथुरा में जो भय का वातावरण बना रहता है, सदैव जिस तरह से श्रीकृष्ण जन्म भूमि स्थल एवं मस्जिद परिसर के बाहार पुलिस और सेना की टुकड़ियां सुरक्षा के मद्देनजर तैनात रहती हैं, उससे हिन्दुओं के आराध्य श्री कृष्ण जन्म स्थल को मुक्ति प्रदान करने में सहयोग करें। इस्लाम की आंधी से ध्वस्त हुए 6 हजार बड़े मंदिरों में से सिर्फ हिन्दू समाज अपने लिए सिर्फ 3 मंदिरों की प्रतिष्ठा ही तो प्राप्त करना चाहता है, इसमें इस्लाम माननेवालों को आखिर क्यों कठिनाई होनी चाहिए ?