विष्णुलाल शर्मा द्वारा ऋषि दयानन्द के दर्शन का वृतान्त

0
148

.vishnu lal sharma

पं. विष्णुलाल शर्मा उत्तर प्रदेश में अवकाश प्राप्त सब जज रहे। स्वामी दयानन्द जब बरेली आये तब वहां 11 वर्ष की अवस्था में पं. विष्णुलाल शर्मा जी ने उनके दर्शन किए थे। उन्होंने इसका जो प्रमाणित विवरण स्वस्मृति से लेखबद्ध किया उसका वर्णन कर रहे हैं। वह लिखते हैं कि श्री स्वामी दयानन्द जी महाराज जब बरेली आकर लाला लक्ष्मीनारायण खंजाची साहूकार की कोठी में निवास कर रहे थे, तब मैंने उनके दर्शन किये। उस समय मेरी आयु 11 वर्ष की थी। व्याख्यान में बड़ी भीड़ होती थी परन्तु एक अजीब सा सन्नाटा सभा में दिखाई देता था। प्रशान्त सरोवर की तरह लोग शान्त चित्त होकर आपके मनोहर वचनों को सुनते थे। आपका वेश बड़ा सादा था। आप टोपा और मिर्जई पहने चौकी पर वीरासन लगाये एक देवमूर्ति के समान देदीप्यमान दिखाई देते थे। स्वर बड़ा मधुर तथा गम्भीर था। बहुत से आदमी तो आपका स्वरूप और शारीरिक अवस्था देखने तथा बहुत से श्लोक और मंत्र सुनने के लिए ही जाते थे। निदान सब ही आपके दर्शन से कुछ न कुछ प्राप्त कर लेते थे। मेरे चित्त में तभी से वैदिक धर्म का वह अंकुर उत्पन्न हुआ। मैं जब आगरा कालेज चला गया तो वहां पर देखा कि एक साधरण व्यक्ति चौबे कुशलदेव, जिन्होंने कि कुछ दिन तक स्वामी जी की रोटी बनाते हुए उनके चरणों की सेवा की थी, एक अच्छे उपदेश बन गये थे।

यह भी जान लेते हैं कि स्वामी दयानन्द 14 अगस्त सन् 1879 को बरेली आये थे और यहां 3 सितम्बर सन् 1879 तक 21 दिनों तक यहां रहे थे। इसी बीच उन्होंने यहां अनेक प्रवचन वा उपदेश दिये। आर्यजगत के विख्यात संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द ने भी अपनी किशोरावस्था में बरेली में ही स्वामी दयानन्द जी के दर्शन किये थे। इस दर्शन और दोनों, गुरु व शिष्य, के परस्पर वार्तालाप व शंका समाधान का ही परिणाम था कि स्वामी श्रद्धानन्द जो पहले लाला मुंशीराम जी कहलाते थे, वह महात्मा मुंशीराम होते हुए स्वामी श्रद्धानन्द बने और देश व समाज की उल्लेखनीय सेवा की। महर्षि दयानन्द की गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को साक्षात क्रियान्वयन का श्रेय भी उन्हीं को है। देश की आजादी से लेकर समाज सुधार और दलितोत्थान आदि अनेकानेक समाजोत्थान के महनीय कार्य उन्होंने किये।

पं. विष्णुलाल शर्मा जी से संबंधित उपर्युक्त विवरण सन् 1925 में आर्यमित्र पत्र के दयानन्द-जन्म-शताब्दी अंक में प्रकाशित हुआ था। इसका उल्लेख महर्षि दयानन्द के व्यक्तित्व व कृतित्व को अपने जीवन में अपने चिन्तन व लेखन का लक्ष्य बनाने वाले आर्यजगत के वयोवृद्ध विद्वान डा. भवनानीलाल भारतीय जी ने ‘मैंने ऋषि दयानन्द को देखा’ पुस्तक में भी प्रकाशित किया है। वही मुख्यतः हमारे इस लेख का आधार है। उनका हार्दिक धन्यवाद करते हैं। महर्षि दयानन्द ने व्यक्तित्व का ही कमाल है कि उनके यहां एक रोटी बनाने वाला व्यक्ति धर्मोपदेशक बन गया। हम स्वयं भी ऋषि दयानन्द के साहित्य को पढ़कर व विद्वानों के उपदेश सुनकर आज लेखों के माध्यम से कुछ नाम मात्र सेवा कर पा रहे हैं। महर्षि दयानन्द को सादर प्रणाम। ‘मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कुछ है सब तोर, तेरा तुझको सौंपते क्या लागत है मोर।’ इति।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here