‘दिल्ली के पूर्व पुलिस डिपूटी कमिश्नर ऋषिभक्त श्री ज्ञानेन्द्र अवाना का गुरुकुल पौंधा का भ्रमण एवं ब्रह्मचारियों को सम्बोधन’

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मनमोहन कुमार आर्य,

कल हमारी ऋषिभक्त श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी से देहरादून के प्रसिद्ध गुरुकुल में भेंट हुई। श्री ज्ञानेन्द्र जी दिल्ली पुलिस विभाग में डिपूटी कमिश्नर रहे हैं। वह 1 अगस्त, 2018 को वह सेवानिवृत हुए। कल फेसबुक पर उनका मैसेज मिला की वह देहरादून में हैं और मिलना चाहते हैं। सायं चार बजे गुरुकुल पौंधा में मिलने का कार्यक्रम निश्चित हुआ। हम वहां पहुंच गये और श्री अवाना जी निश्चित समय सायं 4.00 बजे पर अपने दो मित्रों एक पुलिस विभाग के श्री उम्मेद सिंह राठी और दूसरे सेना से सेवानिवृत कैप्टेन राज सिंह जी के साथ गुरुकुल पहुंचें। आचार्य डाॅ. धनन्जय जी श्री अवाना जी को पहले से जानते हैं। वह आज गुरुकुल में थे और उन्होंने अतिथि महोदय को अध्ययन कक्ष, गुरुकुल छात्रावास, सूटिंग रेंज, पुस्तकालय, पाकशाला, गोशाला, यज्ञशाला एवं सभाभवन आदि दिखाये और पूरे गुरुकुल का भ्रमण कराया। गुरुकुल की मासिक पत्रिका ‘आर्ष ज्योति’ और प्रकाशनों के विषय में भी उन्हें अवगत कराया गया। श्री अवाना जी से अनेक विषयों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि वह जब कक्षा 5 में पढ़ते थे तो उनके एक आर्यसमाजी शिक्षक श्री जांगे राम आर्य थे। वह स्कूली शिक्षा के बाद उन्हें सत्यार्थप्रकाश की शिक्षाओं से परिचित कराते थे। उनका श्री अवाना जी पर यह प्रभाव हुआ कि वह आर्यसमाज के निकट आने के साथ जीवन भर सत्यार्थप्रकाश की शिक्षाओं को आदर्श मानकर उस पर चलते रहे। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये सत्यार्थप्रकाश एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब भी वह किसी आर्यसमाज के विद्वान से मिलते हैं तो इस घटना को अवश्य प्रस्तुत करते हैं।

सबसे पहले हम गुरुकुल के अतिथि कक्ष में कुछ देर बैठे और वार्तालाप का दौर आरम्भ किया। श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी और डाॅ. धनंजय जी आपस में अनेक विषयों पर विचारों का आदान प्रदान करते रहे। उन्होंने यह भी बताया कि उनके तीन भाई हैं। उनका परिवार संयुक्त परिवार है। आज भी उनके नौयडा स्थित निवास पर एक ही रसोईघर में सबका भोजन तैयार होता है। उन्होंने बताया कि संयुक्त परिवार के अनेक लाभ हैं जो वह अनुभव करते हैं। श्री अवाना जी प्रतिदिन एक वेदमंत्र की संक्षिप्त व्याख्या जो सरल व सुबोध हो, फेसबुक आदि पर प्रसारित करते हैं। उन्होंने बताया कि सभी मतों के लोग उनकी इन व्याख्याओं को बहुत पसन्द करते हैं। उन्होंने इन व्याख्याओं का एक संग्रह अंग्रेजी अनुवाद सहित बहुत ही भव्य रूप में प्रकाशित भी कराया है। हमने उनकी पुस्तक में से कुछ को पढ़ा है। वस्तुतः उनकी यह व्याख्यायें अति सरल, सरस व सुबोध हैं और उन्हें पढ़ना आरम्भ करें तो छोड़ने की इच्छा नहीं होती। श्री अवाना जी ने बताया कि उनकी आरम्भ से पढ़ने में रूचि रही है। उन्होंने एक एक करके अनेक विषयों में मास्टर डिग्री प्राप्त की और कुछ टैक्नीकल विषयों व नये विषयों में भी अध्ययन कर उपाधियां प्राप्त की हैं। उन्होंने डाॅ. धनंजय जी को कहा कि वह अपने बच्चों को संस्कृत अध्यापन से इतर प्रशासनिक सेवा के लिये विभिन्न कम्पटीशन के विषयों का भी अध्ययन करायें जिससे वह देश की सभी बड़ी सेवाओं व पदों पर कार्य करने में समर्थ हो सकें। आचार्य धनंजय जी ने उन्हें बताया कि गुरुकुल में इस सबकी व्यवस्था है। कम्पटीशन से सम्बन्धित प्रतियोगिता दर्पण, करन्ट इवेन्ट्स, कम्पटीशन सक्सेस रिव्यू आदि मैगजीन भी नियमित रूप से गुरुकुल में आती हैं और बच्चे इन्हे पढ़ते हैं। यहां अनेक बच्चों ने जेआरएफ की परीक्षा भी उत्तीर्ण की हुई है और कई छात्र पी.एच-डी. कर चुके हैं व अनेक अब भी कर रहे हैं। अनेक बच्चों ने राष्ट्रीय स्तर की अनेक प्रतियोगिताओं में भी सफलतायें अर्जित की हैं। गुरुकुल की सफलता का दौर निरन्तर आगे बढ़ रहा है। भविष्य में गुरुकुल के विद्यार्थी नई सफलतायें प्राप्त करने के साथ सेवा क्षेत्र में ऊंचाईयों को छुयेंगे, ऐसी आशा की जाती है।

गुरुकुल परिसर का भ्रमण करने के बाद गुरुकुल के सभी बच्चों को श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने सम्बोधित किया। आचार्य डाॅ. धनंजय जी ने गुरुकुल के ब्रह्मचारियों को श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी का परिचय देते हुए बताया कि श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी के उन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन में गुरुकुल गौतमनगर में दर्शन किये थे। श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी प्रतिदिन एक वेदमन्त्र की सरल व सुबोध व्याख्या कर उसे फेस बुक के माध्यम से प्रसारित करते हैं। वह ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज के विचारों से प्रभावित हैं। डाॅ. धनंजय जी ने श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी को ऋषि दयानन्द का मानस पुत्र बताया। वह पुलिस विभाग में रहते हुए भी ऋषि दयानन्द के बताये सत्याचरण के सिद्धान्त पर चलते रहे और उन्होंने वहां अनेक पदोन्नतियां प्राप्त कर हमें गौरवान्वित किया है। आचार्य धनंजय जी ने अतिथि महोदय का स्वागत कर उन्हें गुरुकुल के ब्रह्मचारियों को सम्बोधित करने का अनुरोध किया।

अपने वक्तव्य के आरम्भ में श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने महर्षि दयानन्द को नमन किया। उन्होंने कहा कि मुझे आज यहां पहली बार आने से पूर्व ही गुरुकुल के विषय में जानकारी रही है। आचार्य धनंजय जी से मेरा पुराना परिचय है। मैं मनमोहन जी से फेसबुक पर जुड़ा हुआ हूं। मुझे गुरुकुल देखकर प्रसन्नता हुई है। मैंने इस गुरुकुल में वह विशेषतायें देखी हैं जो अन्य गुरुकुलों में देखने को नहीं मिलती। श्री ज्ञानेन्द्र जी ने अपना परिचय भी दिया। उन्होंने बताया कि जब वह कक्षा पांच के विद्यार्थी थे तो उन्हें श्री जागे राम आर्य नाम के एक अध्यापक पढ़ाते थे। धनंजय जी ने मुझे बताया है कि वह मेरे उन गुरुजी को जानते हैं। स्कूल की पढ़ाई कराने के बाद अतिरिक्त समय में वह हमें सत्यार्थप्रकाश पढ़ाते व उनकी शिक्षाओं व सिद्धान्तों से अवगत कराते थे। उनके पढ़ायें हुए सत्यार्थप्रकाश की मेरे पूरे जीवन में छाप रही है। सत्यार्थप्रकाश से मुझे प्रेरणा मिली कि मुझे सच्चाई के साथ अपना सभी काम करना है। पुलिस सेवा में मुझे सुविधायें भी रहीं हैं। मुझे कभी कोई कष्ट नहीं हुआ। आपने कहा कि मैं जीवन भर ऋषि दयानन्द और आर्य समाज के सिद्धान्तों पर चला हूं। मुझे इससे बहुत लाभ हुआ है तथा हानि कुछ भी नहीं हुई। उन्होंने ब्रह्मचारियों को कहा कि यदि जीवन में सफलता चाहते हो तो ऋषि दयानन्द और आर्य सिद्धान्तों का पालन करो। इससे आपको जीवन में कष्ट नहीं होगा और आप को सफलता मिलेगी। यह बातें मैं अपने 37 वर्षों के अनुभवों के आधार पर आपको कह रहा हूं।

गुरुकुल के ही ब्रह्मचारी रहे और अब आचार्य का कार्य कर रहे आचार्य शिव कुमार वेदी ने प्रश्न किया कि हम प्रशासनिक सेवा में जाने के लिये किस प्रकार से तैयारी करें? श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने कहा कि आप 70 प्रतिशत तो तैयार हैं। आपको अब मात्र 30 प्रतिशत तैयारी करनी है। जीवन में कर्मठता व अनुशासन होना चाहिये। आपका जीवन जुझारू होना चाहिये। आप जो निश्चय कर लें, उसे आपको हर स्थिति में पूरा करना है। आपको अपने भीतर से झिझक को दूर करना है। मनुष्य को हीन भावना ऊपर जाने नहीं देती। हम यह सोचते हैं कि दूसरा मुझसे बेहतर है। दूसरा व्यक्ति अंग्रेजी बोलता है, अच्छे कपड़े पहने हुए है, उसके पास गाड़ी और अन्य सुविधायें हैं, यह देखकर हमारे भीतर हीन भावना उत्पन्न होती है। श्री ज्ञानेन्द्र जी ने कहा कि यह हमारा भ्रम है और इसे हमें हटाना होगा। आप अपने आपको दूसरों से छोटा न समझे। अपने भीतर आत्म स्वाभिमान उत्पन्न करें। उन्होंने बताया कि गुरुकुलों के बच्चे सिविल सेवाओं में भी सफल हुए हैं। गुरुकुल के ब्रह्मचारी सारांश ने प्रश्न किया कि हम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करें? श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने कहा कि आप कम्पीटिशन की तैयारी के लिए प्रतिदिन एक घंटा मात्र दीजिये। प्रतियोगी परीक्षाओं से सम्बन्धित मैगजीनों को पढ़े। अपने पाठ्यक्रम को भी सामान्य रूप से पढ़े। आपकी तैयारी हो जायेगी। श्री ज्ञानेन्द्र जी ने बच्चों को समाचार पत्र नियमित रूप से पढ़ने की सलाह दी। बच्चों को समाचार पत्र का सम्पादकीय व उसके साथ वाले दो या तीन लेखों को पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि राजनीति के समाचारों को पढ़ने से कोई विशेष लाभ नहीं होता। अर्थशास्त्र, अन्तराष्ट्रीय समाचारों तथा खेल जगत के समाचार भी पढ़ने चाहियें। विद्वान वक्ता ने कहा कि समाचार पत्र के भीतर के पृष्ठों की सामग्री प्रथम पृष्ठ के समाचारों से अधिक उपयोगी होती है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को प्रतियोगिता दर्पण, कम्पटीशन सक्सेस रिव्यू, करन्ट इवेन्ट्स, इण्डिया टूडे तथा मनोरमा वार्षिकी जैसी पत्रिकायें व पुस्तकें भी पढ़नी चाहियें। ब्रह्मचारी दिनेश ने प्रश्न किया कि गणित, विज्ञान तथा अंग्रेजी आदि विषयों का प्रतियोगी परीक्षाओं में कितना महत्व होता है? इस प्रश्न का उत्तर भी विद्वान वक्ता ने दिया और कहा कि इन विषयों के अध्ययन का महत्व होता है। इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिये। श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने कहा कि भारत में जो लोग अंग्रेजी बोलते हैं उनका अंग्रेजी व्याकरण का ज्ञान अच्छा नहीं होता।

गुरुकुल के आचार्य धनंजय जी ने कहा कि पुलिस नागरिकों की सुरक्षा न कर शासन के बड़े अधिकारियों व नेताओं की सुरक्षा में अधिक रहती है। आम नागरिकों को अपनी उपेक्षा अनुभव होती है। आम नागरिक इस विषय में क्या सोंचे। श्री ज्ञानेन्द्र जी ने इस प्रश्न का अनुभव पर आधारित उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस में आम परिवारोें के लोग ही भर्ती होते हैं। वहां जाने के बाद वह जनता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते। इसका सरल उत्तर यह है कि उनको पूरा करने नहीं दिया जाता। उन्होंने कहा कि यह उत्तर ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे अपने पद पर रहते हुए न कभी किसी ने राजनीतिक प्रभाव व दबाव दिया और न मैंने कभी ऐसी किसी बात को माना। मैंने पुलिस विभाग में रहते हुए अपने विवेक से काम किये परन्तु मुझे इससे कभी दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने बताया कि एक बार इण्डियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर ने मुझसे पूछा कि आप अपने थोड़े से इंस्पेक्टरों को बदल बदल कर एसएचओ लगाते रहते हो। श्री अवाना जी ने कहा कि हमारे पास जितने व जैसे, योग्य व अयोग्य, इंस्पैक्टर होते हैं उन्हें ही बदल बदल कर लगाना होता है। योग्य मिलते हैं तो योग्य को लगाते हैं और न हो तो जो उपलब्ध होते हैं, उन्हीं को लगाना होता है। उन्होंने बताया कि मोदी सरकार के आने पर बायोमेट्रिक प्रणाली लागू की गई थी। हमारे विभाग में भी इस विषयक आदेश आये थे। मैंने इसके लिये प्रस्ताव बनाकर भेजा परन्तु स्वीकृति नहीं आई। मैंने उच्च अधिकारियों से भी बात की तो कहा गया कि वह स्वीकृति देंगे। उन्होंने बताया कि हमारे पुलिस विभाग के लोगों को दिन में 14 से 15 घंटे तक काम करना होता है। यदि हमारे यहां बायोमेट्रिक प्रणाली लागू की जाये तो इससे सच्चाई सामने आ सकती है। उन्होंने प्रश्न किया कि यदि कोई व्यक्ति 365 दिनों में प्रतिदिन 14 से 15 घंटे काम करेगा तो उसकी क्या स्थिति होगी। इनको ओवर टाइम भत्ता भी नहीं दिया जाता। श्री अवाना जी ने देश की आजादी के बाद से पुलिस कर्मियों के वेतन में निरन्तर गिरावट की बात कही। उन्होंने कहा कि आजादी के समय हमारे एक कांस्टेबल का वेतन प्राईमरी स्कूल के प्रधानाचार्य के बराबर होता था। अब हमारे इस्पेक्टर का वेतन प्राईमरी स्कूल के प्रधानाचार्य के बराबर है। उन्हें प्रतिदिन 14 से 15 घंटे काम करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इस कारण कुछ पुलिस कर्मी दूसरे काम करते हैं जिसकी जनता आलोचना करती है। इन विषयों से सम्बन्धित श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने अनेक बातें कहीं। यदि सभी को प्रस्तुत करेंगे तो लेख बहुत लम्बा हो जायेगा और शायद पाठकों को पढ़ने में असुविधा होगी। अतः कुछ अन्य बातें लिखकर इसे विराम देंगे।

गुरुकुल के ब्रह्मचारी और गुरुकुल की प्रसिद्ध पत्रिका ‘आर्ष ज्योति’ के सम्पादक श्री शिवदेव आर्य के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने कहा कि संविधान का मूल मौलिक आधार हैं। संविधान की धारा 14 सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देती है। देश के सभी कानून संविधान के नीचे हैं। विधियां अर्थात् प्रोसीजर्स संविधान में नहीं हैं। एफआईआर प्रोसीजर्स में आती है। संविधान की मूल भावना यह है कि भारत एक संप्रभुता सम्पन्न राष्ट्र है। इसे नहीं बदला जा सकता। उन्होंने यह भी बताया कि राज्य के तीन अंग हैं विधायिका, न्याय पालिका और कार्य पालिका। अपने अपने कार्यों में तीनों स्वतन्त्र हैं। संसद संविधान संशोधन कर परिवर्तन कर सकती है। केन्द्र व राज्य सरकारों के कर्तव्य व अधिकार भी बदले नहीं जा सकते। बदलने योग्य विषय हैं सम्पत्ति का अधिकार, प्रोसीजर्स आदि। बदलाव के लिये सरकार में इच्छा शक्ति व बहुमत चाहिये। उन्होंने कहा कि आईएएस और आईपीएस कानून को लागू करते हैं। उनमें कानून बनाने व संशोधन करने का अधिकार नहीं है। भारतीय सेना व पुलिस सबसे पहले संविधान के प्रति उत्तरदायी है। श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी ने अपने वक्तव्य को विराम देते हुए कहा कि वह चाहते हैं कि गुरुकुल के बच्चे कम्पटीशन में भाग लें और उनमें सफलता प्राप्त कर उच्चाधिकारी बनें। गुरुकुल के आचार्य डाॅ. धनंजय जी ने पूर्व पुलिस डिपूटी कमीशनर श्री ज्ञानेन्द्र अवाना जी का गुरुकुल पधारने और गुरुकुल के ब्रह्मचारियों को सम्बोधित करने के लिये धन्यवाद किया। उन्होंने श्री जागे राम आर्य को स्मरण किया और उनके गुणों व कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि श्री मांगे राम आर्य जी ने एक अध्यापक के दायित्व को पूरा करते हुए सत्यार्थप्रकाश का प्रचार कर एक बालक को सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा के साथ उनमें आईपीएस बनने का संकल्प उत्पन्न किया। आचार्य धनंजय जी ने गुरुकुल के ब्रह्मचारियों में ऋषि के सिद्धान्तों को धारण करने व उनका प्रचार करने की प्रेरणा भी की। इसी के साथ श्री अवाना जी का सम्बोधन और प्रश्नोत्तरों का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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  1. आपका लेख पढ़ कर मन को बहुत शांति मिली.मै भी लिखता रहता हूँ और प्रवक्ता डॉट कॉम पर पोस्ट रोजाना ही पोस्ट करता रहता हूँ |

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