हिंसा और राजनीति की भेंट चढ़ता बलात्कार विरोधी प्रदर्शन

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निर्मल रानी

देश की राजधानी दिल्ली में गत् 16 दिसंबर की रात चलती हुई बस में एक लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना अब एक नए मोड़ पर आ गई है। कहां तो इस घटना के विरोधस्वरूप दिल्ली सहित लगभग पूरे देश में शांतिपूर्ण विरोध मार्च व प्रदर्शन होते देखे जा रहे थे। पूरे देश में प्रदर्शनकारी लगभग एक समान मांग करते दिखाई दे रहे थे और वह यह कि बलात्कारियों के विरूद्ध फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकद्दमा चलाकर पीडि़त लड़की को यथाशीध्र संभव न्याय दिलाया जाए। और दूसरा यह कि भारतीय दंड संहिता में बलात्कार के विरुद्ध दिए जाने वाली सर्वाधिक सज़ा को आजीवन कारावास के बजाए फांसी में तब्दील किया जाए। बहरहाल सरकार द्वारा उपरोक्त दोनों ही बातों को स्वीकार करते हुए इस सिलसिले में सभी ज़रूरी वैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं।

रंतु इसी बीच इस पूरे घटनाक्रम में उस समय एक और नई हलचल पैदा हो गई जबकि नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के समक्ष हो रहे प्रदर्शन व दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को खदेड़े जाने के मध्य पैदा हुए गतिरोध के दौरान दिल्ली पुलिस के एक घायल हेड कांस्टेबल सुभाष तोमर की गत् 25 दिसंबर को प्रात:काल डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मौत हो गई। हेड कांस्टेबल सुभाष तोमर की मौत ने पूरे बलात्कार विरोधी प्रदर्शन, इसके तौर-तरीकों,प्रदर्शनकारियों को नेतृत्व प्रदान करने की जुगत में लगे सरकार के चिरपरिचित विरोधियों तथा बलात्कार पीडि़ता से हमदर्दी जताने वाले राजनीतिज्ञों की नीयत, इसकी दिशा व दशा पर ही सवाल खड़ा कर दिया।

हालांकि सुभाष तोमर की मौत को लेकर कई अलग-अलग तथा विरोधाभासी बयान सामने आ रहे हैं। परंतु इस बात से तो इंकार किया ही नहीं किया जा सकता कि दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल सुभाष तोमर की मौत उस समय हुई जबकि वह बावर्दी ड्यूटी पर थे तथा राष्ट्रपति भवन के समीप हो रहे प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों से मोर्चा ले रहे थे। जहां तक सुभाष तोमर की मौत पर विरोधाभासी बयानों का प्रश्न है तो दिल्ली पुलिस का कहना है कि सुभाष तोमर को पहले गंभीर चोटें आई उसके पश्चात उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

दूसरी ओर डॉक्टर्स का मत है कि उनकी मृत्यु हार्ट अटैक के कारण हुई है। जबकि घटना के चश्मदीद गवाहों का कहना है कि सुभाष तोमर अचानक बेहोश होकर गिर पड़े तथा उन्हें दिल का दौरा पड़ा। जबकि सुभाष तोमर के परिवार के लोगों का साफ कहना है कि उनकी मृत्यु के लिए प्रदर्शनकारी जि़ मेदार हैं। और प्रदर्शन के दौरान घायल होने के बाद ही उन्हें हृदयघात हुआ और वे मृत्युलाके में चले गए। परिजनों के अनुसार तोमर को पहले कभी भी दिल का दौरा नहीं पड़ा।

ऐसा नहीं है कि नई दिल्ली के इस ताज़ातरीन सामूहिक बलात्कार कांड में सुभाष तोमर की शहादत के बाद ही इस घटना को लेकर किसी प्रकार का विवाद खड़ा हुआ हो। इसके पूर्व भी दिल्ली की एक एसडीएम के समक्ष पीडि़ता द्वारा दर्ज कराए गए उसके बयान को लेकर एक अच्छा-खासा विवाद उस समय खड़ा हो गया था जबकि इस विषय पर दिल्ली की मु यमंत्री शीला दीक्षित ने यह कहा था कि दिल्ली पुलिस ने पीडि़ता का बयान दर्ज करने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाई थी। मु यमंत्री के इस वक्तव्य के बाद 24 दिसंबर को दिल्ली की एक मैट्रोपोलेटिन मजिस्ट्रेट के समक्ष पीडि़ता का बयान पुन: दर्ज कराया गया।

इस घटना के बाद ही यह स्पष्ट होने लगा था कि बलात्कार की इस दिल दहला देने वाली घटना को लेकर केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार तथा दिल्ली पुलिस प्रशासन के मध्य न तो तालमेल है न ही घटना को लेकर एकाग्रता व गंभीरता। बजाए इसके सभी पक्ष अपने-आप को घटना की ज़िम्मेदारी से बरी रखने तथा एक-दूसरे को नीचा दिखाकर उसपर आरोप प्रत्यारोप करने में ही लगे हैं। और संभवत: खींचतान के ही यह सब कारण ऐसे थे जिनके चलते विरोध प्रदर्शन आए दिन और अधिक फैलते गए, गंभीर होते गए, इनमें उठने वाले विरोध के स्वर और बुलंद होते गए। यहां तक कि ऐसे मौकों की तलाश में बैठे सत्ता विरोधी राजनीतिज्ञों को सरकार के विरोध का एक और शानदार अवसर मिल गया और आख़िरकार यह बात यहां तक जा पहुंची कि हेड कांस्टेबल सुभाष तोमर की इसी घटना से जुड़े प्रदर्शन के दौरान शहादत तक हो गई।

बहरहाल उपरोक्त सभी परिस्थितियों के बीच बलात्कार पीडि़ता लड़की को उसके माता-पिता व चार प्रमुख डॉक्टर्स की एक विशेष टीम के साथ 26 दिसंबर की रात सिंगापुर के माऊंट ऐलिज़ाबेथ अस्पताल के लिए ले जाया गया है। पीडि़ता को एक ऐसे विशेष विमान में ले जाया गया जिसमें आईसीयू की सुविधा भी उपलब्ध थी। निश्चित रूप से बलात्कार पीडि़त लड़की अभी भी जि़ंदगी और मौत के बीच संघर्षरत है। यदि डॉक्टरों की मानें तो पीडि़ता की शारीरिक हालत ठीक न होने के बावजूद उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा परिस्थितियों का सामना दृढ़ता से करने की उसकी मानसिकता उसके स्वास्थय में सुधार लाने में सहायक साबित हो रही है। और यही वजह है कि आतंरिक रूप से गंभीर चोटें होने यहां तक कि शरीर की आंतें तक निकाल दिए जाने के बावजूद तथा लगातार वेंटिलेटर पर बने रहने के बाद भी उसने एक नहीं बल्कि दो बार संबद्ध अधिकारियों को अपने बयान दर्ज कराए।

यदि भविष्य में बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को लेकर कोई स त कानून बनाया जाता है या ऐसे अपराधियों से निपटने के लिए उन्हें त्वरित रूप से सज़ा दिलवाए जाने हेतु फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने के उपाय किए जाते हैं तो इसमें पीडि़ता के साथ हुए दर्दनाक हादसे तथा इसके बाद इस हादसे को लेकर पूरे देश में आए उबाल की ही मू य भूमिका मानी जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि बलात्कार जैसी घिनौनी घटनाओं के लिए बदनाम हमारे देश में जहां कि प्रत्येक 22 मिनट में बलात्कार की एक घटना होने के आंकड़े बताए जाते हैं वहां 16 दिसंबर की रात नई दिल्ली में हुई सामूहिक बलात्कार की इस घटना ने पूरे देश के लोगों विशेषकर युवावर्ग को झकझोरकर रख दिया है।

परंतु इस घटना को लेकर होने वाले प्रदर्शनों, उसमें राजनैतिक दलों के लोगों की स्वार्थपूर्ण दखलअंदाज़ी तथा इसे हिंसक रूप देने की कोशिशों ने तथा बाद में इसी घटनाक्रम में दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल सुभाष तोमर की मौत ने तरह-तरह के सवाल भी खड़े कर दिए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि पूरे देश में इस घटना के विरुद्ध सड़कों पर निकले युवक व युवतियां ज़्यादातर छात्र समुदाय के ही थे तथा उनके प्रदर्शनों में केवल शांतिपूर्ण नारेबाज़ी, कैंडल मार्च निकालना तथा उनकी मांगों से संबंधित नारेबाज़ी ही दिखाई दे रही थी।

इन प्रदर्शनकारियों की प्रवृति भी हिंसात्मक कतई नहीं थी। ऐसे में आख़िर वह कौन सी ताकतें थीं जिन्होंने दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान आगज़नी भी कर डाली, पुलिस पर पथराव भी किया तथा गाडिय़ां भी क्षतिग्रस्त कीं। परिणामस्वरूप पुलिस को पानी की तेज़ बौछारें प्रदर्शनकारियों पर छोडऩी पड़ीं। आंसू गैस के गोले छोडऩे पड़े और बाद में लाठीचार्ज भी करना पड़ा। इस प्रकार की उग्रता के मोड़ तक प्रदर्शन को लाने का जि़ मेदार आख़िर कौन है? इसके पीछे की साजि़श आख़िर क्या थी? क्या कुछ ताकतें इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को बदनाम करना चाह रही थीं? या फिर बिना नेतृत्व वाले इस विशाल जनसैलाब को बिन मांगे अपना नेतृत्व दिए जाने का यह घटिया प्रयास था? और आख़िरकार इन्हीं टकरावपूर्ण परिस्थितियों के दौरान सुभाष तोमर जैसे दिल्ली पुलिस के होनहार व कर्तव्यनिष्ठ हेड कांस्टेबल को अपनी जान गंवानी पड़ी।

हालांकि सरकार द्वारा पूरे घटनाक्रम को लेकर जांच समिति गठित की दी गई है। घटना की गंभीरता पूरे देश में पहली बार इस विशाल स्तर पर हुए प्रदर्शनों के अलावा देश के वित मंत्री पी चिदंबरम के इस बयान से भी लगाई जा सकती है जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘वे इस घटना से बेहद शर्मसार हैं तथा पूरी मर्द ज़ात को शर्म से गड़ जाना चाहिएÓ। परंतु अपनी जगह पर यह बात भी बिल्कुल सत्य है कि ऐसे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के दौरान जबकि प्रदर्शनकारी शासन अथवा प्रशासन से किसी प्रकार की मांग कर रहे हों वहां हिंसा या टकराव की कोई भी स्थिति कतई मुनासिब नहीं है। हमारे देश की घिनौनी राजनीति में भी यह एक परंपरा सी बन गई है कि सत्ता विरोधी लोग ऐसे अवसरों की प्रतीक्षा में रहा करते हैं जबकि उन्हें आमलोगों को उकसाने,भड़काने, उनकी भावनाओं को झकझोरने तथा उन्हें हिंसा पर उतारु होने के लिए बाघ्य करने का मौका मिले। और ऐसे में प्राय: मुख्य मुद्दा पथ भ्रमित हो जाता है तथा लाखों प्रदर्शनकारियों की मेहनत,तपस्या व उनकी कुर्बानी पर पानी फिर जाता है। लिहाज़ा ज़रूरत इस बात की है कि हम संविधान में प्राप्त अहिंसक विरोध प्रदर्शनों के अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग तो अवश्य करें परंतु स्वंय इस बात पर पूरी नज़र रखें कि हमारे विरोध प्रदर्शन हिंसा की राह हरगिज़ अख्तियार न करने पाएं। हम यह भी ध्यान रखें कि राजनीतिज्ञों को ऐसे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को ‘हाईजैक’ करने का अवसर न मिले क्योंकि निश्चित रूप से ऐसे लोगों का नेतृत्व इनके राजनैतिक पूर्वाग्रह लिए हुए होगा जोकि प्रदर्शनकारियों की जायज़ मांगों व उम्मीदों पर पानी भी फेर सकता है।

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