वशीर साहब आप से यह उम्मीद नहीं थी ।

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मुझे याद नहीं है कि मैनें कहां पॄा था कि शहद से डूबें हुये हाथ में चिपके हुये तिलों के बराबर भी एक मुसलमान कसमें खाये तो उसका भरोसा नहीं करना चाहियें परन्तु मुझे लगता है कि किसी व्यक्ति के सम्बन्ध तो कोई भी जुमला सटीक हो सकता हो पर पूरी कौम को कैसे एक ही तराजू से तौला जा सकता है। पर जब मैनें यूटयूब पर वशीर बद्र साहब को कराची में एक मुशायरे में शिरकत करते हुये सुना तो सुन कर दंग रह गया जिनकी शायरी को में रहीम के दोहे की मानिन्द अता फरमाता था वही वशीर साहब पाकिस्तान में जाकर यह शब्द कहते हैं कि यहां में अपने लोगों के बीच में वह शेर पढने की हिम्मत कर पा रहा हूॅ जो में जहॉ रहता हॅू वहां पढ भी नहीं सकता। फिर उन्हौनें यह शेर पते हुये कहा कि मेरठ में उनका घर दो बार जलाया गया। उनके दुख में मैं भी शरीक हूॅ। घर किसी का भी जले उसे किसी भी प्रकार से जाया नहीं ठहराया जा सकता है पर पाकिस्तान में जाकर यह व्यक्त करना कि वह इस शेर को भारत में पढ नहीं सकतें अपने देश का मजाक बनाना नही तो क्या है ? शेर देखियें।

फाख्ता की मजबूरी है, ये कह भी नहीं सकता ।

कौन साँप रखता है उसके आशियानें में॥

बशीर साहब आपने इसी शेर को हिन्दुस्तान के तमाम मुशायरों में पॄा है पर पाकिस्तान में आपने इसे इस मुल्लमें के साथ पॄा कि वहां आप अपने लोगों के बीच में बेखौफ होकर अपने दिल की बात कह पा रहें हैं और यहां हिन्दुस्तान में आप दोयम दर्जे के नागरिक के रुप में जीवन जीते हैं। वशीर साहब दूसरा कोई और होता तो मुझे इतनी तकलीफ नहीं होती पर अपने देश में लोग आपको सुनने के लिये दूर दूर से इक्कठे होते हैं। मुझे याद है कि आज से कोई 15 साल पहले में कर्नाटका एक्सप्रेस से बंगलूरु जा रहा था और आप के अलावा तमाम नामचीन्ह शायर भी मुशायरे के सिलसिले में उसी गाडी से बंगलूरु जा रहे थे पर केवल आपकी झलक पाने के लिये रेल के अन्दर ही आपकी बोगी में प्रशंशकों की भीड जमा थी । इतने प्यार और इज्जत के बाद भी आप कराची मं” भारत के खिलाफ बोल कर आते हो तो फिर हमारी यह धारणा ही बलवती होती हैं कि मुसलमान जब तक अकेला होता है तब तक इश्क, मौहब्बत, अमन, वफा, दोस्ती, फर्ज की नफासत भरी जुबान में बातें करता है और जैसे ही वह स्वजाति के समूह में पहुंचता है उसकी भाषा जेहाद, काफिर और न जाने क्या क्या बोलने लगती है। वशीर भद्र साहब मेरे जैसे अनेकों आपके चाहने बाले आपके इस प्रकार के व्यबहार से दुखी हुये होगें। आपने भी अल्लामा इकबाल के रास्ते पर ही कदम बाया। जो भारत में रहते हुये गाते थे कि हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा और पाकिस्तान पहुचतें ही गाने लगें कि मुस्लिम हैं हम वतना है सारा जंहा हमारा।

बशीर साहब आप हिन्दुस्तान के नगीने के रुप में देश और दुनिया में जाते हो और आप भी जानते हैं पाकिस्तान समेत सारी दुनिया में मुसलमान भारत से ज्यादा सुकून और इज्जत से नहीं रहता है। आपको मध्यप्रदेश सरकार ने उर्दू अकादमी के अध्यक्ष पद पर सुशोभित किया है। भारत सरकार ने पदमश्री से नवाजा है। और आप अपने देश के खिलॉफ पाकिस्तान में जहर उगल कर आते हैं बडी कष्टदायक बात है यह।

3 COMMENTS

  1. बात माफ़ी की नहीं है, बात है खाए खसम की गाये भईया की. देश के बाहर जाकर देश की आलोचना करना ओंर संबेधानिक पद पर बने रहना . यह तो देशद्रोह है.

  2. बात सही है की एक इन्सान की सोच को उसकी पूरे कौम पर नहीं थोपी जा सकती लेकिन बशीर जैसों की मानसिकता चौंकाती है . इसी तरह से उर्दू के बारे में उसके गिरावट पर मशहूर शायर ‘ मजरूह ‘ सुल्तानपुरी ने एक बार कहा था ” मुसलमान अपनी जुबान से गया ” .क्या उर्दू सिर्फ मुस्लमान की जुबान है ? जबकी यह जुबान तो इम्पोर्टेड न होकर हिंदुस्तान की अपनी जन्मी बेटी है . ऐसी बातें हिकारत पैदा करती हैं और मुसलमानों को शक के दायरे में खड़ा करती हैं .

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