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व्यक्ति प्रकृति और संस्कृति के अनुकूल बनें शासन की नीतियां - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
बृजनन्दन राजू भविष्य के भारत की कल्पना करने से पहले हमें अपनी गौरवशाली परंपरा का स्मरण करना होगा। हम क्या थे कहां थे आज कहां हैं। वैदिक काल से ही हमने विश्व को देने का ही काम किया। आज हम जिस स्थिति में हैं हम विश्व को क्या दे सकते…