वाह ताज ….. एक शहंशाह का श्वान प्रेम ! …. ताज पर तकरार जारी। ..
इक शहंशाह ने बनवा के हसीन ताज महल
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक …..
प्यार की निशानी ! ….. कैसा प्यार ! …… जिसे पाने के लिए , उसके शौहर को क़त्ल करवाया ?
फिर जा के मुमताज़ बनी फोर्थ वाईफ ! महज़ यहीं पर बस नहीं तीन ‘मस्तुरात ‘ मियां और ले आए !
प्यार की इन्तिहा देखो उन्नीस बरस की मैरिड लाइफ में फोर्टीन बच्चे पैदा कर डाले ! नो मैटरनिटी लीव ! इनके प्यार के आगे तो मियाँ ‘ ….. शूकर -शूकरी भी शरमा जाएं !
ऐसा लगता है महाशय महज़ एक ही ‘खेल ‘ में माहिर थे ! अपनी बेगम को हमेसां प्रेग्नेंट ही रक्खा …. ऑल्वेज़ इन लेबर पेन ….. किसी भी हाल में अपने हमराह – हमराज़ ! …. अपनी चौदहवीं और अंतिम औलाद की उम्मीद से थीं ‘मैडम -मुमताज़ ‘ जब शाहजहाँ उसे दक्कन के जंग ऐ मैदान में साथ ले गए ! वहां अब किसी लेडी डाक्टर की तो तवक्को ही क्या की जा सकती थी …. हाँ जंगे मैदान में ज़ख़्मी सैनिकों के ‘जात्यादि तैल ‘ का फाहा लगाने को हक़ीम मौजूद थे।
काश जहाँ के शाह ने इतना महंगा ताज महल बनाने से पहले कोई ‘प्रसूति घर ‘ बनवाया होता और जिसे वे इतना प्यार ? करते थे , उसे जंग ऐ मैदान में नहीं ‘प्रसूति -घर ‘ में होना चाहिए था !
जनाब शहंशाह साहेब ! यह प्यार नहीं ! लस्ट फार सेक्स है ….
मुमताज़ महल लेबर पेन में सिसक सिसक कर जंग ऐ मैदान में अपने शौहर की हवस की शिकार हो गई … अब इसे इंसां की मुहब्बत का नाम दें या हैवानी हवस की इंतेहा !
मुमताज़ की कब्र की अभी मिट्टी भी नहीं थी सूखने पाई थी कि प्यार के दीवाने शहंशाह ने उसकी बहन से निकाह ऐ मेहर पढ़वा ली !
मुमताज की दीवानगी में ‘ताज ‘के तलबगार शहंशाह को उसकी ही औलाद औरंगज़ेब ने कारागार में डाल दिया ….. कारागार की घोर तन्हाई में भी शहंशाह की ‘लस्ट फार सेक्स ‘ जवान थी …. इस तन्हाई में उसका साथ दिया ‘बेटी ‘ जहाँआरा ने ! जहाँआरा की शक्ल और कुछ कुछ अक्ल मुमताज़ से मिलती थी। मुमताज़ अपनी अज़ीज़ जहाँआरा के लिए दस मिलियन रूपए की पूँजी छोड़ गई थी।
जेल की तन्हाइयों में शहंशाह को जहाँआरा का ही सहारा था …. बाप बेटी का यह प्यार ‘श्वान ‘ प्रेम की मानिंद था …. आम ो ख़ास में काना -फ़ूसी होने लगी …. तो मुल्लाओं ने कुरआन ऐ हदीसों में से एक फ़तवा ढून्ढ निकला ‘ बाग़ के पेड़ के फलों पर सबसे प ह ला हक़ माली का है ‘ .