कल्याण मार्ग के पथिक – कल्याण सिंह

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-विनोद बंसल

राष्ट्रीय प्रवक्ता-विहिप

“मैं इस बात से जुड़े एक-एक बिंदु का स्पष्टीकरण देने के लिए तैयार हूँ कि मैंने अथवा मेरे साथियों, सहयोगियों या मेरी सरकार ने कहीं किसी प्रकार से कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट नहीं किया है। क्या मैं गोली चला देता? NIC की मीटिंग में मैंने स्पष्ट किया कि गोली नहीं चलाऊँगा, गोली नहीं चलाऊँगा, गोली नहीं चलाऊँगा।”

उन्होंने एक बार यह भी बेबाक बोला था कि “6 दिसम्बर को लगभग 1 बजे जब केंद्र सरकार के गृह मंत्री चव्हाण जी का मेरे पास फ़ोन आया, उन्होंने कहा कि मेरे पास यह सूचना है कि कार सेवक गुम्बद पर चढ़ गए हैं, आपके पास क्या सूचना है? मैंने कहा, मेरे पास एक कदम आगे की सूचना है कि उन्होंने गुम्बद को तोड़ना भी शुरू कर दिया है। लेकिन ये बात लिखकर ले लो चव्हाण साहब, मैं कार-सेवकों पर गोली नहीं चलाऊँगा। लेकिन हाँ, गोली चलाने के अलावा जो भी काम हालात को नियंत्रण में लाने के लिए किया जा सकता है वो हम कर रहे हैं।” कल्याण सिंह जी के ये शब्द आज भी मेरे कानों में गूंज रहे हैं।

उनकी हिम्मत को भी दाद देनी पड़ेगी। एक सार्वजनिक भाषण में उन्होंने कहा था कि “कोर्ट में केस करना है तो मेरे खिलाफ करो। जाँच आयोग बिठाना है तो मेरे खिलाफ बिठाओ। किसी को सजा देनी है तो मुझे दो।” जैसे ही उस बाबरी ढाँचे की ईंटें गिरीं, दिलेरी के साथ, यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबू कल्याण सिंह जी ने अपने पद से त्यागपत्र सौंप दिया। इसके बाद वो मीडिया के सामने आए और कहा, “मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है। कोई दुख नहीं है। कोई पछतावा नहीं है। ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान। राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूँ। केंद्र सरकार कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकती है।  क्योंकि मैं ही हूँ, जिसने अपनी पार्टी के बड़े उद्देश्य को पूरा किया है।”

बाबू कल्याण सिंह जी को इतिहास पुरुष बताते हुए अपने श्रद्धासुमन में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) उपाध्यक्ष तथा श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महा सचिव श्री चंपत राय ने 21 अगस्त को कहा कि ‘बाबू जी का देहावसान यद्यपि भारतीय समाज के लिए अपूरणीय क्षति है तथापि, भावी काल में वे इतिहास पुरुष कहलाये जाएँगे। निहत्थे राम भक्तों पर गोली नहीं चलाई जायेगी तथा ६ दिसम्बर को या उसके पूर्व अयोध्या में अधिकारियों ने जो कुछ किया,  मेरे आदेश से किया,  इसकी सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी मेरी है।  ऐसी घोषणा करने का आत्मिक साहस रखने वाले वे थे। उनका राजनीतिक जीवन अनुकरणीय है। मैं भावपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ । परम पिता परमात्मा उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करें , यह कामना है।“

श्री राम मंदिर की नीव की ईंट की संज्ञा देते हुए विहिप कार्याध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक कुमार ने कहा कि “हिंदुत्व के पुरोधा आदरणीय कल्याण सिंह जी के निधन की दुखद सूचना मिली। वे अयोध्या के श्रीराम मंदिर की नींव में है और उसके शिखर पर भी हमेशा रहेंगे। उनको विनम्र श्रद्धांजलि। ॐ शांति।“

अपने एक संदेश में विहिप के ही सँयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र कुमार जैन  ने @VHPDigital के माध्यम से किए ट्वीट में कहा कि “बाबरी ढांचा विध्वंस की समस्त जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व प्रखर रामभक्त श्री कल्याण सिंह जी के निधन पर विश्व हिंदू परिषद शोक व्यक्त करता है। ॐ शांति: शांति: शांति:।“

प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “कल्याण सिंह के माता-पिता ने उन्हें कल्याण नाम दिया था। उन्होंने पूरे जीवन अपने नाम को सार्थक किया। वो कल्याण सिंह थे और उन्होंने जनकल्याण ही अपना मंत्र बनाया। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी, जनसंघ और पूरे परिवार को अपना जीवन समर्पित किया। कल्याण सिंह भारत के कोने-कोने में एक विश्वास का नाम बन गए थे। एक प्रतिबद्ध निर्णय कर्ता का नाम बन गए थे और जीवन के अधिकतम समय वो जनकल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नरत रहे।’

एक अन्य संदेश में उन्होंने यह भी कहा कि “हमने एक सामर्थ्यवान नेता खोया है। मैं भगवान प्रभु श्री राम के चरणों में प्रार्थना करता हूं कि प्रभु राम कल्याण सिंह जी को अपने चरणों में स्थान दें। प्रभु राम उनके परिवार को इस दुख की घड़ी में इस दुख को सहन करने की शक्ति दें।“

5 जनवरी 1932 को जन्मे कल्याण सिंह जी के पांच दशक से अधिक लंबे सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक कालखंड का स्मरण एक विशिष्ट ऊर्जा का संचार करता है। चाहे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण महायज्ञ में अपनी आहुति लगाने वालों की बात हो या संकल्प पूर्ति हेतु सत्ता को तिलांजलि देने वालों की, अपनी दूरदर्शी नीतियों से सत्ताधारियों के लिए नवीन मानक स्थापित करने वालों की बात हो या जन कल्याण में स्वयं को होम कर देने की, कल्याण सिंह का नाम सदैव स्मरण किया जाएगा।

गांव की पगडंडियों से होते हुए राजनीति का ‘सिंह’ बनने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, दो राज्यों के राज्यपाल तथा श्री राम मंदिर आंदोलन के प्रणेताओं में से एक श्री कल्याण सिंह भले ही 21 अगस्त 2021 को सशरीर हमारे बीच नहीं रहे, किन्तु धर्म, राजनीति सत्ता और व्यवस्था में उन्होंने जो लकीरें खींची वे सदैव अविस्मरणीय रहेंगीं। एक ओर लालू प्रसाद व मुलायम सिंह जैसे नेता राम द्रोही के रूप में जाने जाते हैं वहीं कल्याण सिंह को सदैव एक प्रखर राम भक्त के रूप में चिरकाल तक जाना जाएगा।  

अपने एक लेख में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी लिखते हैं कि “वह व्यवस्था के संचालन में हनक और धमक के प्रयोगधर्मी थे तो लोकजीवन में लोकराज और ग्रामराज के पक्षधर भी। उनका सूत्र था कि ‘सत्ता धमक व इकबाल से चलती है। इससे सिस्टम कोलैप्स नहीं होता है। राजनेता का काम सिस्टम को बनाए रखना है।’ वैचारिक दृष्टि से वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के ‘एकात्म मानववाद’ से प्रभावित थे। इसीलिए उनकी चिंता में समाज के प्रत्येक पीड़ित और वंचित व्यक्ति का दर्द और उसका समाधान ढूंढने की चेष्ठा शामिल थी। एकात्म-मानववाद की मीमांसा में वह कहते थे कि ‘पेट को आहार, मन को प्यार, मस्तिष्क को विचार और आत्मा को संस्कार, इन चारों का समुच्चय ही एकात्म-मानववाद है।’ उनका मानना था कि रोटी, कपड़ा और मकान मानवीय जरूरतों का सिर्फ एक हिस्सा हैं। इससे मानवता परिपूर्ण नहीं होती। पेट के लिए आहार अनिवार्य है, लेकिन मनुष्य के पास एक अंत:करण भी है जिसे प्यार चाहिए। सच्चा अंत:करण वही है जो स्नेह, करुणा और समानुभूति से आप्लावित हो। समानुभूति का अर्थ है पीड़ित व्यक्ति के बराबर पीड़ा की अनुभूति। इसके आगे सहानुभूति बहुत ही सीमित अर्थ वाला शब्द है। इन विचारों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कल्याण सिंह जी कतार में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के साथ कितनी गहरी संवेदना के साथ जुड़े हुए थे।

1991 व 1999 में वे चाहे सीमित काल खंड में ही मुख्यमंत्री रहे किन्तु छोटे कालखंड में बड़े कीर्तिमान उनके नाम हैं। शिक्षा के निरंतर गिरते स्तर में आमूल-चूल बदलाव हेतु प्रसिद्ध “नकल विरोधी कानून” का साहस उन्होंने ही दिखाया। अपराधियों पर नकेल कसने हेतु यूपी पुलिस में ‘स्पेशल टास्क फोर्स’ का गठन आज भी आतंकियों व गेंगस्टरों के लिए प्राणघातक बना हुआ है। ग्राम विकास हेतु ग्राम पंचायतों को “ग्राम सचिवालय” उन्होंने ही दिए। किसानों के लिए “ग्राम जोत बही” की घोषणा से राज्य के अन्नदाताओं को बड़ा संबल मिला। उत्तर-प्रदेश के पूर्वाञ्चल व बुंदेलखंड जैसे वंचित व पिछड़े क्षेत्रों के लिए ही तो उन्होंने पूर्वाञ्चल विकास निधि व बुंदेलखंड विकास निधि बनाई थी।

मात्र 35 वर्षीय कल्याण सिंह 1967 में पहली बार अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा सीट से जीत कर यूपी विधान सभा में पहुंचे। हालांकि, 1962 में अलीगढ़ की इसी अतरौली विधानसभा सीट पर 30 साल के कल्याण सिंह, जब जनसंघ की ओर से लड़े तो उनके हिस्से में हार आई थी किन्तु, 1967 तक के पांच वर्षों में कल्याण सिंह जी ने खुद को खूब तपाया, जलाया और गलाया। उसका परिणाम यह रहा कि जब वह 1967 में जीते तो ऐसे जीते कि 1980 तक लगातार विधायक रहे। वे 9 बार विधायक रहे। बुलंदशहर की डिबाई विधानसभा सीट से भी वे दो बार विधायक बने। किन्तु बाद में उन्होंने वह सीट छोड़ दी। वे दो बार मुख्यमंत्री बने। 2004 व 2009 में दो बार सांसद भी चुने गए। 2014 में वे राजस्थान के राज्यपाल बने।   

       कल्‍याण सिंह जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ में आए थे। जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो रामनरेश यादव सरकार में उन्‍हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। 6 अप्रैल 1980 को भाजपा के  गठन के बाद उन्हें पार्टी का प्रदेश महामंत्री बना कर प्रदेश पार्टी की कमान भी सौंप दी थी। इसी बीच अयोध्या आंदोलन की शुरुआत हो गई जिसमें उनकी गिरफ्तारी ने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार किया। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के विरुद्ध बिगुल फूंक दिया। राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में भाजपा का उभार हुआ और जून 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई।

जीवन पर्यंत वे गरीबों, वंचितों, शोषितों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के कल्याण में लगे रहे। देश, धर्म, संस्कृति व राजनीति में उनके विशेष योगदान के कारण ही अयोध्या में राम मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग का नाम कल्याण मार्ग रखे जाने की घोषणा की गई है। वे सच्चे अर्थों में कल्याण मार्ग के ही पथिक थे जो सदैव हम सभी को प्रेरणा देते रहेंगे।  

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