हटेगा,गुमनामी बाबा के रहस्य से पर्दा !

gumnamibabaसंजय सक्सेना

हिन्दुस्तानी हुकूमतें चाहें तो किसी भी राज से पर्दा उठ सकता है और न चाहें तो जनता सिर पटक कर मर जाये,लेकिन किसी को कुछ पता नहीं चलता है। अगर ऐसा न होता तो फैजाबाद के गुमनामी बाबा (जिनके बार में आम धारणा यही है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कौन थे।) के रहस्य से कब का पर्दा उठ गया होता। भगवान राम की नगरी अयोध्या (फैजाबाद) के गुमनामी बाबा की मृत्यु के 31 साल बाद पहली बार ऐसा लग रहा है कि शायद गुमनामी बाबा के रहस्य से पर्दा उठ जाये। जो काम तीन दशक पहले हो जाना चाहिए था,वह अब होगा, वह भी अदालत के आदेश से। निश्चित तौर पर इसके लिये अगर कोई सबसे अधिक कसूरवार है तो कांगे्रस की सरकारें और उसके नेता हैं। नेता जी के कांगे्रस के बड़े नेताओं का दुराव छिपा हुआ नहीं है। नेताजी की शख्सियत के सामने कांगे्रस के दिग्गज नेता बौने न हो जायें इसलिये कांगे्रस के कैसे-कैसे कुच्रक रहे थे,किसी से छिपा नहीं है।
गुमनामी बाबा की मौत के तीन दशकों के बाद अ बवह चीजें सार्वजनिक हो रही हैं जो उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल थीं,जिन्हें गुमनामी बाबा ने बहुत सहेज कर रख छोड़ा था।इन्हें गुमनामी बाबा की आखिरी निशानियांे के तौर पर भी देखा जा सकता हैं। बात गुमनामी ने बेहद ही रहस्यमयी जिंदगी गुजारी थी,लेकिन न जाने क्यों उनके करीबियों को हमेशा यही लगता था कि देश के महान सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस से गुमनामी बाबा की सिर्फ शक्ल ही नहीं मिलती थी,बल्कि जिस तरह की चीजें नेताजी इस्तेमाल करते थे वैसी ही चीजें गुमनामी बाबा के पास भी थी। 1985 में उनके निधन के बाद उनका सामान जिला कोषागार में सील लगाकर रख दिया गया था। उनके सामान की पड़ताल से शायद इस बात का जवाब मिले की नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनमें क्या रिश्ता था। फैजाबाद के गुमनामी बाबा के अभी 32 में से जो 3 बॉक्स खोले गए हैं उनमें रोजमर्रा की चीजें और बांग्ला और अंग्रेजी की कुछ किताबें और तस्वीरें मिली हैं। इन तस्वीरों में नेताजी के माता-पिता जानकीनाथ बोस और प्रभावती बोस और परिवार के लोग दिखाई दे रहे हैं। गुमनामी बाबा के बक्से से तमाम ऐसे खत भी मिले जो आजाद हिंद फौज के कमांडर और अन्य अधिकारियों ने उन्हें लिखे थे। इसमें प्रमुख तौर पर आजाद हिंद फौज के कमांडर बताए जा रहे पवित्र मोहर राय का वो पत्र भी शामिल है, जिसमें गुमनामी बाबा को कभी स्वामी, तो कभी भगवन कहकर संबोधित किया गया है।
खैर, एक तरफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस और दूसरी तरफ गुमनामी बाबा की तस्वीर, दशकों से देश के करोड़ों लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि ये दो तस्वीरें क्या एक ही शख्स की थीं, क्या नेताजी और गुमनामी बाबा एक ही थे। इन सवालों का जवाब कई सालों से फैजाबाद के कलेक्ट्रेट कोषागार में बंद था। कोर्ट के आदेश के बाद हाल ही में प्रशासनिक टीम की मौजूदगी में कोषागार में बक्सों में रखे सामान के कुछ तालांे को खोला गया। यह सामान 24 बड़े लोहे के बॉक्स में रखा था और 8 छोटे, कुल मिलाकर 32 बक्सों में रखा था। हाईकोर्ट के आदेश के साढ़े तीन साल बाद इस मामले में जांच के लिए उत्तर प्रदेश शासन ने हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज विष्णु सहाय की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया है। आयोग का कार्यकाल छह महीने का होगा, जरूरत पड़ने पर सरकार इसे बढ़ा सकती है। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 31 जनवरी 2013 को दिए अपने फैसले में सरकार को तीन महीने में सेवाानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग बनाने का आदेश दिया था।
गुमनामी बाबा का फैजाबाद में 16 सितंबर 1985 को निधन हो गया था। गुमनामी बाबा हमेशा लोगों से दूरी बनाए रखते थें। नेताजी के रिश्तेदार अक्सर यहां उनसे मिलने आते थे। बाबा की मृत्यु के बाद उनकी भतीजी ललिता बोस भी 1986 में फैजाबाद आई थी। चश्मदीदों के अनुसार गुमनामी बाबा के समान देखकर उन्होंने कहा था कि यह कोई और नहीं बल्कि नेताजी ही थे।
गौरतलब हो, सुभाष चंद्र बोस विचार मंच ने हाईकोर्ट में रिट दायर की थी कि गुमनामी बाबा की पहचान को सामने लाया जाए और उनके सामान को सुरक्षित रखा जाए। हाईकोर्ट ने 31 जनवरी 2013 को आदेश दिया था कि गुमनामी बाबा के सामान को सुंरक्षित करने के लिए तीन महीने के भीतर संग्रहालय बनाया जाए। यही नहीं, कोर्ट ने उन्हें असाधारण व्यक्ति मानते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया था कि आयोग गाठित कर उनकी पहचान को लेकर उठ रहे सवालों को साफ किया जाए। इस आदेश के तहत राज्य सरकार ने गुमनामी बाबा के समान को अयोध्या के राम कथा संग्रहालय में रखवा दिया था, लेकिन लंबे समय तक आयोग के गठन का फैसला लटका रहा। 23 जनवरी 2016 को जब केंद्र सरकार ने नेताजी से जुड़ी 100 सीक्रेट फाइलें सार्वजनिक की तो उसके बाद नेताजी के परिवार ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। नेताजी के परिवार की मांग का असर हुआ और अब गुमनामी बाबा के सामानों को सार्वजनिक किया जा रहा है। बताते चलें की गुमनामी बाबा कौन थे इसका पता लगाने के लये बने मुखर्जी कमीशन ने भी माना था कि गुमनामी बाबा के पास से मिली चीजों में और नेताजी जिन चीजों का इस्तेमाल करते थे, उनमें बहुत समानता दिखाई देती थी। अब वक्त आ गया है जब दुनिया भी गुमनामी बाबा से जुड़ी चीजों को देख पाएगी। 28 जून को गृह विभाग ने इस पर निर्णय लेते हुए जस्टिस विष्णु सहाय की अध्यक्षता में आयोग के गठन की अधिसूचना जारी की है।
गुमनामी बाबा को सबसे करीब से जानने वाले शहर के एकमात्र जीवित शख्स डाॅ.आरपी मिश्रा है, लेकिन वह इस बारे में कभी किसी से कोई बात नहीं करते। वह 1975 में गुमनामी बाबा के भक्त बने और बस्ती से उन्हें अयोध्या लाए। उनका भेद न खुले इसलिए 1983 में फैजाबाद के ‘रामभवन‘ में उनके लिए दो कमरे किराये पर लिए, जहां बाबा एकांत में रहते थे। पर्दे के पीछे से ही लोगों से बातचीत करते और रात में ही उन्हें जानने वाले उनसे मिलने आते थे। 16 सितंबर 1985 को गुमनामी बाबा का जब देहांत हुआ तो उनके शिष्यों ने 18 सितंबर को बाकायदा तिरंगे मे पार्थिव शरीर को लपेटकर सरयू तट के गुप्ता घाट पर लोगों की उपस्थिति में अन्तिम संस्कार किया था। इसके बाद जब बाबा का सामान खुला तो उन्हें नेताजी सुभाषचंद्र बोस मानने वालों की भीड़ लग गई थी।
जांच आयोग की ओर से गुमनामी बाबा कौन थे ? कहां से आए थे? उन्हें अमरिकी दूतावास पत्र क्यों लिखता था ? नेता जी का सामान उनके पास कहां से आए ? आजाद हिंद फौज के अफसर , खुफिया प्रमुख से लेकर परिवार व दोस्त- रिश्तेदार क्यों संपर्क में थे ? इसकी पड़ताल शुरू होते ही सच्चाई सामने आने लगेगी।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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