अनिल अनूप
ऑल इंडिया प्रोसैसर्स एसोसिएशन की प्लेटिनम जुबली पर बोलते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भोजन की बर्बादी पर चिंता व्यक्त की और कहा कि बेहतर तरीकों के उपयोग और वितरण से इसे रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश में खाद्यान्न की कमी नहीं है, लेकिन इसकी बर्बादी नैतिक तौर पर ठीक नहीं है। उन्होंने इसी प्रकार फसलों के तैयार होने के बाद होने वाले नुकसान पर भी चिंता व्यक्त करते हुए कहा देश में इससे सालाना 1 लाख करोड़ रुपए की क्षति होती है। उन्होंने इसे एक त्रासदी करार देते हुए कहा कि आधारभूत सुविधाओं और भंडारण के अभाव में यह नुकसान होता है। इस क्षति को रोकने में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। राष्ट्रपति ने खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं के विकास तथा कोल्ड चेन की स्थापना के लिए निवेश पर जोर देते हुए कहा कि सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है।
गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व देश के सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार का ध्यान शादी-विवाह जैसे समारोह में भोजन की बर्बादी की ओर दिलाया था। दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित करते हुए कहा कि वह खर्चीली शादियों में मेहमानों की संख्या सीमित करने और ऐसे समारोहों में खानपान की बर्बादी रोकने के लिए कैटरिंग व्यवस्था को संस्थागत बनाने की नीति तैयार करने पर विचार कर रही है। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाले पीठ को दिल्ली के मुख्य सचिव विजय कुमार देव ने बताया कि अदालत के पांच दिसम्बर के आदेश में उठाए गए इस मुद्दे पर चर्चा की गई है। इस आदेश में अदालत ने शादी समारोहों में खाने की बर्बादी और पानी के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की थी। अदालत में मौजूद देव ने कहा कि सरकार अदालत की सोच की दिशा में ही काम कर रही है और उसका प्रयास दिल्ली की जनता के हितों में संतुलन कायम करना है। देव ने कहा कि उन्होंने इस मामले में उपराज्यपाल से चर्चा की है और ऐसा लगता है कि उपराज्यपाल के साथ इस विषय पर सहमति है। उन्होंने कहा-एक ओर हम मेहमानों को नियंत्रित कर सकते हैं और दूसरी ओर खाद्य सुरक्षा व मानक कानून के तहत कैटरर और बेसहारा लोगों को भोजन उपलब्ध कराने वाले गैर सरकारी संगठनों के बीच एक व्यवस्था बनाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि प्राप्त सूचना के अनुसार दिल्ली में शादी-विवाह समारोहों में बचा हुआ भोजन बर्बाद हो जाता है या फिर बचा हुआ भोजन कैटटर बाद में होने वाले शादी समारोहों में इस्तेमाल करते हैं। पीठ ने देव से कहा कि पहले इस मामले में एक नीति तैयार की जाए उसके बाद दूसरा बड़ा कदम ठीक से इस पर अमल करना होगा। दिल्ली सरकार के वकील ने नीति तैयार करने के लिए आठ हफ्ते का समय देने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में सभी कैटरर के पास लाइसेंस है और वे खाद्य सुरक्षा व मानक कानून के तहत पंजीकृत हैं। पीठ ने मुख्य सचिव को अगले छह हफ्ते के भीतर इस मामले में नीति तैयार करने का आदेश दिया और इसे पांच फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। पीठ ने कहा कि मुख्य सचिव कह रहे हैं कि समारोहों में बासी खाने के सामान का इस्तेमाल होता है। ऐसे समारोहों में परोसे जाने वाली खाद्य सामग्री की गुणवत्ता के निरीक्षण की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। पीठ ने अपने आदेश में इस तथ्य का भी जिक्र किया कि मुख्य सचिव ने अदालत को सूचित किया है कि विवाह समारोहों में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए एक रणनीति पर काम किया जा रहा है।
देश के राष्ट्रपति ने कृषि उत्पाद को संभालने व वितरण को लेकर सरकार का ध्यान आकर्षित किया है। वहीं देश के सर्वोच्च न्यायालय ने शादी-विवाह या अन्य बड़े समारोहों में बर्बाद हो रहे भोजन प्रति सरकार को सचेत किया है। देश में खाद्य पदार्थों की कमी नहीं है लेकिन इसके बावजूद देश में लाखों-करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं। इसका मुख्य कारण व्यवस्था की असफलता व समाज की उदासीनता कही जा सकती है। एक तरफ करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं तो दूसरी तरफ धनाढ्य वर्ग के समारोहों में और पांच सितारा होटलों इत्यादि में भोजन बर्बाद हो रहा है। दिल्ली में किए गए सर्वेक्षण को लेकर बर्बाद हो रहे भोजन के जो तथ्य सामने आए हैं वह करीब हर छोटे-बड़े शहर में भी देखने को मिल जाते हैं। समाज में बढ़ते दिखावे के कारण केवल खाद्य पदार्थों की बर्बाद नहीं हो रही, समय और धन की बर्बादी भी हो रही है। मात्र दिखावे के लिए इतना कर्ज उठा लिया जाता है कि जिसके दबाव में कई बार परिवार ही टूट जाता है। दिल्ली सरकार का यह कहना बरातियों की संख्या निर्धारित करने बारे सोच रही है, उचित दिशा की ओर बढऩा ही माना जाएगा।
अतीत में जाएं तो आपातकाल के समय भी खाद्य पदार्थों को बचाने के लिए देशभर में कदम उठाए गए थे, पर जिस ढंग से उन्हें लागू किया गया उससे सरकार की बदनामी अधिक हुई थी। समय की मांग है कि कृषि उत्पाद को संभालने और भोजन को बर्बाद होने से बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। लेकिन इससे पहले जन साधारण को जागरुक करने के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए। मात्र दण्ड से काम नहीं बनने वाला। जनता का जागरुक होना और उसका सहयोग मिलना ही सफलता का आधार हो सकता है।