राहुल गांधी द्वारा करूणा रस पैदा करने के असफल प्रयास

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

इधर राहुल गांधी ने भी देश भर में घूमना शुरू कर दिया है। राजस्थान से लेकर गुवाहाटी तक सब जगह जिज्ञासा और उत्सुकता से देश को देख रहे हैं। नेहरू परिवार की चौथी पीढ़ी का यह परिवार , जिसमें देशी विदेशी मूल के अनेक लोग भी शामिल हो चुके हैं , भी फिलहाल देश के लोगों की हालत में रूचि ले रहा है यह देखकर सुकून होता है । वैसे तो नेहरू जी के समय से ही इस परिवार ने देश के मसलों के बजाय कोरिया, मिस्र और लातिनी अमेरिका जैसे देशों के मामलों में रूचि ज्यादा लेनी शुरु कर दी थी । तब यह कहा जाता था कि देश के मसले तो घर की बात है , जब पंडित नेहरु विदेशी मामलों में हुंकारते हैं तो भारत का सम्मान बहुत ज्यादा बढ जाता है । जरुर बढता होगा , लेकिन घर को कमजोर देख कर चीन ने जल्दी ही भारत की बाहर की इज्जत भी खाक में मिला दी । राजीव गांधी तक आते-आते भारतीय मानुष की बजाय विदेशी मानुष में भी रूचि काफी बढ़ गयी थी। राहुल गांधी और प्रियंका तक आते-आते इस परिवार में से भारत सिमटता जा रहा है और इटली, कोलम्बिया और यूरोप के दूसरे न जाने कौन-कौन से देश प्राथमिकता हासिल करते जा रहे हैं।अब तो सुना है परिवार के लोग छुट्टियाँ मनाने , जन्म दिन rahul02 और इलाज इत्यादि करवाने के लिये भी बाहर ही जाते हैं । ऐसे वातावरण में जब राहुल गांधी इस देश के बारे में यहां के लोगों से संवाद स्थापित करने का प्रयास करते हैं तो सचमुच ख़ुशी होती है ।

​लेकिन राहुल गांधी की अपनी कठिनाईयां हैं, जिसके लिये उनको दोष नहीं दिया जा सकता । उनके संस्कार और वातावरण ऐसा रहा कि इस देश के इतिहास, संस्कृति और इसके लोगों के बारे में जानने का उन्हें मौका नहीं मिला। यह भी कहा जा सकता है कि इस प्रकार के कामों के लिये उनके पास फुरसत ही नहीं थी। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इस प्रकार के धंधों में उनकी रूचि ही नहीं थी। लेकिन उन्हें शक का लाभ दिया जाना चाहिये । उन्होंने पिछले तीन चार दशकों से अपने घर को ही देखा है , अपने परिवार की ही कहानियां सुनी हैं या थोड़ा बहुत अपनी मां से इटली और यूरोप के इतिहास के बारे में जाना होगा। लेकिन अब इस राजवंश की राजनैतिक विवशता है कि युवराज को आमलोगों से बातचीत करने के लिये सार्वजनिक स्थानों पर जाना पड़ता है । देश में राजशाही होती तो शायद इसकी भी जरूरत न पड़ती। सीधा-सीधा राजतिलक ही हो जाता । क्या ज़माना आ गया है कि लोकशाही या लोकतंत्र के चलते राजवंश के कर्णधारों को भी राजस्थान के रेगिस्तान की धूल फाँकनी पड़ रही है और वहाँ उत्सुकता वश एकत्रित हुए लोगों को संबोधित भी करना पड़ रहा है । उनसे बातचीत करने की लोकतांत्रिक परंपरा का निर्वाह भी करना पड़ रहा है।

​लेकिन बेचारे राहुल गांधी इस लोकतांत्रिक पर्व में आम लोगों से क्या बात करें? । किसी आम घर में पैदा होकर, आम आदमी के बीच से चलते हुये वे मंच पर पहुंचे होते, तब तो उनके पास आम आदमी के सुख-दुख की बात करने के लिये बहुत कुछ होता । लेकिन उनकी स्थिति फ्रांस के राजवंश के उसी पात्र के समान है जो रोटी मांग रहे प्रदर्शनकारियों की भीड़ देखकर हैरान था कि यदि इनके पास रोटी नहीं है तो ये केक क्यों नहीं खाते? इसलिये वे देश में बढ़ रही महँगाई , बेरोज़गारी इत्यादि पर तो बात कर नहीं सकते । मंहगाई तो उनके लिये , जाके पैर न फटी बिवाई , तो क्या जाने पीर पराई । रही बात बेरोजगारी की । राहुल समझते हैं कि लोग नाहक हल्ला मचा रहे हैं । जो लोग परिश्रम करके आगे बढना चाहते हैं , उनके लिये इस देश में इटली से भी बडा आकाश है । राबर्ट बढेरा इसका आदर्श उदाहरण है । देखते देखते कहां से उठ कर कहां पहुंच गया । यह अलग बात है कि वे राबर्ट बढेरा का उदाहरण सार्वजनिक सभाओं में जरुर देते होंगे । अब इसके बाद राहुल गान्धी आम आदमी से क्या बात करें ? इसलिये राहुल गांधी लोगों को अपने परिवार की कहानियां सुनाना शुरू कर देते हैं और वहीं से अपनी बात खत्म भी कर देते हैं । कभी बताते हैं कि मेरी माँ राजनीति को ज़हर समझती है। कभी रूआंसे होकर कहते हैं कि मां को सांस लेने में भी तकलीफ थी लेकिन फिर भी उनकी चिंता लोकसभा में मतदान करने की ज्यादा थी । इस बार शुरू में और भी भावुक हो गये कहने लगे लोगों ने मेरी दादी को मार दिया, मेरे पापा को भी मार दिया और मुझे डर लगा रहता है कि मुझे भी ये लोग मार देंगे । कई बार , जिस घर में अनेक दुर्घटनाएं हुई हों , उस घर के बच्चे अवचेतन में भयग्रस्त होकर अजीब व्यवहार शुरु कर देते हैं । उसी भय ग्रस्त बच्चे जैसा व्यवहार राहुल गांधी आजकल देश भर में अपनी सार्वजनिक मंचों पर शुरु कर देतें । वैसे तो पूछा जा सकता है कि जब लोकतंत्र में सरकार बनाने के लिये लोगों से बातचीत करनी हो तो लोगों की समस्याओं और अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बताना चाहिये । लेकिन राहुल गांधी को विशेष दर्जा देते हुये उनको इस प्रकार की सीमाओं और बाधाओं से मुक्त किया जा सकता है । अनेक स्थानों पर तो लोग इसलिये भी एकत्रित हो जाते हैं कि राजवंश का एक बालक आस्तीन चढ़ा-चढ़ाकर कुछ बोल रहा है। बाल हठ है। बाल हठ में सभी कुछ क्षमा किया जा सकता है । मध्य प्रदेश में तो पुराने मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने मंच पर ही कह दिया की वैसे तो मैं उस मंच पर बोलने की जहमत नहीं उठाता जिस मंच से राहुल गांधी या उनकी मां बोल रही हो। लेकिन क्या करूं? राहुल का हठ । बाल हठ से मुझे भी झुकना पड़ा।

​लेकिन फिर भी राहुल गांधी को ये समझ लेना चाहिये कि जिस किसी ने भी उनको उनके अपने ही परिवार के बारे में ये कहानियाँ सुनायी हैं उसने उनको पूरी कहानियां नहीं सुनायी । अब ये कहानियां सुनाने वाले कौन हैं यह तो अल्लाह जाने , लेकिन अनुमान तो लगाया ही जा सकता है । दिग्विजय सिंह हो सकते है, अहमद पटेल हो सकते हैं, रशीद अलबी हो सकते हैं, विनसेट जॉर्ज हो सकते हैं। लेकिन खैर उन्होंने राहुल गांधी को अर्धसत्य ही बताया है , और इतना तो सभी जानते हैं कि अर्धसत्य झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है । दुर्भाग्य से यही अर्धसत्य , राहुल गांधी देश में जगह-जगह बता रहे हैं । यह राहुल गांधी के लिये भी लाभदायक रहेगा और उनको उल्टी-सीधी कहानियां सुनाने वालों के लिये भी कि वे कहानी जरूर सुनें और बतायें भी लेकिन पूरा सच बतायें आधा सच नहीं।

​राहुल गांधी ने शुरू में कहा कि इन लोगों ने मेरी दादी को मार दिया । इंदिरा गांधी हत्या हुई यह सच है , लेकिन उस हत्या को करवाने वाले कौन लोग थे, उसको जान लेने का प्रयास राहुल गांधी की मां के नेतृत्व में जिस पार्टी की सरकार है उसने कभी भी उनका पर्दाफाश करने का प्रयास नहीं किया। हत्या की पीछे की शक्तियों की शिनाख्त के लिये जांच आयोग बनें। उन आयोगों ने कहीं-कहीं इस बात का जिक्र भी किया कि शक की सूई किस ओर घूम रही है लेकिन उस्तादों ने उस सूई को घड़ी समेत ही तोड़ने की कोशिश की और अभी तक भी शक की सूईयां अंधेरे में ही टिक-टिक कर रही है। इसी हत्या से जुड़ी कहानी का दूसरा हिस्सा भी है । इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद, कहा जाता है कि कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में हत्या का बदला लेने के लिये 2500 से लेकर 3000 तक , दो-चार दिन में ही उन लोगों की अमानुषिक ढंग से हत्या कर दी जिनका इंदिरा गांधी की हत्या से दूर-नजदीक का भी संबंध नहीं था । और अभी भी सोनिया गांधी की कांग्रेस प्रयास करती रहती है कि इन हत्याओं में पार्टी के जो बड़े लोग चिन्हित हैं उनको सजा न हो सके । इंदिरा गांधी की हत्या का यह सच भी राहुल गांधी को राजस्थान में लोगों को बताना चाहिये था । यदि जानबूझ कर नहीं बताया तो यह धोखा है लेकिन यदि उन्हें स्वयं ही इसके बारे में इल्म नहीं है तो उन्हें पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा मन लगाना चाहिये।

​ दादी की हत्या के बाद उन्होंने अपने पापा की हत्या को लेकर श्रोताओं के बीच करूणा रस पैदा करने का प्रयास किया । लेकिन इसमें भी वे आधा सच ही बोल पाये । इस मामले में तो राहुल गांधी स्वयं भी जानते होंगे कि जिन लोगों ने उनके पापा को मारा और जो इसी जघन्य अपराध में जेल में बंद हैं पिछले कुछ अरसे से उन्हें छुड़ाने का प्रयास कौन कर रहा है ? इतना तो राहुल भी जानते होंगे कि राजीव की हत्या के जुर्म में सजा काट रही नलिनी श्रीहरण से जेल में गुप्त रुप से मिलने के लिये राहुल की अपनी सगी बहन प्रियंका ही गयी थी । जब इस भेंट का राज खुल गया तो परिवार के लिये जवाब देना मुश्किल हो गया था । लेकिन इसके बावजूद परिवार ने उसको जेल से छुडबाने की फरियाद लगायी। जेल में सजा काट रही अपराधी की संतान के पालन-पोषण पर आ रहा सारा खर्चा कौन उठा रहा है , इसका खुलासा भी राहुल गांधी चुरू की सभा में कर देते तो सुनने वालों को नरो व कुंजरो की बजाय पूरा सच पता चल जाता। कहा तो यह भी जाता है कि कांग्रेस के भीतर नरसिम्हा राव की जो अपमानजनक घेरा बंदी की जा रही थी उसका एक मुख्य कारण यह भी था कि वे राजीव गांधी की हत्या के पीछे छिपे हुये लोगों को बेनकाब करने का प्रयास कर रहे थे। राहुल गांधी को पूरा अधिकार है कि वे अपने परिवार की इस प्रकार कि कहानियां सुना-सुनाकर श्रोताओं में करूणा रस पैदा करें । लेकिन जिस ढंग से वे आधी अधूरी कहानियां बता रहे हैं , उससे करूणा रस की बजाय हास्यरस पैदा हो रहा है। राहुल गांधी को जरूर किसी ने समझाया होगा कि चुनाव के इस वर्ष में सोनिया कांग्रेस के पास कहने के लिये और कुछ नहीं बचा , इसलिये इन्हीं कहानियों से उत्पन्न करूणा रस से उपजे आंसुओं की बाढ़ में शायद वोटों की बाढ़ भी आ जाये । लेकिन राजस्थान की धरती का इतिहास निराला है । वह धरती जानती है कि जब एक ओर चीन और दूसरी ओर पाकिस्तान बार बार भारत पर आक्रमण कर रहा हो तो राजस्थान में वीर रस की पूजा होती है करूणा रस की नहीं ।

 

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  1. लेकिन अब वे इस से भी कतराएंगे वे क्या उनका थिंक टैंक ऐसे भाषण लिख कर देने से परहेज करेगा. राहुल के पिछले कुछ भाषणों ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है.अब जनार्दन दिवेदी जैसे सलाहकार मोदी को धमकी दे रहे हैं कि वे राहुल के लिए शहजादा शब्द प्रयोग करना बंद करे नहीं तो उनकी सभाओं में कांग्रेस के कार्यकर्ता हल्ला गुल्ला करेंगे.यह उनकी बोखलाहट व लाचारी दर्शाती है.कांग्रेस बार बार खाद्य सुरक्षा बिल का गुणगान करती है पर कुलकर नहीं क्योकि उसकी वास्तविक हालत क्या है जनता जन रही है जो भुगत रही है.इसलिए वे सकुचाये से बोलते है.इस लिए अब यह करुणा की कहानियां सुना रहे है पर आज का वोटर १९५२ का वोटर नहीं रहा इसलिए वह इन झांसों में आने वाला नहीं फिर मीडिया व विपक्ष भी इन बैटन को लोगों के गफला नहीं उतरने देता.

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