तेरी हिम्मत पे चम्मच हमें नाज़ है

 

इक़बाल हिंदुस्तानी

चमचो की बदौलत ही कई सरकारें चलीं तो कई ताज छिन गये!

सुना आपने देहरादून के चम्मच कांड में एक दर्जन लोगों को उम्रकैद हो गयी। एक विवाह समारोह में इन लोगों ने चम्मच को लेकर हुए शुरू झगड़े में दो लोगों की हत्या कर दी थी। क्या ज़माना आ गया एक चम्मच ने पहले दो लोगों की जान ली और अब उसी चम्मच ने 12 लोगों को उम्रभर के लिये अंदर करा दिया। यह कम्बख़्त चम्मच चीज़ ही ऐसी होता है कि आदमी से ज़्यादा तवज्जो इसे दी जाने लगी है। अब देखिये ना अपने देश में कई सरकारें चमचो की वजह से बनी और उनकी मेहरबानी से ही चल रही है। हां यह अलग बात है कि जब कोई बड़ी आफत आती है तो चम्मच तोतों की तरह आंखे बदलने में ज़रा भी देर नहीं लगाते और सामने वाला हाथ मलता रह जाता है।

कार्यालयों में कुछ लोग काम की बजाये बॉस की चमचागिरी करके ही आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं अब भले ही मेहनती और योग्य बंदा जलभुनकर राख ही क्यों न हो जाये, उनकी बला से। यह रास्ता आसान और हंडरेड परसेंट गारंटी से कामयाबी वाला जो है। संतरी से लेकर मंत्री तक चमचो का ही दबदबा है। थाने में आईपीसी की धराआंे से अधिक चमचो की पौबारा है। सरकारी नौकरी में तो चमचागिरी का मज़ा ही कुछ निराला है। मिसाल के तौर पर प्राइमरी में टीचर हैं तो आराम से घर बैठकर मस्ती करें बस बीएसए की चमचागिरी करना याद रखें। एमपी एमएलए के चमचे भी मज़े ले रहे हैं। अगर आप किसी बदमाश के चमचे हैं तो क्या कहने, आप न केवल मुहल्ले में सब पर रौब गालिब कर सकते हैं बल्कि पुलिस से भी आपकी खूब पटेगी। सियासत में तो जलवा ही चमचागिरी का है। टिकट लेना हो तो चमचागिरी से बड़ी काबलियत और कोई नहीं और मंत्री बनने से लेकर पीएम बनना हो तो भी यही हुनर काम आयेगा। मायावती और शीला इसी खूबी से सरकार चला रहे हैं तो लालू और मुलायम चमचागिरी न करने का नतीजा सत्ता से बाहर होकर भोग रहे हैं। ज्यादा पुरानी बात नहीं है आइरन लेडी कही जाने वाली पूर्व प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी को उनके चमचो, आप चाहें तो उनको तहज़ीब के दायरे में सलाहकार भी कह सकते हैं, ने सत्ता में बने रहने के लिये जनता का मूड देखने की बजाये एमरजैंसी लगाने की नेक सलाह दे डाली थी नतीजा यह हुआ कि वे उसी एक गल्ती से सत्ता से बाहर हो गयी। चमचो का कुछ नहीं बिगड़ा वे नारा लगाकर अपनी चमचागिरी का फर्ज अदा करते रहे ‘इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा’। चमचो की कहानी लंबी है कि कैसे पंजाब में भिंडरावाला को आस्तीन का सांप बनाकर पालने की सलाह दी गयी और फिर जब इंदिरा जी की जान चली गयी तो चमचो ने राजीव जी को चमचागिरी करके पीएम बनवा दिया। चमचागिरी के बल पर एक पायलट की सरकार हवा में चलती रही और एक दिन चमचो ने फिर वही पुराना खेल दोहराया कि बाबरी मस्जिद/ रामजन्मभूमि का जिन्न बोतल से बाहर निकालने की सलाह सीधे सादे राजीव गांधी को दे डाली जिसका नतीजा सबके सामने है। इतना ही नहीं चमचो ने विदेश तक में हाथ पांव मारने शुरू किये तो भारतीय सेना को श्रीलंका के तमिल चीतों से लड़ने ‘आ बैल मुझे मार’ की तर्ज़ पर भेज दिया गया। चमचो की गलत सलाह से न केवल राजीव गांधी की कुर्सी गयी बल्कि लिट्टे की बदले की कार्यवाही में जान भी चली गयी।

ऐसा नहीं है कि हमारे देश में ही चमचो की इतनी चलती हो बल्कि अमेरिका को देखो जो उसकी चमचागिरी करते रहते हैं वे चाहें तानाशाह हों और निकट भविष्य में उनका चुनाव कराने का इरादा भी न हो तो भी अपने अंकल सैम उनकी तरफ न खुद आंख उठाकर देखते हैं और न ही किसी को ऐसा करने की इजाज़त ही देते हैं। मिसाल के तौर पर सउूदी अरब जैसे कट्टरपंथी और पाकिस्तान जैसे आतंकवाद के पालनहार को अंकल सैम चमचागिरी करने के इनाम के तौर पर अब तक बख़्शे हुए हैं, हां एक बात और जो उनकी चमचागिरी से इनकार करता है तो वे उसे नेस्तोनाबूद करने में कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ते। ओसामा बिन लादेन को ही लो जब तक वह अंकल सैम के इशारे पर रूस को अफगानिस्तान से भगाने के लिये जेहाद रूपी चमचागिरी करता रहा तो सब ठीक चलता रहा लेकिन जैसे ही उसने मुस्लिम मुल्कों से अमेरिका के चमचो का दख़ल ख़त्म करने का बीड़ा उठाया तो वह जेहादी से खूंखार आतंकवादी बन गया और चमचागिरी ख़त्म तो ओसामा भी ख़त्म। ऐसे ही इराक के सद्दाम हुसैन ने चमचागिरी से मना किया तो बिना ख़तरनाक हथियार बरामद किये ही सद्दाम की छुट्टी कर दी गयी। ताज़ा मिसाल लीबिया के कर्नल गद्दाफी की है ओबामा की चमचागिरी न कर पंगा ले रहा था, बेमौत मारा गया। आजकल पाकिस्तान चमचागिरी से ना नुकुर कर रहा है उसका भी भगवान ही मालिक है। ज़रदारी और गिलानी शायद ज़िया उल हक़ की चमचागिरी से मना करने का हश्र भूल गये हैं। अंकल सैम को गुस्सा आ गया तो पाक के राष्ट्रपति का चेहरा ज़र्द और प्रधनमंत्री का मुंह गिला करने लायक नहीं रहेगा। तरक्की का आज एक मात्रा रास्ता है चमचागिरी। जय हो चमचो की। अगर गुस्ताख़ी माफ करें तो यूं कहा जा सकता है।

जिनके आंगन में चमचो का शजर लगता है,

उनका हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

2 COMMENTS

  1. चमचों ने इस देश को हलाल किया है… ये सारे किसी भी दल मैं शिफ्ट हो जातें हैं… नेताओं की बर्बादी का कारण भी यही चमचे होते हैं …..

  2. बहुत खूब इक़बाल जी चमचो के पिछावाड़ो पर ऐसे ही नमक मिर्च लगाते रहिये कभी ना कभी सालो को जलन होगी ही होगी.

    सुन्दर व्यंग

    हार्दिक बधाई

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