कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती।अब 70 हमारे पास मंडरा रहा है और हम सीखे जा रहे है, शायद कब्र तक पंहुचते पंहुचते भी सीखते रहे, सीखने से छुट्टी नहीं मिलने वाली, सीखे जाओ किये जाओ यही हमारी नियति है।
पचास साल हो गये पढ़ाई पूरी किये पर सीखना बन्द नहीं हुआ। हिन्दी इंगलिश ठीक ठाक लिखना पढ़ना आता था पर जब से ये मुआ कम्पयूटर आया तब से ऐसा लगने लगा कि हम तो अनपढ़ होगये, दूसरी तीसरी क्लास के बच्चे भी हमसे ज़्यादा जानते हैं।हमारे बच्चों ने हमें बताया कि लिखकर…..अरे नहीं टाइप करके बातचीत करने को चैट कहते हैं।टाइप करके चिट्ठी एक बटन दबाके चली जाती है जिसे ई मेल कहते हैं ।ईमेल कापता घर का पता नहीं होता ख़ुद ही कोई झूठमूठ का पता बनाने से सारी चिट्ठियां आ जाती है बस पासवर्ड याद रखना पड़ता है ,नहीं तो आई हुई चिट्ठी भी पढ़ नहीं सकते। हमारी उत्सुकता इतनी बढ़ी कि हमने ठान ली अब हम अनपढ़ नहीं रहेंगें टाइपिंग भी सीखेंगे और कंम्प्यूटर इस्तेमाल करना भी।
चैट की भाषा हमारी समझ से बाहर हो रही थी क्योंकि हिन्दी को रोमन में लिखने पढ़ने में अर्थ का अनर्थ होने लगा था। हमने लिखा chhat tapak rahi hai(छत टपक रही है)पढ़ने वाले ने पढ़ा ‘चाट टपक रही है।’जैसे तैसे देवनागरी मे टाइप करने की तकनीक उपलब्ध करवाईं और इस युक्ति से मुक्ति ली पर इस उम्र में ये कोई आसान काम नहीं था पर सीखना तो था ही, सो सीखा।
चैट की भाषा सीखना भीआसान नहीं था यहाँ Tomorrow को tmmroया ऐसा ही कुछ और लिख देते हैं too , 2 हो जाता है great को gr8 कर सकते हैं भाषा का ये अनोखारूप पढ़ पाना ही हमारे लिये चुनौती था पर हमने सीखा वैसे ही जैसे कभी क्लास में नोट्स लिया करते थे वो भी अपनी ही बनाई भाषा होती थी जिसे हम ख़ुद ही पढ़ पाते थे।हाँ अब हमे साइलैंट अक्षरों का हटाना और are को R और you कोU लिखना अच्छा लगने लगा।
हमारी उम्रबढ़ रही थी और गैजेट छोटे हो रहे थे। हमने डैस्कटौप पर बड़े से मानीटर पर चूहे की पूंछ पकड़कर कम्प्यूटर का प्रयोग करना सीखा था सब अच्छा चल रहा था कि कम्प्यूटर जी बूढ़े होकर बीमार रहने लगे बीमार रहने लगे,तो लैपटौप आगया जिसका स्क्रीन और मानीटर हमें छोटा लगता था लैपटौप आने के बाद भी हमने चूहे को नहीं छोड़ा……….आखिर क्यों छोड़ें!। हमारे पास हमारा प्यारा डैस्कटौप अभी भी पड़ा है कोई ठीक कर दे तो फिर हम उसे अपना लेंगें। अभी लैपटौप पर हाथ चलने लगा तो स्मार्ट फोन टपक गये इतने स्मार्ट कि ज़रा सी उंगली लगी तो एक की जगह चा ‘क टाइप हो गये की बोर्ड पर उंगली इधर उधर हुई तो कुछ का कुछ टाइप हो गया हम तो लैप टौप पर ही भले। हमने ठान ली थी कि हम अपना पुराना फोन नहीं छोड़ेगे पर जब कहीं वो फोन निकालते तो निगाहें ऐसे घूरती कि हमे लगता कि हम बाबर के ज़माने में जी रहे है दूसरे व्हाट्सअप पर आने के लियें स्मार्टफोन लेकर हमने ख़ुद को स्मार्ट बना लिया है।
फेसबुक पर शुरुआती दिनों में स्माइली डाल देते थे या लोग दिल उछालते थे ।अब हर मूड हर संवेग के लिये अलग इमोजी ढूंढों। व्हाट्सअप तो खेल ही ईमोजी का है। यहाँ recycled matrial पर ईमोजी डालने का रिवाज ज़्यादा है। हम जिसे ठैंगा कहते वह यहाँ वाह वाही होती है। हम हाथ जोड़कर क्षमा मांगते वो आभार समझते हैं ।बड़ी परेशानी है पर सीख रहे हैं हिम्मत नहीं छोड़ी है।
जन्मदिन पर केक , गुलदस्ता, मोमबत्ती उपहार सब भेज सकते हैं । बस मरने की ख़बर आने पर कफ़न का प्रवधान और हो जाये तो अच्छा हो,हाँ फूल तो फूल हैं वो भेज सकते हैं। बीमार के लिये फल भेज सकते हैं।
‘हम हवाई जहाज़ से जा रहे हैं मैने लिप्सटिक लगाई फिर कार में बैठे’ सिर्फ ईमोजी बता देंती हैं, शब्दों की ज़रूरत ही नहीं ईमोजी की एक अनोखी भाषा है जिसमे नये शब्द- आकृति जुड़ रहें इस नई भाषा को समझने के लियें हम कठिन परिश्रम कर रहे हैं। कुछ सीखना हो वो भी हमारी उम्र मे तो महनत तो करनी ही पड़ेगी। सीखना छोड़ देंगे तो समय के साथ नहीं चल पायेंगे समय से पिछड़ गये तो घर के एक कोने में बैठकर बेटे बहू को कोसेंगे जो हम कभी नहीं करना चाहेंगे। ईश्वर करे हम अंत तक सीखते रहे सीखते सीखते ही चले जायें।