हम किसे चुनें, चार्वाक या गांधी?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

आजादी के बाद महात्मा गांधी का अपने चेलों से जैसा मोहभंग हुआ, वैसा किसी नेता, किसी गुरु या किसी महात्मा का नहीं हुआ होगा। गांधीजी ने सादगी को अपना आदर्श बनाया और उस पर अमल करके दिखाया। उन्होंने कांग्रेस को विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन बनाया और करोड़ों लोगों को सादगी का पाठ पढ़ाया लेकिन ज्यों ही देश आजाद हुआ, कांग्रेसी नेताओं की 30 साल से दबी वासनाओं ने जोर मारा और वे सब अंग्रेजों की नकल करने लगे। गोरे अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी जगह काले अंग्रेज आ गए। वे ही छा गए। और वे अब तक छाए हुए हैं। नेता किसी भी पार्टी के हों, सबका कांग्रेसीकरण हो गया है।

गांधीजी को इस बात का बड़ा दुख था कि सारे मंत्री बड़ी-बड़ी कोठियों में रहने लगे, कारों में चलने लगे, उनके अंगरक्षक भड़कीली पोषाखें पहनने लगे। नेताओं ने खुद को जनता से दूर कर लिया। वे नए राजा-महाराजा बन गए। गांधीजी ने आजाद भारत के मंत्रियों से कहा कि वे यदि स्वेच्छा से सादगी का जीवन अपना लें तो वे सारी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर देंगे लेकिन हुआ उल्टा ही! उनके परमप्रिय शिष्य जवाहरलाल नेहरु उस तीन मूर्ति हाउस में जाकर रहने लगे, जो राजधानी का सबसे बड़ा और भव्य बंगला है। उनके दूसरे शिष्य डाॅ. राजेंद्रप्रसाद राष्ट्रपति भवन में रहने लगे, जो अंग्रेज वायसराय का निवास था और जो किसी भी मुगल बादशाह के महल से भी बड़ा है। यदि राजेंद्र बाबू और नेहरुजी जैसे महापुरुष ठाठ-बाट के लोभ में फंस गए तो फिर छोटे-मोटे नेताओं का क्या पूछना था?

राजेंद्र बाबू, नेहरुजी, मौलाना आजाद, राजाजी जैसे नेताओं का निजी आचरण सादा और शुद्ध रहा लेकिन नेताओं के ठाठ-बाट की यह जो गैर-गांधीवादी परंपरा शुरु हुई, यही आगे चलकर भ्रष्टाचार की जननी बन गई। गांधीजी का वह आदर्श ताक पर रख दिया गया कि सारी संपत्ति समाज की है। हम तो केवल उसके न्यासी (ट्रस्टी) हैं। अब हमारे नेताओं का आदर्श शीर्षासन की मुद्रा में है। वह कहता है कि सारी संपत्ति नेताओं की है। जो जितनी लूट सके, लूटो। आज गांधी के इस देश में एक भी ऐसा बड़ा नेता खोज निकालना मुश्किल है, जिसकी जिंदगी उसकी शुद्ध कमाई (ब्रेड लेबर) पर चल रही हो। साधनों की पवित्रता सपना बन गई। अब तो साध्य पवित्र हों, यह भी जरुरी नहीं है। जब हमारे राजनीतिक नेता ही लूट-पाट और ठाठ-बाट का जीवन जी रहे हों तो हम नौकरशाहों, व्यापारियों, डाॅक्टरों, वकीलों, प्रबंधकों को क्या दोष दें? भ्रष्टाचार की विश्व-सूची में भारत का नाम आज भी काफी आगे है।

यदि नेतागण सादगी से रहने लगें तो आम जनता पर उसका जबर्दस्त असर होगा। भ्रष्टाचार तो मिटेगा ही, आर्थिक उन्नति भी तेजी से होगी लेकिन अब नीतियां ऐसी बन रही हैं कि लोग कमाएं या न कमाऐं लेकिन खर्च ज्यादा से ज्यादा करें। भारत को अमेरिका की कार्बन काॅपी बनाने पर नेता लोग अमादा हैं। वे भारत को उपभोक्तावादी देश बना देना चाहते हैं। उन्होंने गांधी के त्यागवाद की जगह पश्चिम के भोगवाद को अपना आदर्श बना लिया है। पूंजीवाद और साम्यवाद, इसी भोगवाद की जुड़वां संताने हैं। रुसी साम्यवाद तो अकाल-मृत्यु को अपने आप प्राप्त हो गया लेकिन पूंजीवाद सारे विश्व को हिंसा, लूटपाट, अपराध और असंतोष के जाल में फंसा रहा है।
वास्तव में आज का भारतीय समाज गांधी-समाज नहीं, चार्वाक-समाज बनता जा रहा है। चार्वाक दर्शन का मूल सूत्र यही है कि जब तक जियो, सुख से जियो! ऋण करो और घी पीओ। नेतागण अपने देश में ‘स्मार्ट सिटीज’ खड़ी कर रहे हैं। हमें हमारे सौ-दो सौ शहरों की कितनी चिंता है लेकिन हमारे लाखों गांव आज भी गरीबी, गंदगी, अभाव और असुरक्षा में सड़ रहे हैं। शहरों में बड़े-बड़े अस्पताल और स्कूल व काॅलेज बन रहे हैं, जहां वे ही लोग कदम रख सकते हैं, जिनकी जेबों में लाखों रुपए भरे हैं। भारत का औसत नागरिक इन अस्पतालों और शिक्षण-संस्थाओं में झांक भी नहीं सकता है। गांधीजी कहते थे कि हमें ग्राम-स्वराज लाना है। हमारे नेतागण कह रहे हैं कि हम ऐसी नीतियां बना रहे हैं कि गांव रहेंगे ही नहीं तो उन्हें स्वराज देने का सवाल ही नहीं उठेगा। धीरे-धीरे भारत के सारे गांव नरक बन जाएंगे। ग्रामीण लोग भाग-भागकर शहरों में आ जाएंगे। शहरों में स्वराज नहीं, ‘स्मार्टनेस’ की जरुरत होगी। इसीलिए तो हम ‘स्मार्ट सिटीज़’ बना रहे हैं। हमारे नेतागण कितने बड़े भविष्यदृष्टा हैं।

‘स्मार्ट’ का मतलब क्या है? हमारे देश के 25-30 करोड़ शहरी लोग वैसे ही रहने लगें, जैसे न्यूयार्क, लंदन और तोक्यो के लोग रहते हैं और बाकी 100 करोड़ लोगों का कोई धनी-धौरी नहीं है। उनका अल्लाह ही मालिक है। वे सौ करोड़ लोग गांधी का स्वराज खोजने की कोशिश करें। ये लोग उबड़-खाबड़ सड़कों पर बैलगाडि़यों में धक्के खाएं और स्मार्ट सिटी के सभ्य नागरिक बुलेट ट्रेन का मजा लूटें। गांवों के लोग 28 रु. रोज में गुजारा करें और शहरों के स्मार्ट सिटीजन पांच सितारा होटलों में पांच हजार रुपए का खाना खाएं (और पिएं भी)। यह चार्वाक-संस्कृति नहीं तो क्या है? हर चीज़ कर्ज लेकर खरीदो। फ्लैट, कारें, टेलिविजन, फ्रिज, स्मार्ट फोन! रोज़ खबरें देखों और पढ़ो कि कितने बलात्कार हुए, दारुकुट्टों ने कितनों पर कार चढ़ा दी, बैंकों के कितने अरब-खरब रु. नेताओं के चमचे डकार गए, कितने निरीह पशु सब्जियों की तरह काट दिए गए, कितने लोगों ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया, कितने लोग कड़ाके की ठंड में फुटपाथ पर ही सोते रह गए। क्या यह गांधी का भारत है? यह चार्वाक का भारत है। चार्वाक कहा करते थे कि ‘मद्यं मासं मीनश्च मुद्रा मैथुनमेवच। एतेस्युः पंचमकारा: हि मोक्षदा युगे युगे।।’ याने शराब, गोश्त, मछली, मुद्रा और मैथुन- ये ही पंचमकार युग-युग में मोक्षदायक हैं। इन पर नियंत्रण की कोई योजना हमारे नेताओं के पास नहीं है। उन्हें इन बातों की कोई चिंता भी नहीं है।

गांधी कहा करते थे कि मैं दूसरों को वह करने के लिए कभी नहीं कहूंगा, जो मैं स्वयं नहीं करता। गांधी ऐसा क्यों कहते थे? क्योंकि वे सच्चे नेता थे। नेता कौन होता है? वह, जिसका लोग अनुकरण करें। आज कोई नेता इस बात की परवाह ही नहीं करता। वह अपने आचरण को अनुकरणीय बनाने की इच्छा ही नहीं रखता। बस वोट और नोट ही उसके लिए ब्रह्म है। शेष सब मिथ्या है। नेतृत्व में नैतिकता का जो गांधीवादी तत्व था, वह अब नदारद हो गया है। हमारे नेता यह क्यों नहीं समझते कि संपूर्ण समाज के संचालन में कानून, राजनीति और राज्य की भूमिका एक-चैथाई भी नहीं है। तीन-चौथाई समाज तो नैतिकता के आधार पर चलता है। राज भी नीति के बिना नहीं चलता। लेकिन चार्वाक-संस्कृति राज्य को ही नहीं, समाज को भी नैतिकता से मुक्त रखना चाहती है। यदि हमें भारत को इस भोगवादी संस्कृति से बचाना है तो हमें गांधी की सभी प्रासंगिक और बुनियादी शिक्षाओं की ओर लौटना होगा। नेताओं को तय करना है कि वे चार्वाक के चेले बनेंगे या गांधी की तरफ लौटेंगे?

2 COMMENTS

  1. वैदिक जी,मैं आपका बहुत पुराना प्रसंशक था।किंतु विगत आपके कई लेखों से बहुत भ्रम हो गया।आपने इस लेख में गांधी दर्शन को महत्व दिया है किंतु आप सारे तथ्यों को जानते हुए देश की आज़ादी का श्रेय गांधी जी को दे रहे हैं,जबकि अब यह तथ्य सबके सामने आ चुका की अंग्रेज़ नेता जी सुभाष चंद्र बोस के प्रयासों से देश आज़ाद हुआ।दूसरा तथ्य की गांधी जी सादगी का दिखावा करते थे किंतु वास्तविकता में वे बहुत बड़ें भोगी थे।उन्ही की नक़ल आजादी के बाद के नेताओं ने अपनाया।जैसे जवाहर लाल जी की अय्याशी के बारे में आप भी जानते हैं।कुल मिलाकर यह देश कभी भी गांधी के विचारों से नहीं हटा।
    जहाँ तक वर्तमान के लोगों की मानसिकता के बारे में मैं आपके विचारों से सहमत हूँ कि ये सभी चार्वाक पंथी हैं।किंतु आज के वैश्विक समाज में रहते हुए स्मार्ट सिटी के विषय में आपके विचार बहुत दक़ियानूसी है।जो आज की पीढ़ी के विचारों से बकवास है।

  2. Ab chunana kya hai?Hamne to charvak ko chun hi liya hai.Pahle congress sarkar charvak darshan par jara dheere dheere kadam badhaa rahi thi,par hamare NDA sarkar to iske liye kattibaddh dikhti hai.iska natija kya hoga ,yah to bhavishya bataayega,par itna avshy kaha ja sakta hai ki is andhi daud men jo chhut jaayenge,unki sudh budh lene vala koi nahin hoga.

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