चमचा महफिल का ‘वीकेंड’ सत्र

0
138

-विजय कुमार-  politics new

दिल्ली में केजरी ‘आपा’ के नेतृत्व में ‘झाड़ू वाले हाथ’ की सरकार बनी तो ‘मोदी रोको’ अभियान में लगे लोगों की बांछें खिल गयीं। राहुल बाबा की खुशी तो छिपाये नहीं छिप रही थी। कई दिन बाद उन्होंने अपने यारों के साथ बैठकर ठीक से पीना-खाना किया। सबका मत था कि लड्डू दायें हाथ से उठायें या बायें से। मुख्य बात उसका मुंह में जाना है। ऐसे ही मोदी को रोकना उद्देश्य है। उसे हम रोकें या कोई और, इसका महत्व नहीं है। यदि वह रुक गया, तो फिर सत्ता तो अपने हाथ में ही आनी है। पर मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिन बाद ही केजरी ‘आपा’ के दरबार में झाड़ूबाजी होने लगी। सबको इसकी आशंका पहले से ही थी; पर वहां तो ‘हनीमून पीरियड’ में ही ‘जूते और सैंडल’ चलने लगे। इतनी तीव्र अधोगति तो आजादी के बाद से भारत में किसी सरकार ने प्राप्त नहीं की थी। जो लोग कल तक कमर में हाथ डालकर ‘आओ ट्विस्ट करें..’ गा रहे थे, अब वे एक-दूसरे को कांग्रेस या भाजपा का दलाल बता रहे थे। केजरी ‘आपा’ ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए ‘स्टिंग ऑपरेशन’ का सुझाव क्या दिया, सब नेता एक-दूसरे का ही स्टिंग करने लगे। इससे ‘आपा’ (आम आदमी पार्टी) की जो छीछालेदर हुई, उससे ‘मोदी रोको’ अभियान में लगे लोग फिर निराश हो गये।
यही हाल राहुल बाबा का भी हुआ। उनकी आशाओं की फुलवारी खिलने से पहले ही सूखने लगी। हर ‘वीकेंड’ पर होने वाली उनकी ‘चमचा महफिल’ फिर सूनी होने लगी। इसी उदास माहौल में एक दिन उन्होंने आग्रहपूर्वक सबको बुला लिया। खानपान के साथ बातें भी होने लगीं।
एक चमचा – युवराज, आप उदास न हुआ करें। हमें अच्छा नहीं लगता।
– हां… नहीं…। मैं उदास कहां हूं ? लेकिन… पर…।
– आप बताएं, हम आपकी उदासी दूर करने के लिए जान लगा देंगे।
– अब तुमसे क्या छिपाना; इस मोदी ने जीना हराम कर दिया है। हमने कितनी बार कोशिश की; पर वह हर चाल को पतंग के पेंच की तरह काट देता है।
– युवराज, आप मोदी के चक्कर में न पड़े। आपको तो अपने पुराने फॉर्मूले पर ही चलना चाहिए।
– पुराना फॉर्मूला कौन सा.. ?
– भारत की जनता तो मूर्ख है। मीडिया वाले जिसे सिर चढ़ा लेते हैं, वह उसे ही नेता मान लेती है। इसलिए आप तो ऐसा कुछ करें, जिससे मीडिया में फिर आपकी चर्चा होने लगे।
– अच्छा.. ?
– जी हां, आपको ध्यान है आप एक बार कलावती से मिले थे ?
– कलावती…; कौन कलावती ?
– विदर्भ की वह गरीब महिला, जिसके किसान पति ने कर्ज के कारण आत्महत्या कर ली थी। आपने उसकी चर्चा संसद में की थी।
– मुझे तो याद नहीं है। असल में मेरे भाषण लेखक जो लिख देते हैं, मैं वही पढ़ देता हूं। देशभर में घूमते समय हर दिन सैकड़ों लोग मिलते हैं। आखिर मैं किस-किस को याद रख सकता हूं ?
– गरीबों को याद रखने की आपको कोई जरूरत भी नहीं है; पर कलावती के कारण आप कई दिन मीडिया में तो छाए रहे थे।
दूसरा चमचा – और उत्तर प्रदेश में आपने एक बार एक गरीब के घर खाना खाया था। ऐसा प्रोग्राम भी बार-बार होना जरूरी है।
– कहना तो आसान है; पर…। तब तो मीडिया को पटा लिया था। इसलिए दलित के बरतनों में होटल का खाना उन्होंने नहीं दिखाया; पर हर बार ऐसा होना कठिन है।
– हां, ये तो है।
– फिर पानी मुझे मजबूरी में उसके घर का ही पीना पड़ा। इससे कई दिन तक मेरा पेट खराब रहा।
– और एक बार आपने मजदूरों के साथ तसले में पत्थर ढोये थे ?
– हां; पर कुछ धूर्त पत्रकारों ने पत्थरों की बजाय प्लास्टिक का खाली तसला और मेरे कीमती जूतों की चर्चा अधिक कर डाली।
तीसरा चमचा – यूपी की सभा में एक बार आपने कुर्ते की बाहें चढ़ाकर जो कागज फाड़ा था, आपका वह तेवर बहुत हिट हुआ था। लोगों को अमिताभ बच्चन का ‘एंग्री यंग मैन’ वाला रूप याद आ गया था। ऐसा बार-बार होना चाहिए।
तीसरे चमचे को राहुल बाबा पिछले कुछ समय से अधिक महत्व दे रहे थे। इससे पहला काफी खिन्न था। उसने इस सुझाव का प्रबल विरोध किया – नहीं बाबा, यह प्रयोग ठीक नहीं है। उससे तो उप्र के विधानसभा चुनावों में सीट पहले से भी कम हो गयी।
तीसरा – सीट कम होने का कारण बाबा नहीं, मनमोहन सिंह की गलत नीतियां हैं।
पहला – पर प्रचार में तो बाबा को ही जाना पड़ता है। मनमोहन सिंह तो मुंह में ताला डालकर दिल्ली में बैठे रहते हैं।
मामला बढ़ते देख राहुल बाबा ने बीच-बचाव करा दिया।
चौथा चमचा – बाबा, उस दिन आपने दिल्ली में प्रेस वार्ता के बीच में जो धमाकेदार एंट्री की थी, वह आइडिया जिसका भी रहा हो, पर था बहुत धांसू।
दूसरा – हां-हां। और उसमें आपने अपनी ही कैबिनेट द्वारा पास किये गये प्रस्ताव को जिस अंदाज में ‘नॉन्सेंस’ कहा, उससे तो आप जनता की आंखों में हीरो बन गये थे। सरकार को रातों-रात अपने किये को उलटना पड़ गया।
– फिर भी बिहार में हमें लालू को तो साथ लेना ही पड़ेगा। उसके बिना तो हम वहां लूले-लंगड़े जैसे हैं।
तीसरा – हां, वो तो है; पर केरल में पुलिस की जीप के ऊपर चढ़कर आप जिस तरह से घूमे, उसका तो क्या कहना.. ? ऐसा लगा मानो फिल्म ‘शोले’ वाला धर्मेन्द्र फिर पानी की टंकी पर चढ़ गया हो।
पांचवां – बाबा, कुछ दिन पहले आपने तालकटोरा स्टेडियम में जो भाषण दिया, वह तो कमाल का था। आपकी बुलंद आवाज और हाथ उठा-उठाकर बोलने की अदा से लोग बहुत खुश हुए। जिसने भी वह भाषण लिखा था, उसे पुरस्कार मिलना चाहिए।
– वो सब तो ठीक है; पर कभी-कभी लगता है कि बहुत हो गयी यह नौटंकी। भाड़ में जाए भारत और यहां की घटिया राजनीति। इसके चक्कर में न घर का रहा न घाट का। ‘‘न खुदा ही मिला न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे।’’ कई बार सब छोड़कर सदा के लिए कहीं दूर चले जाने को मन करता है; पर बीमार मम्मी को देखता हूं, तो लगता है कि इस हालत में उन्हें अकेले छोड़ना ठीक नहीं है। खतरा यह भी है कि लोकसभा चुनाव के बाद कहीं वे बिल्कुल ही अकेली न पड़ जाएं।
इस पर सब चमचे सहम गये – नहीं बाबा। आप चले गये, तो हमारा और पार्टी का क्या होगा। देश को आपसे बहुत आशाएं हैं।
– इसीलिए तो जाते-जाते कदम रुक जाते हैं। जिससे दिल लगाया था, सुना है उस बेचारी ने भी कई साल इंतजार करके कोई दूसरा दोस्त ढूंढ लिया है।
देर रात तक इसी तरह तले हुए नमकीन काजू के साथ पीने-खाने के दौर चलते रहे। सबका मत था कि अब बाबा इतना आगे बढ़ चुके हैं कि पीछे लौटना ठीक नहीं है। और राजनीति में रहना है, तो नौटंकी करनी ही होगी। इसलिए जैसे भाषण लिखने और बोलने के अभ्यास के लिए लोग रखे हुए हैं, उसी तरह नौटंकी के अभ्यास के लिए भी कुछ पेशेवर लोगों की सेवाएं ली जाएं।
अंततः यह निश्चय हुआ कि रुपये चाहे 50 करोड़ खर्च हों या 500 करोड़; पर अब इसमें देर करना ठीक नहीं है। चूंकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और माहौल लगातार खराब हो रहा है। नरेन्द्र मोदी और उनका ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा धीरे-धीरे लोगों के दिल में घर कर रहा है। केजरी ‘आपा’ की पॉलिश भी लगातार उतर रही है।
‘चमचा महफिल’ उठने से पहले दो लोगों को विधिवत इसकी जिम्मेदारी दे दी गयी। सुना है वे मुंबई और पुणे में इसके लिए उपयुक्त लोगों को तलाश कर रहे हैं। चमचों की सलाह पर राहुल बाबा ने एक बार फिर से दाढ़ी बढ़ानी शुरू कर दी है, जिससे वे गरीबों के हमदर्द और ‘चिरदुखी’ जैसे दिखायी दें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here