‘वेलकम’ की ऐसी वापसी का अंदाजा नहीं था

कलाकार: जॉन अब्राहम, श्रुति हासन, अनिल कपूर, नाना पाटेकर, डिम्पल कपाड़िया, नसीरुद्दीन शाह, अंकिता श्रीवास्तव, परेश रावल, राजपाल यादव, रणजीत
निर्माता: फिरोज ए. नाडियाडवाला, सुनील ए. लुल्ला
निर्देशक: अनीस बज़्मी
कहानी: अनीस बज़्मी, राहुल कौल
संगीत: अनु मलिक, मीत ब्रदर्स अंजान, यो यो हनी सिंह, सिद्धांत माधव, मीका सिंह, अभिषेक रे
स्टार: 2

2007 में रिलीज हुई ‘वेलकम’ को दर्शक भूले नहीं होंगे। चूंकि फिल्म सफल रही थी और गाहे-बगाहे टीवी पर भी आती रहती है लिहाजा उसकी याद अब भी ताजा है। ‘वेलकम’ की उसी सफलता को भुनाने के लिए डायरेक्टर अनीस बज़्मी ने सीक्वेल के रूप में ‘वेलकम बैक’ बनाई जो तीन साल से रिलीज का रास्ता देख रही थी। जाहिर है ऐसे में अनीस बज़्मी ने जिस ‘वेलकम बैक’ की कल्पना की थी वह आज के माहौल में फिट नहीं बैठ सकती और यही हुआ है इस हफ्ते रिलीज हुई ‘वेलकम बैक’ के साथ। अव्वल तो आपको ‘वेलकम बैक’ देखते हुए एहसास ही नहीं होता कि आप कुछ हटकर देख रहे हैं। एक सी कहानी, एक सा प्लॉट, एक से किरदार, घटिया गाने और बेजान स्क्रिप्ट; कुल मिलाकर ‘वेलकम बैक’ अनीस के लिए बड़ा डिजास्टर है। फिल्म देखने के लिए हिदायत दी जा रही है कि आप अपना दिमाग घर छोड़कर जाएं मगर फिल्म में ऐसा कुछ है ही नहीं कि दिमाग लगाने की जरुरत पड़े।

कहानी: उदय शेट्टी (नाना पाटेकर) और मजनूं भाई (अनिल कपूर) अब बदल गए हैं और शराफत की जिंदगी जी रहे हैं। उन्हें पता चलता है कि उनके पिता की तीसरी पत्नी से उन्हें एक बहन रंजना (श्रुति हसन) है जिसकी शादी की जिम्मेदारी भी उनकी है। रंजना के लिए शरीफ घर का लड़का ढूंढते हुए उनकी नज़र एक बार फिर डॉ. घुंघरू (परेश रावल) पर पड़ती है जिसकी पत्नी का नाजायज़ बेटा अजय उर्फ़ अज्जु (जॉन इब्राहिम) मुंबई का नामी गुंडा है। रंजना और अजय एक दूसरे से ग़लतफ़हमी की वजह से प्यार कर बैठते हैं और शादी करने का फैसला करते हैं जबकि उदय और मजनूं को यह मंजूर नहीं। शादी के बीच झूलती फिल्म में वांटेड (नसीरुद्दीन शाह) की एंट्री होती है जो अपने बेटे हनी (शाहनी आहूजा) के सपनों की रानी ढूंढ रहा है और वो सपनों की रानी रंजना ही है। फिल्म में महारानी (डिम्पल कपाडिया) और राजकुमारी चांदनी (अंकिता श्रीवास्तव) भी हैं जो उदय-मजनूं को धोखा देकर उनकी दौलत हड़पना चाहते हैं। 2 घंटे 40 मिनट की फिल्म शादी के इर्द-गिर्द घूमती है और अचानक दी एंड आ जाता है।

welcomeनिर्देशन: अनीस बज़्मी ने फिल्म को भव्य बनाने की बहुत कोशिश की और लोकेशंस भी देखने वाली हैं मगर जब हर कड़ी कमजोर हो तो दुबई की ख़ूबसूरती भी आखिर किसे सुहाएगी? बज़्मी शायद अपनी इस बुरी फिल्म का अंजाम भांप गए थे तभी उन्होंने सारा भार नाना पाटेकर और अनिल कपूर जैसे मंझे कलाकारों पर डाल दिया पर अफ़सोस कि उनकी अदाकारी भी फिल्म को बचा नहीं पाएगी। फिल्म के सेकंड हाफ से बज़्मी का निर्देशन जो छूटा तो अंत तक पकड़ नहीं बना सका। अनीस बज़्मी ने जैसे-तैसे फिल्म पूरी की है और इसकी लागत और बड़े बजट को देखते हुए निर्माता के नुकसान के साथ ही उनकी साख पर बट्टा लगना तय है। कुछेक संवाद भी ऐसे हैं जिन्हें सुनकर कोफ़्त होती है। बज़्मी आप तो ऐसे न थे?

अभिनय: पूरी फिल्म में सिर्फ नाना पाटेकर और अनिल कपूर का अभिनय गुदगुदाता है। इस बार परेश रावल चूक गए हैं या कहें कि उनके किरदार को जबरन उलझा हुआ बना दिया गया है। पहले भाग के अभिनेता अक्षय कुमार और अभिनेत्री कटरीना कैफ की कमी जमकर खली है। अक्षय की जगह रिप्लेस किए गए जॉन इब्राहिम पूरी तरह रोल में मिसफिट हैं। उनके शुरूआती डायलॉग्स सुनकर यह भी समझ आता है कि डबिंग उनकी आवाज  में नहीं हुई है। कॉमेडी में भी जॉन फेल हुए हैं। हां, मारधाड़ के दृश्यों में उनका बॉलीवुड में कोई मुकाबला नहीं है। श्रुति हसन भी अपने किरदार से न्याय नहीं कर पाई हैं। डिम्पल कपाडिया और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों ने यह फिल्म क्यों की, समझ से परे है। नौकरानी से रेप केस में फंसे शाहनी आहूजा की यह ‘वेलकम’ फिल्म थी पर उनसे काफी ओवर एक्टिंग करवाई गई। नई आमद के रूप में अंकिता श्रीवास्तव आगे भी निराश करेंगीं। फिर ‘जिस्म’ दिखाने से भी हर नई लड़की मल्लिका या बिपाशा नहीं बन जाती। इसके बाद अन्य कलाकारों का अभिनय कैसा होगा, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा लें।
गीत-संगीत: ‘वेलकम’ का संगीत फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी था मगर ‘वेलकम बैक’ का संगीत उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बनकर सामने आया है। मूल ट्रैक ‘वेलकम’ को छोड़ दें तो एक भी गाना याद नहीं रहता। ‘मैं बबली हुई, तू बंटी हुआ-बंद कमरे में 20-20 हुआ’ जैसे डबल मिनिंग गाने को सुनना भी दूभर है।
सारांश: ‘वेलकम बैक’ दोस्तों के साथ आपको लुभाएगी क्योंकि वहां आपका परिवार साथ नहीं होगा और ‘नो एंट्री’ की तर्ज पर आप भरपूर मस्ती कर सकते हैं मगर पारिवारिक दर्शक इसका वेलकम का ही करें तो अच्छा है। वैसे भी फिल्म को तगड़ा नुकसान तय है इसलिए थोड़ा इंतेजार करें और टीवी पर दोबारा सेंसर्ड की हुई फिल्म देखें।

 

 

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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