राष्‍ट्रवादी पत्रकारिता के आधारस्‍तंभ थे रामशंकरजी

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-अनिल सौमित्र

आरएसएस के प्रचारक और वरिष्ठ पत्रकार रामशंकर अग्निहोत्री का गत 7 जुलाई की सुबह निधन हो गया। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। 29 जून को हृदयाघात के बाद उनका इलाज चल रहा था। रायपुर के एस्कोर्ट अस्पताल में इलाज के बाद उनके स्वास्थ्य में सुधार हो रहा था, लेकिन 7 जुलाई की सुबह उनकी सांसें थम गई। पिछले कुछ समय से वे रायपुर में ही रह रहे थे। छत्तीसगढ़ सरकार के कुशाभाउ ठाकरे विश्वविद्यालय ने उन्हें मानव अध्ययन शोधपीठ के निदेशक और अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी थी। इसी दायित्व के निवर्हन के लिए वे रायपुर में थे।

आज जबकि उनका शरीर हमारे बीच नहीं है, उनके कर्तृत्व अनायास ही याद आते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक कुप्. सी. सुदर्शन ने उनके बारे में कहा था – मैं संघ में जो कुछ भी हूं उसमें अग्निहोत्री जी की बड़ी भूमिका है। सुदर्शन जी के प्रचारक बनने में रामशंकर अग्निहोत्री की भूमिका उल्लेखनीय है। लेकिन पिछले साल जब मध्यप्रदेश की सरकार ने श्री अग्निहोत्री को प्रतिष्ठित माणिकचंद्र वाजपेयी सम्मान से अलंकृत किया और उस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की मौजूदगी में श्री सुदर्शन जी ने स्वीकार किया कि वे ‘‘श्री अग्निहोत्री के ही बनाए स्वयंसेवक हैं और उनके एक वाक्य ‘‘संघ तुमसे सब करवा लेगा’’ ने मुझे प्रचारक निकलने की प्रेरणा दी।’’

मध्यप्रदेश के सिवनी-मालवा क्षेत्र के होशंगाबाद जिले में 14 अप्रैल, 1926 को उनका जन्म हुआ। श्री अग्निहोत्री ने 1950 में सागर विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद सन् 1952 में नागपुर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा प्राप्त किया। वे संघ के स्वयंसेवक, कार्यकर्ता, प्रचारक तो रहे ही, संघ के इन्हीं संस्कारों को लेकर उन्होंने राष्ट्रवादी पत्रकारिता भी की। संघ में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए लंबे समय तक महाकौशल प्रांत के प्रांत प्रचारक भी रहे। श्री अग्निहोत्री 1944 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंडला जिला प्रचारक बने। 1949 में उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की महाकौशल इकाई का संगठन मंत्री नियुक्त किया गया। वे 1951 में विन्ध्य प्रदेश जनसंघ के संगठनमंत्री भी रहे।

लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में रामशंकर अग्निहोत्री ने कई मील के पत्थर स्थापित किए। ध्येय निष्ठा के कर्मपथ बढ़ते हुए वे स्वयं राष्ट्रवादी पत्रकारिता के इतिहास में मील के पत्थर बन गए। उन्होंने पत्रकारिता के मूल्यों के साथ कभी समझौता नहीं किया। आजादी के तुरंत बाद पत्रकारिता में जब विदेशी विचारधारा से अनुप्राणित पत्रकारों का दबदबा था वैसे चुनौतीपूर्ण दौर में उन्होंने अपने राष्ट्रवादी तेवर से कई मुद्दों पर बेबाक टिप्पणी की। आपातकाल और रामजन्मभूमि आंदोलन से जुडी खबरों को वैश्विक क्षितिज पर प्रसारित करने में उनका अमूल्य योगदान है।

उन्होंने पांचजन्य के मध्यभारत संस्करण के साथ-साथ मासिक ‘राष्ट्रधर्म’, प्रसंग लेख सेवा ‘युगवार्ता’ और हिन्दुस्थान समाचार के संपादक का दायित्व संभाला। 1951-52 में दैनिक युगधर्म, नागपुर के सह संपादक और 1953-54 में सांध्य देनिक आकाशवाणी (दिल्ली) के संपादक बने। इस बीच उन्होनें कश्मीर सत्याग्रह में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

श्री अग्निहोत्री 1954-55 में पांचजन्य (मध्य भारत संस्करण) के संपादक रहे। वे 1956 से 1964 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महाकौशल प्रांत प्रचारक रहे। वे 1964 से 1968 तक मासिक राष्ट्रधर्म, लखनऊ के संपादक रहे। वे 1969 में युगवार्ता, फीचर्स सर्विस, नई दिल्ली के संपादक थे। वर्ष 1970 से 1975 तक वे हिन्दुस्तान समाचार न्यूज एजेंसी के ब्यूरो प्रमुख रहे। इसके बाद 1971 से वे पश्चिमी क्षेत्र युध्द संवाददाता रहे।

श्री अग्निहोत्री 1975 से 1977 तक आपातकाल के दौरान एकीकृत समाचार न्यूज एजेंसी के समाचार उप संपादक रहे। वर्ष 1978 से 1980 तक उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार ( महाराष्ट्र-गुजरात ) मुंबई के क्षेत्रीय व्यवस्थापक के रूप में सेवा की। वे 1981 से 1983 तक नेपाल में विशेष संवाददाता रहे। इसके बाद वे हिन्दुस्थान समाचार, नई दिल्ली के प्रधान संपादक रहे। श्री अग्निहोत्री 1986 से 1989 तक पांचजन्य साप्ताहिक, दिल्ली के प्रबंध संपादक और भारत प्रकाशन, नई दिल्ली के महाप्रबंधक रहे भी रहे। वे 1989 से 1990 तक श्रीराम कार सेवा समिति, सूचना केन्द्र, नई दिल्ली के निदेशक तथा 1992 में अयोध्या स्थित श्री रामजन्म भूमि मीडिया सेंटर के निर्देशक थे। उन्होंने 1991 से 1998 तक मीडिया फोरम फीचर्स लखनऊ का प्रकाशन और संपादन किया। वे 1999 से 2002 तक भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय मीडिया प्रकोष्ठ, नई दिल्ली में रहे। इस दौरान उन्होंने 2002 से 2004 तक मीडिया वाच का संपादन और प्रकाशन किया।

रामशंकर अग्निहोत्री को संघ ने कार्यकर्ता निर्माण की भट्टी में ऐसा तपाया कि वे संघ की योजना से विविध प्रकार के कार्यों में लगे और उसे सफलता के साथ पूरा किया। वे संघ के स्वयंसेवक तो थे ही, एक कार्यकर्ता, प्रचारक और पत्रकार के रूप में भी उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। एक तरफ तो उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रबंधक, महापंबंधक, व्यवस्थापक आदि के रूप में काम किया वहीं वे संवाददाता, ब्यूरोचीफ, उप-संपादक, संपादक और प्रधान संपादक के रूप में भी अपने कर्तव्य का सफलतापूर्वक निर्वहन किया। बहुआयामी व्यक्तित्व वाले रामशंकर अग्निहोत्री भारत प्रकाशन और विश्व संवाद केन्द्र से संबंद्ध रहे। जीवन के अंतिम कालखंड में उन्होंने राजनीति की भी सेवा की। उन्होंने कोई पद तो नहीं लिया लेकिन अपने पत्रकारिता अनुभव के साथ भारतीय जनता पार्टी को भरपूर सहयोग दिया। वे भाजपा के दिल्ली और भोपाल कार्यालय को अपनी वैचारिक मदद देते रहे।

ढलती उम्र और गिरता स्वास्थ्य भी उन्हें निक्रिष्य नही बना पाया। निरन्तर कर्म के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें अंतिम समय तक विचार और कर्तव्य से जोडे रखा। भोपाल में रहते हुए भी उन्होंने हिंदुस्तान समाचार बहुभाषी संवाद समिति का अध्यक्ष पद संभाला। कल तक वे मानव अध्ययन शोधपीठ के अध्यक्ष थे।

सम्मान और उपलब्धियों के लिए वे कभी लालायित नहीं हुए। लेकिन कई देशों की यात्राएं और अनेक पुरस्कार व सम्मान उनके खाते में हैं। तंजानिया, कोरिया, युगांडा, इथोपिया, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और यूनाइटेड किंगडम समेत कई देशों की यात्रा कर चुके हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने गत वर्ष प्रदेश के सर्वोच्च पत्रकारिता सम्मान ‘‘माणिचंद्र वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार-2008’’ से उन्हें विभूषित किया। श्री अग्निहोत्री को उनके श्रेष्ठ कार्य के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। इनमें इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा डा. नगेन्द्र पुरस्कार, राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास द्वारा स्व. बापूराव लेले स्मृत्ति पत्रकारिता पुरस्कार तथा माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल द्वारा लाला बलदेव सिंह सम्मान प्रमुख हैं।

साहित्य सृजन के क्षेत्र में भी श्री अग्निहोत्री उल्लेखनीय परिचय दिया हैं। उनका काव्य संग्रह ‘‘सत्यम एकमेव’’ प्रकाशित है। रामशंकर अग्निहोत्री की कई पुस्तकें काफी चर्चित हुई। कश्मीर के मोर्चे पर, राष्ट्र-जीवन की दिशा, बाजी प्रभु देशपांडे, सुरक्षा के मोर्चे पर, अविस्मरणीय बाबा साहेब आप्टे, कम्युनिस्ट विश्वासघात की कहानी, डॉ. हेडगेवारःएक चमत्कार और नया मसीहा जैसी अनेक पुस्तकें उनके न होने के बाद भी उनके विचार और उद्देश्यों को आगे बढ़ायेंगी।

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