पाश्चात्य सभ्यता ने आज सारे सुर बिगाड दिये है :- जेपी गुप्ता

शादाब जफर”शादाब”

कवि व एसडीएम जेपी गुप्ता से खास मुलाकात

प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, एसडीएम नजीबाबाद श्री जेपी गुप्ता का अभी पिछले दिनो नजीबाबाद से मुजफ्फरनगर तबादला हुआ। इन के नजीबाबाद कार्यकाल के दौरान नजीबाबाद में जितना साहित्य सर्जन हुआ वो एक मिसाल है। आज हम प्रवक्ता.काम के पाठको के लिये श्री जेपी गुप्ता को एक कवि के रूप में लेकर आये है। हमारे प्रवक्ता.काम के स्तम्भकार व साहित्यकार शादाब जफर ”शादाब जी ने आज के साहित्य और कविता पर उन से बात की। प्रस्तुत है जाते जाते उन से की गर्इ एक खास मुलाकात।

 

शादाब:- सब से पहले में प्रवक्ता.काम की ओर से आपका स्वागत करता हू और साथ ही आप को धन्यवाद देना चाहूगा की आप ने अपने कीमती समय में से कुछ समय पत्र के लिये निकाला।

 

जेपी गुप्ता :-में प्रवक्ता.काम जैसे देश की प्रसिद्ध वेब पत्रिका को धन्यवाद देने चाहूगा की मुझे आप ने इस लायक समझा के में प्रवक्ता.काम के माध्यम से इस के सम्मानित पाठको से रूबरू हो सकू। इस के साथ ही कहना चाहूगा कि नजीबाबाद के साहित्यकारो, कवि, शायरो ने मेरे दो साल के कार्यकाल के दौरान मुझे एक कवि के रूप में जो मान सम्मान नाम दिया उस के लिये में आप सब का सदैव आभारी रहूगा। इस के साथ ही ये भी कहना चाहूगा कि आज लोग भागदौड वाली जिंदगी जी रहे है इस सब के बावजूद आप और में इस भाग दौड की जिन्दगी में से यदि थोडा समय निकालकर कुछ समय के लिये सारे काम भूलाकर कुछ समय के लिये कविता और साहित्य पर मंथन करने के लिये बैठे है तो आज में समझता हू कविता और आधुनिक साहित्य, गीत, गजल पर कुछ न कुछ नये पहलू जरूर निकलकर सामने आयेगे।

 

शादाब:- आप से मेरा पहला प्रश्न ये है कि आप के अंदर एक एसडीएम का जन्म पहले हुआ या एक कवि का।

 

जेपी गुप्ता :- मेरे अन्दर पहले कवि का जन्म हुआ। दरअसल मेरी पैदार्इश और परवरिश दोनो ग्रामीण परिवेश में हुए। बचपन से ही कोयल की कूह कूह सुनी, हरे भरे खेतो में दौडते धूमते तितलिया पकडते कब सुबह से शाम हो जाती थी मालुम ही नही पडता था। कच्चे मकानो की वो सोन्धी सोन्धी खुश्बू आज भी जब याद आती है तो मन तडप उठता है। इसी लिये मेरी कविताओ में मैने धरती, मौसम, हरे भरे खेतो को जगह दी, मेरी कविता में हमेशा मेरा गाव रहा है। इस सब के बावजूद मुझे ये अफसोस हमेशा रहा और आज भी है की मेरी कविताओ और गीतो का ज्यादा प्रचार प्रसार नही हो पाया।

 

शादाब:- आप को कविता कहने की प्रेरणा कहा से मिली।

 

जेपी गुप्ता :- मुझे कवि बनाने में हिन्दी की मशहूर पत्रिका कादम्बनी और विशेष रूप से मेरे गाव का बडा योगदान रहा है। यू तो में श्रृगांर रस का कवि हू मुझे श्रृगार रस बहुत ज्यादा पसन्द है। किन्तु समय आभाव के कारण में पूरा समय कविता को नही दे पाया। पढार्इ के बीच बीच में जब कभी समय मिलता कविता के रूप में मन से कुछ न कुछ निकल कर कागज पर आ जाता था।

 

शादाब:- आप तमाम प्रशासनिक जिम्मेदारिया होने के बावजूद कविता के लिये कैसे वक्त निकाल लेते है।

जेपी गुप्ता :- यू तो कविता कहने का कोर्इ समय नही होता हा जब काम का बोझ ज्यादा बढ जाता है तब कुछ देर के लिये आखे मूंद कर कुछ सोचता हू और कविता हो जाती है जिसे लोग पसन्द करते है मुझे आश्चर्य होता है की लोग मुझे सुनने के लिये तीन तीन चार चार घन्टे काव्य संध्याओ में मौजूद रहते है ये देख कर मुझे कविता का भविष्य उज्जवल नजर आता है और शनित महसूस होती है।

शादाब:- क्या कभी ऐसा हुआ है मन कविता को कर रहा है और एसडीएम का फर्ज आप को आवाज दे रहा था।

 

जेपी गुप्ता :- मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है पर फर्ज और जिम्मेदारी पहले है लोगो के बीच जाकर जब में उन से बाते करता हू तो मुझे कविता जैसा मजा आता है। किसी गम्भीर मसले पर जहा प्रशासन का अहम रोल होना चाहिये सख्त होना चाहिये में वैसा बन जाता हू। पर अक्सर मैने देखा है ज्यादातर लोग प्यार की मार से सही रास्ते पर आ जाते है सख्ती नही करनी पडती।

 

शादाब:- किस कवि या शायर को आप अपना आदर्श मानते है।

 

जेपी गुप्ता :- श्री जय शंकर प्रसाद द्विवेदी जी, आदरणीय पद्धम श्री गोपालदास नीरज जी हमेशा मेरे आदर्श रहे है और रहगे इन की उन की कविताए गीतो ने समय पर मेरा मार्ग दर्शन करने के साथ साथ मेरे जीवन को एक नर्इ दिशा प्रदान की।

 

शादाब:- आज की कविता लोगो पर प्रभाव क्यो नही छोड पा रही।

 

जेपी गुप्ता :- नही ऐसा नही है। आज भी बहुत से कवि ऐसे है जो बहुत प्यार से मंचो पर सुने जाते है हरिओम पंवार जी, कुमार विष्वास, गजेंद्र सोलंकी, माया गोविंद, सुरेन्द्र शर्मा, नीरज जी, संतोष आन्नद जी जैसे लोगो को सुनने के लिये में बचपन से आज तक हमेशा बैचेन रहता हू और मौका मिलने पर इन्हे पूरी श्रृद्वा के साथ सुनता हू और इन की रचनाए मेरा मार्ग दर्शन करने के साथ साथ मन को आत्मविश्वास प्रदान करती है। हा इतना जरूर कहा जा सकता है कि आज हास्य कविता के नाम पर चुटकुलेबाजी होने लगी है हास्य रस की कविता और कवि लुप्त होता नजर आ रहा है।

 

शादाब:- नजीबाबाद आकर एसडीएम जेपी गुप्ता कवि जेपी गुप्ता में अचानक कैसे बदल गये।

 

जेपी गुप्ता :- जब हम नजीबाबाद आये तो हम इस बात से बिल्कुल अन्जान थे कि नजीबाबाद साहित्य के क्षेत्र में अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है। हम रोज अखबार पढते तो कभी काव्य गोष्ठी कभी मुशायरो की रिर्पोट पढते फिर धीरे धीरे यहा के कवि शायरो से हमारा परिचय हुआ लोग मिले माहौल मिला फिर क्या क्या था एसडीएम जेपी गप्ता को कवि जेपी गुप्ता बनने में वक्त नही लगा। में आभार व्यक्त करना चाहूगा अभिव्यकित परिवार का जिन्होने हमेशा मुझे पूरे मान-सम्मान से काव्यपाठ के लिये समय समय पर मंच प्रदान किया व नजीबाबाद व बिजनौर के उन तमाम साहित्यकारो को जिन्होने मेरी रचनाए सुनकर मुझ को उत्साहित किया।

 

शादाब:- उर्दू कैसी जबान है, क्या आप उर्दू गजल भी कहते है।

 

जेपी गुप्ता :- उर्दू बहुत ही प्यारी मीठी जबान है उर्दू सब बोलते लिखते है। उर्दू भाषा को किसी विशेष वर्ग या जाति से जोडना गलत है क्यो के पुराने और आज के दौर में कर्इ हिन्दू शायर उर्दू के दिवाने, परवाने थे और आज भी है। जिन में चकबस्त, फिराक गोरखपुरी, जगन्नाथ आजाद, गोपी चन्द नारंग, गुलजार देहलवी, जैसे लोगो ने उद्र्व को अपना लहू पिलाया उर्दू की इबादत की, में खुद उर्दू गजल कहता हू। उर्दू बहुत ही भोली भाली ,मीठी ,प्यारी अदब की जबान है।

 

शादाब:- नजीबाबाद के कवि षायरो का साथ आप से छूट रहा है आप को कैसा महसूस हो रहा है।

 

जेपी गुप्ता :- कौन कह रहा है कि नजीबाबाद के कवि शायरो से मेरा साथ छूट रहा है, में आप को बता दू मुझे इस षहर से जितना प्यार मान-सम्मान मिला वो प्यार मेरे जिस्म में लहू बन चुका है। नजीबाबाद के कवि शायरो का और मेरा साथ मेरे जीवन के साथ साथ रहेगा। जो स्नेह मुझे नजीबाबाद से चन्द दिनो में मिला इतना स्नेह मुझे पूरे जीवन में नही मिला। यहा के कवि शायर ही नही यहा की आम जनता भी देव रूप समान है।

 

शादाब:- नये लिखने वालो के लिये कोर्इ संदेश देना चाहेगें।

 

जेपी गुप्ता :- साधना समझ कर काव्य रचना करते रहे। पाश्चात्य सभ्यता ने आज हमारे सारे सुर बिगाड दिये है इस का ख्याल रखे और अधिक से अधिक मन लगा कर ऐसी कविताओ, गीतो, ग़ज़लो की रचना करे जिस से मन की ष्षांति के साथ साथ समाज में जागृति पैदा हो आपसी भार्इचारा कायम हो, देश की उन्नती में आप का साहित्य योगदान दे आप की रचना आप के मुह से निकलतें ही लोगो के दिल में समा जाये।

 

प्रस्तुत है प्रवक्ता.काम के पाठको के लिये जेपी गुप्ता जी की एक ताजा ग़ज़ल

गजल ( जेपी गुप्ता)

चिलमन से निकल आर्इये-ए-हुस्न की मलका

इस दिल में समा जार्इये-ए-हुस्न की मलका

 

नागिन की तरहा डसने लगी है ये जुदार्इ

अब और न तडपार्इये-ए-हुस्न की मलका

 

है पेश-ए-नजर तेरे ये लम्हात-ए-जिन्दगी

बाहो में समा जार्इये-ए-हुस्न की मलका

 

खामोश क्यो हो बज्म में इतना तो बताओ

कोर्इ गजल सुनार्इये-ए-हुस्न की मलका

 

नश्तर की तरहा चुभती है ये दर्द-ए-जुदार्इ

लिल्लाह तरस खार्इये-ए-हुस्न की मलका

 

रस्मो रिवाज तोड के आखो से पीला दो

सासो में उतर जार्इये-ए-हुस्न की मलका

 

बदनाम जो होता है ”जगतकुछ नही परवाह

दुनिया से न घबरार्इये-ए-हुस्न की मलका

1 COMMENT

  1. एक एसडीएम को कवि के रूप में प्रस्तुत कर के प्रवक्ता.काम ने सराहनीय कार्य किया है आप को और षादाब जी को बधाई गजल भी पढने योग्य होने के साथ ही स्त्रीय है

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