क्या हैं सलमान खुर्शीद के बयानों के मायने ??

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विनोद विधुरी

अपने दामन पर मुसलमानों के खून के धब्बे होने की बात कहकर सलमान खुर्शीद ने कांग्रेस समेत भारत के राजनीति में हड़कंप मचा दिया है, लेकिन अगर इस बयान को गौर से देखा जाय तो इसमें राजनीति कम और दर्द ज़्यादा नज़र आता है। सलमान खुर्शीद देश के वरिष्ठ वक़ील होने के साथ-साथ कुशल राजनैतिक वक्ता माने जातें है। इसलिए सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर कर्णाटक चुनाव से ठीक पहले खुर्शीद ने ऐसा बयान क्यों दिया जो उनके ही पार्टी के ख़िलाफ़ हो ? क्या उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उनके दिए गए बयान कांग्रेस के लिए एक नई मुसीबत ला सकती है ? बतौर वक्ता खुर्शीद के इतिहास को देखा जाए तो वो हमेशा ही बोलते समय सतर्कता बरतते है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अन्ना का आंदोलन है याद कीजिए मनमोहन सरकार का वो दौड़ जब तमाम कांग्रेसी नेता और मंत्री अपने अभद्र बयानों से सरकार को शर्मिंदा कर रहे थे,आंदोलनकारी और कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार में लगातार तनाव बढ़ रहा था तब सलमान खुर्शीद ही वो नेता थे जिन्होंने सरकार के तरफ से सकारात्मक संवाद स्थापित किया था। इतना ही नहीं उनका ये बयान और इस पर कायम रहना निश्चित ही उनके दर्द को दर्शाने के साथ-साथ कांग्रेस के तथाकथित धर्मनिरपेक्षता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगाता है।
इस बात को कोई नहीं नकार सकता की कांग्रेस के शासन काल में लगभग 5000 दंगों का इतिहास रहा है। भिवंडी से लेकर भागलपुर तक और मेरठ से मलियाना तक की घटना ने कांग्रेस के सेक्युलरिज्म की पोल खोलता रहा है।अगर कांग्रेस इन घटनाओं से पीछा छुड़ा भी लेती है तो 1984 में हुआ सिखों का नरसंहार उसे चैन से सोने नहीं देगी। अब सवाल तो ये भी उठता है कि सलमान खुर्शीद के इस बयान के बाद क्या संविधान यात्रा निकालने वाले राहुल गाँधी देश से इन दंगो के लिए माफ़ी मांगेंगे क्योंकि आरोप कोई विपक्षी नेता ने नहीं उनके ही पार्टी के वरिष्ठ सदस्य ने लगाया है जो की पेशेवर एक वक़ील भी है।

1 COMMENT

  1. राहुल बाबा खुद माफ़ी मांगते नहीं हैं , वे और उनके दरबारी यह मान कर चलते हैं कि कांग्रेस न तो कभी गलती करती है और न साम्प्रदायिकता फैलाती है जब कि देश की सब से बड़ी साम्प्रदायिक पार्टी कांग्रेस ही है, संघ व भा ज पा के विरुद्ध दुष्प्रचार कर वह मुसलमानों को बहुत बेवकूफ बना चुकी है , कांग्रेस के मुस्लिम नेता भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन सत्ता की भूख वश वे भी बोल नहीं पाते

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