अवधेश पाण्डेय
आज एक और स्वतन्त्रता दिवस आ गया है. एक जागरूक इंसान की विभिन्न कार्यक्रमों में उपस्थिति रही होगी. बिना स्वतंत्रता का मतलब समझे लोग स्वयं को स्वतंत्र समझ रहे हैं. स्वतंत्र शब्द की व्याख्या इस प्रकार से होगी. स्व + तंत्र यानि ऐसा तंत्र जो अपना हो? अब आप खुद सोचिये कि इस तंत्र मे स्व कितना है.
आप अपने दिल पर हाथ रख कर पूछिये, क्या आप नहीं चाहते कि संसद हमले के दोषी अफजल गुरु सहित, कसाब आदि सभी आतंकियों को फाँसी की सजा हो, सभी भ्रष्टाचारी जेल में हों और आम जनता को न्याय मिल सके. आपकी यह इच्छा जो एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में सहायक हो सकती है, अगर नहीं पूरी हो सकती, तो आपको यह विचार करना चाहिये कि वास्तव में यह कैसा स्वतंत्र है?
15 अगस्त 1947 को अग्रेजों ने देश की सत्ता हमारे नेताओं को सौंप दी. देश को उसी समय स्वतंत्र से युक्त होना था पर हुआ क्या? हमने वही ब्रिटिश तंत्र अपना लिया, आज भी लगभग 34735 कानून अग्रेजों के बनाये चल रहे हैं. हम अगर इसे ही स्वतंत्र मान खुश होते रहें तो हमसे बडा मुर्ख भला कौन होगा. हमें यह समझने की जरूरत है कि 1947 में गोरे अंग्रेजों ने काले अग्रेजों को सिर्फ सत्ता हस्तांतरण कर दिया था. बाकी कानून उनके, भाषा-भूषा उनकी ही रही. हमारा अपना कुछ नहीं. फलत: एक कृषि प्रधान देश के युवाओं को ऐसी शिक्षा दी जाने लगी जिससे वह कृषि को निम्नतम व्यवसाय मानने लगा. इसका नतीजा यह है कि हम अपने बच्चों को पढा लिखा कर इस काबिल बना रहे हैं कि वह अमेरिका और इंग्लैड की सेवा करें. भारत की नहीं. क्या स्वतंत्र ऐसा होता है जिसमें अपने देश की प्रतिभायें विदेशी अर्थव्यवस्था को मजबूत करें.
बचपन से लेकर अभी तक हर एक भाषण मे यही सुनता आ रहा हूँ कि देश के लिये बलिदान देने वालों का सम्मान होना चाहिये, अब बलिदानियों उन्हे कोई पूछ नही रहा आदि आदि, मन में बहुत पीडा भी होती है, लेकिन अब हममें इतनी समझ होनी चाहिये कि जिनके हाथ में हमने सत्ता दी है वो तो बलिदानियों को आतंकी कहते थे, ऐसी राजसत्ता से हम क्या उम्मीद करेंगे कि वह उन अमर बलिदानियों को सम्मान देगी?. जो तंत्र जनता की इच्छानुसार अपने इतिहासपुरुषों को सम्मान नहीं दे सकता तो विचार कीजिये कि वह कैसा स्वतंत्र है.
एक ऐसा देश जहाँ दिन सूर्य उगने के साथ शुरु होता है, वहाँ देश का सत्ता हस्तांतरण रात में होता है, रात्रि में ही आपातकाल घोषित कर दिया जाता है. अगर आप को लगता है कि यह बातें पुरानी हो चुकी हैं तो अभी 4-5 जून 2011 को बाबा रामदेव के आंदोलन को कुचला जाना आपको अवश्य याद होगा. भारत ऐसे लोगों का देश है जहाँ बडे फैसले सुबह होने पर लिये जाते हैं तो देश की किस्मत का फैसला रात में क्यों? ऐसी क्या जल्दी और उतावलापन था? हमारे नेताओं मे सत्ता को लेकर कितना उतावलापन था कि उन्होने देश का विभाजन भी स्वीकार कर लिया, एक बार भी नहीं पूछा कि तुम खुद तो युनाईटेड रहते हो तो हमें क्यों बाँट रहे हो. आज उन्ही स्वार्थी नेताओं के वंशज देश सम्हाल रहे हैं तो देश स्वतंत्र कैसे हो सकता है.
देश के उन भाग्यविधाताओं ने इंडिया और भारत को अलग अलग परिपेक्ष्य में देखा, नतीजा क्या हुआ? इंडिया तरक्की करता रहा और भारत पिछडता रहा. अमीर और अमीर होते गये तो गरीबों को दो जून रोटी भी मयस्सर नहीं. भारत की जमीन पर इंडिया खडा होता गया और उसने ऐसे रईसों को जन्म दे दिया जो भारत के बारे में सोचना तो दूर उसके लोगों से घृणा करने लगे. क्या आप इसे ही स्वतंत्र कहेंगे, जहाँ एक भाई दूसरे भाई का खून चूस रहा है.
विभाजन की त्रासदी झेलने वालों से पूछिये कि उन्होने स्वतंत्र होने के लिये कितनी बडी कीमत चुकाई है. लेकिन अभी भी क्या वह कह सकते है कि हम स्वतंत्र हैं. स्वतंत्रता हमारा भ्रम है और हमें यह समझने की जरूरत है कि 15 अगस्त 1947 को सिर्फ सत्ता हस्तांतरण हुआ था, स्वतंत्र तो हम तब होंगे जब गुलामी के सारे प्रतीकों को जड से उखाड फेंककर एक नये भारत के निर्माण का संकल्प लेंगे. संकल्प लीजिये एक नये भारत के निर्माण का, जिसमें सब कुछ हमारा अपना हो और हम गर्व से कह सकें कि हमारे पास स्वंतत्र है…..
शायद आपको लोकमान्य तिलक का यह नारा याद होगा ” स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा”. अब इस नारे का फिर उपयोग करने का समय आ रहा है.
!! भारत माता की जय !!