आखिर केन्द्रीय जांच एजेंसियों के टारगेट में क्यों है गुजरात?


-अक्षपाद् गौतम

विगत दिनों जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर गठित विशेष जांच दल के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया गया तो पूरे देश की नजर एक बार फिर से गुजरात के तरफ घूम गया। हालांकि मोदी ने जांच दल के समक्ष प्रस्तुत होने से पहले समाचार माध्यमों को एक खुला-पत्र प्रेषित कर यह साबित करने का प्रयास किया कि देश तथा राज्य में कुछ ऐसी ताकत सक्रिय है जो गुजरात ही नहीं खुद मोदी को भी लगातार बदनाम करने की साजिश करते रहते हैं, लेकिन मोदी का यह दाव तब उलटा पर गया जब उन्हें मात्र कुछ ही दिनों के बाद जांच दल के समक्ष उपस्थित होकर गोधरा कांड के बाद सन 2002 में भड़के दंगे पर अपना पक्ष रखना पडा। विशेष जांच दल ने मोदी से 09 घंटे तक की पूछताछ की थी। मोदी से कौन से सवाल पूछे गये और मोदी ने उन सवालों का क्या जवाब दिया यह किसी को नहीं पता है लेकिन कयास यही लगाया गया कि मोदी को दंगे के दौरान नरोडा पाटिया स्थित गुलवर्ग सोसायटी में हुयी हत्याओं पर प्रश्न पूछे गये होंगे। जानकारी में रहे कि उस घटना में अन्य लोगों के साथ पूर्व सांसद एहसान जाफरी की भी हत्या कर दी गयी थी। मोदी पर आरोप है कि उन्होंने एहसान द्वारा सुरक्षा की मांग के बाद भी उसे सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराया और अंततोगत्वा एहसान मारे गये।

हालांकि पूर्व सांसद जाफरी को प्रदेश कांग्रेस ने अपनी पार्टी से निकाल दिया था, उसके उपर गैरजिम्मेदाराना कार्य करने का भी समय समय पर आरोप लगाया जाता रहा। इस मामले में एहसान की पत्नी जाकिया जाफरी ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दाखिल कर मांग किया था कि गुजरात सरकार के सन 2002 के दंगे की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग पर उसे भड़ोसा नहीं है। ऐसी पस्थिति में न्यायालय के देख रेख में दंगे की जांच होनी चाहिए। यही नहीं जाकिया ने यह भी निवेदन किया कि दंगे में प्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी संलिप्त हैं इसलिए इसको आधार बनाकर जांच किया जाना चाहिए। उक्त जांच दल का गठन सर्वोच्च न्यायालय ने जाकिया के जिक्र पर संज्ञान लेते हुए किया। उक्त जांच समिति विगत कई वर्षों से दंगे से संबंधित जांच को अपने ढंग से देख रही है। सन 2002 के दंगों पर जांच दल ने न केवल मोदी को बुलाकर पूछा अपितु विश्व हिन्दू परिषद् के कई नेताओं को भी जांच लद के द्वारा सम्मन जारी किया गया है। परिषद के नेता विशेष जांच दल के समक्ष उपस्थित होकर अपना पक्ष भी रख चुके हैं। हालांकि इस पूरे प्रकरण पर सरसरी निगाह डालने से मामला पूर्ण रूपेण राजनीतिक नुरा कुस्ती का ही लगता है। सबसे पहली बात तो यह है कि न्यायालय ने जाकिया जाफरी के आवेदन पर एकतरफा सज्ञान लिया है। मामले पर बहस के दौरान वरिष्ट अधिवक्ता राम जेठमलाणी ने न्यायालय से यह निवेदन किया कि इस मामले में गुजरात सरकार को अपने बचाव में कुछ भी कहने की इजाजत नहीं दी गयी जो भारतीय कानून की प्रकृति के भिन्न है। वरिष्ट अधिवक्ता राम जेठमलाणी के शब्दों में दूसरे पक्ष की दलील तो सुनी ही नहीं गयी। एसे में दूसरे पक्ष की स्वतंत्रता पर आघात का मामला बनता है। यही नहीं सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश पर गठित विशेष जांच दल को दंगों से संबंधित विभिन्न जांच एजेंसी द्वारा की जा रही जांच पर नजर रखना है न कि अपने तरीके से मामले की जांच करनी है। इस परिस्थिति में जांच दल पर कई सवाल भी उठने लगे हैं। सियासी गलियारों में इस बात की जबरदस्त चर्चा है और इस पूरे मामले को राजनीतिक उठापटक से जोड कर देखा जाने लगा है।

उस घटना के बाद से गुजरात में लगातार जांच एजेंसियों का दबाव बढता गया। जहां एक ओर सोहराबुद्दीन कथित फर्जी मुठभेड प्रकरण में और कई लोग पकडे गये वही इसरत जहां मुठभेड प्रकरण को को भी फर्जी साबित करने का प्रयास किया गया। विगत दिनों अहमदाबाद महानगर न्यायालय के ततकालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति तमांग ने इसरत जहां एवं उसके साथ मारे गये तीन अन्य को निर्दोष बताया और अपनी आख्या में कहा कि पुलिस ने इसरत तथा उसके साथ मारे गाये लोगों को इसलिए मार दी कि कुछ पुलिस अधिकारियों को प्रोन्नति चाहिए थी। मामले पर राज्य सरकार, केन्द्र सरकार तथा महानगर न्यायालय के बीच रस्सकसी चल ही रही थी कि सर्वोच्च न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख कथित फर्जी मुठभेड की जांच केन्द्रीय जांच आयोग को सौंप दिया। ऐसा आदेश माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख के भाई रकाबुद्दीन शेख द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल एक याचिका के आलोक में दिया गया। रकाबुद्दीन का आरोप है कि गुजरात सराकर के द्वारा सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उसके अलावे अन्य कई ऐसे लोग गुप्त रूप से उस षडयंत्र में शामिल हैं जिसकी जांच मुकम्मल नहीं हो पायी इसलिए राज्य सरकार की दलील को दरकिनार करते हुए माननीय न्यायालय को चाहिए कि इस मामले की जांच केन्द्रीय जांच आयोग जैसी स्वतंत्र जांच संस्था से करायी जाये। इस मामले में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार की दलीलें नहीं सुनी और सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड के मामले की संचिका माननीय न्यायालय के आदेश से केन्द्रीय जांच आयोग को सौंप दिया गया। केन्द्रीय जांच आयोग के हाथ में मामला आते राज्य सरकार पर मानों सामत आ गया हो। पहले तो केन्द्रीय जांच आयोग ने प्रभावशाली जेसीपी अभय चुडासमा को गिरफ्तार कर लिया फिर उसके बाद और कई लोगों की गिरफ्तारी लगातार की गयी। अब चर्चा इस बात की है कि सोहराबुद्दीन कथित फर्जी मुठभेड प्रकरण में प्रदेश सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री की भी गिरफ्तारी संभव है। इस मामले में गुजरात और राजस्थान की पुलिस एक साथ संलिप्त है। जानकारी में रहे कि जहां एक ओर मामले में गुजरात संवर्ग के वरिष्ट पुलिस अधिकारी डी0 जी0 बंजाडा को गिरफ्तार किया जा चुका है वही राजस्थान संवर्ग के पुलिस प्रशासनिक सेवा के अधिकारी दिनेश एम0 एन0 जेल की हवा खा रहे हैं। इस मामले में और कई कनिष्ट पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किये जा चुके हैं। हांलांकि ये सारे अधिकारी गुजरात पुलिस के द्वारा जांच के दौरान ही गिरफ्तार किये गये हैं। साथ ही मामले पर गुजरात सरकार ने न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर यह कह चुकी है कि सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौशर बीबी की हत्या गुजरात पुलिस के द्वारा की गयी, लेकिन मामले को फिर से खोलने के पीछे याचिकाकर्ता रकाबुद्दीन के अधिवक्ता की दलील है कि जिन अधिकारियों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है वह तो मात्र मोहरा है, असली षडयंत्रकर्ता तो आज भी खुल कर खेल रहा है। रकाब ने तो प्रदेश के मुख्यमंत्री तक पर आक्षेप किया है।

गुजरात में ये दो मामले ही नहीं हैं। तीसरे मामले की जांच खुद राष्ट्रीय जांच अभिकरण ने गुजरात पुलिस के हाथ से छिन लिया। सन 2008 में साबरकांठा जिले के मोडासा में एक मस्जिद के पास बंम धमाका हुआ था। उस धमाके में एक युवक की मृत्यु और 10 लोग घायल हो गये थे। मामले को मालेगांव, अजमेरशरीफ से जोडते हुए राष्ट्रीय जांच अभिकरण ने गुजरात पुलिस से जांच का जिम्मा हथिया लिया है। सूत्रों की मानें तो इस धमाके में भी मालेगांव और अजमेरशरीफ जैसे तकनीक का उपयोग किया गया था। राष्ट्रीय जांच अभिकरण की टीम भी राज्य में लगातार कैंप कर रही है। इस मामले को लेकर गुजरात में चर्चा का दौरा जारी है। लोगों का यही कहना है कि एनआईए मोडासा विस्फोट में गुजरात के अतिवादियों को ढुंढ रही है जिससे आने वाले समय में प्रतिपक्षी दलों को यह साबित करने में सहुलियत होगी कि गुजरात भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में हिन्दू चरमंथियों का गढ बन गया। इन तमाम जांच समितियों, उपसमितियों के अलावा राज्य में इंटेलिजेंश ब्यूरो और अन्य कई प्रकार की जांच एजेंशियां सक्रिय है। बकौल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विजय रूपाणी कुल जांच एजेंशियों की जांच की दिशा पर अगर सरसरी निगाह डलें तो एक ही बात ध्यान में आती है कि ये जांच एजेंशियां केन्द्र के हितपोषण में लगी हुई है।

जांच ऐजेंशियों का सियासी उपयोग हो रहा है या नहीं इसपर मिमांशा अभी बांकी है लेकिन मामले की जांच की दिशा से यह तो स्पष्ट हो गया है कि गुजरात को टारगेट किया जा रहा है। लेकिन इन तमाम बातों से राज्य सरकार के अपराध कम नहीं होते। जांच एजेंशियों की खोज और आख्या जो समाचार पत्रों में छप रहे हैं उससे यही लगता है कि राज्य सरकार के दामन भी साफ नहीं हैं। मोदी के कार्यकाल में कई ऐसे अपराध हुए जिसको दफन करने का प्रयास किया गया है। पिछले दिनों एक मामला और उभर कर सामने आया कि जिस सीडी के कारण भारतीय जनता पार्टी के मुम्बई अधिवेशन में पार्टी संगठन महामंत्री संजय जोशी को पार्टी तक से बाहर होना पडा था वह सीडी तकनीकी सिद्धस्थता से बनाया गया था उस सीडी में तथ्य नाम की कोई चीज नहीं थी। गुजराती के एक प्रतिष्ठत अखबार ने तो यहां तक छापा कि जिस पुलिस उपमहानीरीक्षक ने उक्त सीडी को बटवाने की व्यवस्था की थी उसने नागपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय में एक पत्र लिखकर इस जघन्य अपराध के लिए माफी तक मांगा है। हालांकि उस अधिकारी ने उक्त पत्र में अपना नाम नहीं लिखा है। आतंकवाद विरोधी दस्ता का निलंबित इंसपेक्टर बालकृष्ण चौवे ने केन्द्रीय जांच आयोग के सामने खुलासा किया कि उक्त सीडी को भारतीय जनता पार्टी के मुम्बई अधिवेशन में बांटने का जिम्मा उसे खुद डी0 जी0 बंजारा ने दिया था। अखबर की लेखनी पर भरोसा करें तो सीडी बनाने वाला साफ्टवेयर डेवलपर आज संयुक्त राज्य अमेरिका में है लेकिन असका सगा भाई अहमदाबाद में ही रहता है। अब इस बात की भी चर्चा जोर पकड रही है कि हरेन पांडया की संचिका को भी सीबीआई खंघाल रही है। जंगल के आग की तरह इस समाचार को फैलाया जा रहा है कि सोहराबुद्दीन हत्या के लिए जिस व्यक्ति ने रिवालबार उपलब्ध कराया था उसी आदमी ने हरेन के हत्यारों को भी हथियार उपलब्ध कराया। कहा तो यहां तक जा रहा है कि हरेन को जिस समय गोली मारी गयी थी उससे कुछ ही देर पहले हरेन उस चर्चित मंत्री के साथ थे जिसपर सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेर की साजिश का आरोप लगाया जा रहा है।

तमाम मामलों में एक बात गौर करने की यह है कि ये सारी बातें सबसे पहले समाचार माध्यमों में छापा और दिखा दिया जाता है फिर जांच एजेंशी अपना रूख उस दिशा की ओर करती है। इस प्रकार के उठापटक से निःसंदेह गुजरात के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पडेगा। लेकिन गुजरात को हथियाने के लिए देश की दो मजबूत पार्टियों में जंग जारी है। एक पार्टी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ है तो दूसरी पार्टी सत्ता हथियाने में केन्द्रीय ताकत का उपयोग कर रही है। जब से केन्द्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार बनी है उसी समय से गुजरात को केन्द्र में रख कर राजनीतिक की जा रही है। कुछ लोगों का मानना है कि जब केन्द्र सरकार को हांकने वाले गठबंधन के कर्ताधर्ता गुजराती सत्तारूढ भाजपाई महारथियों के साथ कूटनीतिक नुराकुस्ती में नहीं सके तो देश के तमाम जांच एजेंशियों को गुजरात के खिलाफ लगा दिया गया। ये जांच एजेंसियां क्या निकाल पाएगी यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इस पर फिलहाल राजनीतिक उठापटक जारी है।

विगत एक महीने से गुजरात सरकार के एक महत्वपूण महकमा सम्हाल रहे मंत्री की गिरफ्तारी की अफवाह उड़ायी जा रही है। भगवान जाने उक्त मंत्री की गिरफ्तार होंगे भी या नहीं लेकिन अफवाह के माध्यम से विपक्षी पार्टी उक्त मंत्री पर सारे आरोप लगा रहे हैं। क्या यह अफवाह यों समाचार बेचने के लिए उडाया जा रहा है या फिर इसके पीछे कोई गहरी साजिश है, यह भी मिमांशा का विषय है। आखिर ऐसे अफवाह के पीछे कौन लोग है? ऐसे अफवाहों से किसको फायदा हो रहा है? इस प्रकार के अफवाह पर संबंधित जांच एजेंशियों को भी गंभीरता से विचार करना चाहिए। ऐसा नहीं करने से जांच एजेंसियों के प्रति लागों का विश्वास कमजोर पर जाएगा। जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगेंगे। सूत्रों पर भडोसा करें तो केन्द्र की संप्रग सरकार गुजरात के सत्तारूढ दल को किसी न किसी मामले में घेरने की योजना बना रही है। विगत दिनों एक पत्रकार वार्ता के दौरन भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरूषोत्तम रूपाला ने सीबीआई पर राज्य सरकार के कानून व्यवस्था की समीक्षा का आरोप लगाया था। रूपाला के आरोप में कितनी सत्यता है यह तो जांच के गर्भ में है लेकिन अगर गुजरात के सत्तारूढ दल को केन्द्र की जांच एजेंशी पर विश्वास नहीं हो रहा है तो यह एक गंभीर मामला है और इसका दूरगामी प्रभाव खतरनाक हो सकता है। आज देश में जहां कही भी अलगाववाद है उसके पीछे केन्द्रीय नेतृत्व के प्रति अविश्वास का होना है। नागालैंड, मिजोरम, दक्षिण का तमिल अलगावाद, पंजाब का पृथक्तावाद, कश्मीर का अलगाववाद, माओवादी आतंकवाद इन तमाम पृथकक्तावादी शक्तियों को केन्द्रीय नेतृत्व के प्रति अविश्वास के कारण ही बल मिला है।

आज जिस मोड पर गुजरात खडा है वह गुजरात के लिए एक एतिहासिक क्षण है। सत्तरूढ दल के नेतओं का यह आरोप बिल्कुल सही है कि पूरे देश में हजारों फर्जी मुठभेड मामले प्रकाश में आए लेकिन जितनी ततपरता केन्द्र सराकर ने सोहरबुद्दीन फर्जी मुठभेड में दिखायी उतनी तत्परता शायद ही किसी अन्य मुठभेडों में दिखाई होगी।

भाजपा का आरोप है कि केन्द्र सरकार ने इसरत जहां और उसके साथियों को भी राष्ट्रभक्त साबित करने का प्रयास किया। विगत दिनों सारेआम केरल के एक प्राध्यापक को कुछ अतिवादियों ने हाथ काट लिया लेकिन केन्द्र सरकार कुछ करने की स्थिति में तो नहीं है ही कुछ कहने के लिए भी तैयार नहीं है। प्रज्ञा ठाकुर का कई बार नार्को टेस्ट किया जा चुका है लेकिन साम्यवादी चरमपंथी कोबाद गांधी का नार्को नहीं किया गया है। राज्य की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि केन्द्र सरकार मात्र राजनीतिक फायदे के लिए गुजरात को टारगेट में ले रही है। इसके पीछे का कारण एक मात्र मुस्लिम मतों का कांग्रेस पार्टी के प्रति ध्रुवीकृत करना है।

3 COMMENTS

  1. Strategy of Congress Party to snatch Govt. from BJP in next elections appears:(i) polarize Muslim votes in its favour by all available means(ii) depict Muslims nationalists as sufferers (iii) project BJP as dire against Muslims (iii) malign BJP & non-BJP Hindu leaders anti-Muslim in every possible manner.

    Should policy of those opposed to Congress Party in Gujarat be to attempt polarization on communal lines?

    The answer ought to be a firm “no”.

    Negativity of Congress Party should be fought on well thought out positive philosophy – the salient feature of the same to be vande matram, sarva dharam sambhav,ahimsa, prosperity of all irrespective of religion and caste.

  2. जब सब कुछ वोट बैंक के लिए हो रहा है तो हिन्दू विरोधियों को कोसने के साथ साथ हिन्दुओं को भी अपने आप को एक ठोस वोट बैंक के रूप में स्थापित कर लेना चाहिए जो हिन्दू हितों से पक्षपात करने वालों को वोट न देने की कसम ले .. अन्यथा हिन्दू पिटते रहेंगे, अपमानित और प्रताड़ित होते रहेंगे .. कोई नहीं बचा सकेगा

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