यह क्या हो रहा है?

श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में जनता द्वारा शासन को सुचारू चलाने के लिए एक तंत्र का निर्माण किया जाता है और आमजन अपने इस तंत्र से उम्मीद करता है कि वह आमजन की परेशानी को समझे और उसको दूर करने के उपाय करे। लेकिन जब राज चलाने वाला यही तंत्र राज काज में विफल हो रहा हो तो आमजन किसकी तरफ देखे और फिर किससे उम्मीद करे। वर्तमान में जो हालात है उस पर गौर करें तो पता चलता है विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र को शायद किसी की नजर लग गई है और इसको जनता की उम्मीदों पर चलाने वाला कोई नहीं रहा है। हम गौर करें तो पिछले कुछ समय से इस देश में जो कुछ भी हो रहा है उसको देख कर सबके मुँह से यही निकल रहा है कि ये क्या हो रहा है………

पिछले दिनों भरी अदालत में दिन दहाड़े एक युवक ने आरूषि हत्याकांड की जाँच के दौरान गवाही के लिए जा रहे आरूषि के पिता राजेश तलवार पर हमला कर उनको लहुलुहान कर दिया, याद रहे ये वो ही युवक है जिसने रूचिका गिरहोत्र मामले में एसपी राठौड़ पर भी हमला किया था। इसी तरह छत्तीसगढ़ के कुछ पुलिसकर्मी अपने अपने परिवार के अपहृत परिजनों की तलाश खुद कर रहे हैं उनको अपने ही पुलिस प्रशासन पर भरोसा नहीं रहा है। एक और घटना पर गौर करे तो दिल्ली में सरेराह आम लोगों ने एक चोर को पकड़ा और इतना पीटा की वह चोर सड़क पर ही मर गया। इसी तरह की घटनाएँ आजकल आम हो गई है और बलात्कार की शिकार एक महिला ने मंत्री को उसके घर में जाकर चाकू घोंप दिया।

अगर हम चिंतन करें तो यह बात सामने आती है कि आज आम जन को अपने ही बनाए तंत्र पर भरोसा नहीं रहा है। आम आदमी को लगता है कि यह मामला पहले पुलिस में जाएगा तो हो सकता है कि कोई रसूखदार और पहुँचवाले आदमी की शह मिल जाए और मामला थाने तक ही सिमट कर रह जाए या फिर यह मामला अदालत में जाएगा जहाँ पहले से ही लाखों मामले अटके पड़े हैं तो आज आम आदमी के दिलों दिमाग पर यह बात घर कर गई है कि ऐसे ही चोरियाँ होनी है ऐसे ही भ्रष्टाचार होना है और इन सब बेईमानों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो इस मन: स्थिति ने व्यवस्था को अपने हाथ में लेने की आदत डाल दी है। लोगों को कोई उम्मीद अपने राजनेताओं और न्यायापालिका या कार्यपालिका से नहीं रही है और आम जन का धीरज टूट गया है और यही कारण है कि जनता उग्र हो जाती है तोड़ फोड़ करती है। यह सारी स्थितियाँ राज की कमजोरी को दिखाती है और यह दर्शाती है कि आज राज का नियंत्रण नहीं रहा हेै।

इन सबसे इतर एक और हालात है जो अभी सुर्खियों में है और वो है महंगाई से बेहाल जनता। महंगाई का यह आलम है कि आमजन प्याज नहीं खा सकता और चीनी की मिठास से दूर हो गया है। दाल के स्वाद को भूलने की स्थिति आ गई है और अगर ये हालात ऐेसे ही रहे तो चोरी, लूट, कालाबाजारी को इतना बढ़ावा मिलेगा कि स्थिति नियंत्रण के बाहर हो जाएगी और हालात काबू में नहीं रहेंगे। महँगाई के कारण एक चक्र चलता है जिससे अंतर्गत आम आदमी अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए चोरी का सहारा लेता है और इससे समाज में अराजकाता और अशांति फैलती है और आम जन के जीवन पर इसका फर्क पड़ता है।

ये तो बात हुई आम आदमी की अब दूसरी तरफ हम अगर लोकतंत्र के हूक्मरानों पर नजर डाले तो माजरा कुछ ओैर ही नजर आता है। इस देश के प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि भ्रष्टाचार इतना है कि अपने लोगों के बीच जाते शर्म आती है, तो सम्मानीय प्रधानमंत्री जी इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भारत का आम आदमी ओबामा के सामने फरिययाद थोड़ी करेगा, इस समस्या का समाधान तो आपको ही निकालना होगा भारतीय लोकतंत्र के तंत्र के आप ही सबसे प्रमुख व्यक्ति हो और अगर आप ही ये कहते हो कि शर्म आती है तो आम आदमी किसके पास जाए।

एक तरफ जहाँ महँगाई का आलम है वहीं शरद पँवार जैसे जिम्मेदार मंत्रियों का यह कहना है कि मैं कोई ज्योतिषि नहीं हँ और प्रणव मुखर्जी वित्त मंत्री के पद पर रहते हुए यह कहते हैं कि मेरे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। गौर करें कि विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र के राजाओं के यह बयान कितने गैर जिम्मेदाराना है। उनको यह मालूम होना चाहिए कि भारत की आम जनता यह मानती है कि उनके कृषि मंत्री ज्योतिषि नहीं है परन्तु जब अनाज की समस्या आएगी तो कृषि मंत्री को ही उसका हल निकालना होगा और अगर महँगाई बढ़ेगी तो वित्त मंत्री ही कोई जादू की छड़ी घुमाएॅगे। आम आदमी यह नहीं जानता कि वह जादू कैसा होगा या क्या होगा। पर यह जनता दाल रोटी प्रेम से खाना चाहती है, गरीब आदमी प्याज से ही गुजर बसर करता है तो उसको यह पता है कि अगर प्याज के भाव कम होेंगे तो सरकार ही करेगी तो वित्त मंत्री जी आपको इसका कोई उपाय तो करना ही होगा।

इसी तरह एक प्रदेश के मुख्यमंत्री यह कहते हैं कि डॉक्टर लाशों को वैन्टीलेटर पर रखते हैं, बाबू लोगों का काम नहीं करते, पुलिस वाले चोरों को जानते है पर पकड़ते नहीं है। तो मुख्यमंत्री जी आपको यह ध्यान रखना होगा कि ये डॉक्टर ये बाबू ये पुलिस वाले सब आपके ही कर्मचारी है और ये सब लोग अगर ऐसा करते हैं तो इसकी जिम्मेदारी आपकी है कि आप इस सारी व्यवस्था में सुधार करें । आप जनता के सामने यह कहकर क्या जताना चाहते हैं कि आप पाक और साफ है और व्यवस्था खराब है। नहीं मुख्यमंत्री जी यह जनता भी आपकी है और यह व्यवस्था भी आपकी है।

आजकल इस तरह के बयान देना फैशन बन गया है लगता है। इस देश के नेता जनता के सामने लाचारगी दिखा कर जनता का विश्वास जीतना चाहते हैं और उनके दया के पात्र बनना चाहते हैं। पर उनको यह याद रखना चाहिए कि व्यवस्था में राजा ही नाकाम हो जाए तो दोष जनता का नहीं है। यह राजा की जिम्मेदारी है कि वह जनता के सुख स्वास्थ्य व सुविधा का ध्यान रखे। इस तरह की व्यवस्था में जनता कहाँ जाए किसके सामने फरियाद करे।

अंत में अपनी बात यह कहकर ही समाप्त करना चाहूँगा कि लोकतंत्र में तंत्र की सुदृढ़ता जिम्मेदारी लोक के नुमाइंदों की है और इन नुमांइंदों को समझना होगा कि वे राज के हकदार नहीं है बल्कि इस राज के न्यासी है और उनकी जिम्मेदारी है कि जिस जनता ने उनको ये राज सौंपा है उस जनता की चेहरे पर मुस्कान रहे और उसकी नजरों की आशाओं के दीप झिलमिलाते रहे।

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