मोदी का राष्ट्रवाद क्या है?

modiप्रसिद्घ क्रांतिकारी रामनाथ पाण्डेय की अवस्था जब 15-16 वर्ष की ही थी, तब ‘काकोरी षडय़ंत्र केस’ में अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। चूंकि इनके पिता बचपन में  ही मर गये थे, इसलिए इनके पूरे परिवार के भरण-पोषण का दायित्व भी इन्हीं के ऊपर था। जेल में इन्होंने पंद्रह दिन का अनशन भी किया। एक बार एक और क्रांतिकारी ने उनसे पूछा कि अपनी मां का एकमात्र सहारा होते हुए तुमने जेल का वरण क्यों किया? इस पर पाण्डेय ने उत्तर दिया-

‘मैं एक और बड़ी मां के प्रति अपने कत्र्तव्य का पालन कर रहा हूं, फिर चिंता किस बात की?’

इस केस में क्रांतिकारी पाण्डेय ने पांच वर्ष की कैद की सजा काटी थी।

हमारा भारतीय राष्ट्रवाद हमें  यही शिक्षा देता है, वह हमें राष्ट्रभक्त बनाता है-अपने धर्म के प्रति आस्थावान, अपने इतिहास के प्रति निष्ठावान और अपनी संस्कृति के प्रति कृतज्ञ बनाता है। पर जिन लोगों ने ‘कन्हैया’ की पीठ थपथपाकर उसे भारत के धर्म, इतिहास और संस्कृति के प्रति ‘विद्रोही’ बनाया है उनके लिए भारत का धर्म, भारत का इतिहास और भारत की संस्कृति ये तीनों ही अमान्य हैं। इसलिए उनके राष्ट्रवाद में दोगलापन है। इस देश की जनता को यह तथ्य समझना होगा कि रामनाथ पाण्डेय जैसे क्रांतिकारियों को क्यों भुला दिया गया और क्यों उन्हें उठाकर रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया?

आज प्रधानमंत्री मोदी के लिए जन्म देने वाली मां से बढक़र ‘बड़ी मां’ महत्वपूर्ण है, इसलिए उन्होंने जननी मां के प्रति परम आस्थावान रहकर भी ‘बड़ी मां’ के प्रति अपनी पूर्ण निष्ठा समर्पित कर दी है। स्पष्ट है कि उनके लिए रामनाथ पाण्डेय की राष्ट्रवादी परम्परा ही अनुकरणीय है। उनके इस कार्य से हमारा धर्म, हमारा इतिहास और हमारी संस्कृति नवस्फूर्ति और नई ऊर्जा से भरते जा रहे हैं। हमने पहली बार बहराइच के राजा सुहेलदेव को लेकर एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन होते देखा, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उपस्थित हुए। यह वही सुहेलदेव थे जिन्होंने जून 1034 में महमूद गजनवी के भांजे सालारमसूद की ग्यारह लाख की सेना को नष्ट करने हेतु 17 राजाओं का एक राष्ट्रवादी संघ बनाकर उससे युद्घ किया था और इस युद्घ में शत्रु की सेना का एक भी सैनिक अपने देश जाने के लिए शेष नही बचा था। ऐसे इतिहासपुरूषों का महिमामंडन मोदी काल में ही संभव हुआ है। दोगले राष्ट्रवादियों ने इस घटना को इतिहास से विलुप्त कर दिया। उन्होंने ऐसा करते समय एक काल्पनिक संस्कृति का घोष किया। जिसे नाम दिया गया-‘गंगा जमुनी संस्कृति’ इसे सांझा संस्कृति कहा गया। यह संस्कृति भारत को मारकर अर्थात भारत को उसके अतीत से काटकर या सुहेलदेव और पाण्डेय जैसे क्रांतिकारियों को इतिहास से मिटाकर मुगलकाल से आरंभ की गयी। इसमें दिखाया गया कि हिंदू मुस्लिमों को साथ लाने के लिए किस प्रकार मुस्लिम बादशाहों ने घोर परिश्रम किया? यह तो हिंदू थे जो उनके साथ नही लगे, और उनके साथ ना लगकर उन्होंने ‘घोर पाप’ किया। इस पाप को करने के लिए हिन्दुओं की जहालत को या अज्ञानता को या प्रगतिशील ना होने की उनकी रूढि़वादी भावना को उत्तरदायी ठहराया गया। इतिहास को कुछ इस प्रकार लिखा गया कि हिंदू प्रारंभ से ही रूढि़वादी रहे हैं और उन्हें प्रगतिशीलता से घृणा रही है, जिस कारण उन्होंने इस्लाम जैसे प्रगतिशील और ईसाईयत जैसी खुली विचारधारा को अपनाने में हिचक दिखाकर अच्छा नही किया। ऐसी मान्यता रखने वाले लोग आज भी ‘हिंदू को, हिंदुत्व को और हिंदुस्थान’ को प्रगतिशीलता और खुलेपन नाम के दो भेडिय़ों के सामना उनका भोजन बनाकर डाल देना चाहते हैं। कन्हैया उसी विचारधारा के पालने में तैयार किया जा रहा है। इसके पीछे एक लंबा षडय़ंत्र काम कर रहा है। सीताराम येचुरी जैसे लोगों को छात्रों के बीच से ‘कन्हैया’ मिलना अपनी एक बड़ी उपलब्धि जान पड़ रही है।

इधर मोदी हैं जो भारत के धर्म, भारतीय संस्कृति और भारतीय इतिहास की परम्मपराओं और उसके वैज्ञानिक स्वरूप से पूर्णत: परिचित हैं और वह उन्हें हर स्थिति में बनाये रखने के लिए कृतसंकल्प हैं। दोगले लोगों के लिए ‘बड़ी मां’ कुछ नही है, पर मोदी के लिए ‘बड़ी मां’ ही सब कुछ है। उनकी इस बात का कुछ गंभीर अर्थ है कि ‘राजनीति नही राष्ट्रनीति अपनाओ।’ राजनीति में केवल घृणा है-दोगलापन है, असहयोग है, हिंसा है अपने विरोधी को विरोधी न मानकर उसे शत्रु मानने की अमानवीय भावना है। जबकि राष्ट्रनीति में राष्ट्र सर्वप्रथम है, प्रेम है, सहयोग है, अहिंसा है, अपने विरोधी के विचारों का सम्मान करने की उच्च भावना है, अपने देश के लिए विचारों की विषमता को किसी एक निष्कर्ष पर लाकर ‘एक’ बना देने की आदर्श भावना है। मोदी इसी राष्ट्रनीति के उपासक हैं, और यही राष्ट्रनीति वह देश में लागू करना चाहते हैं। देश के लिए ‘राष्ट्रनीति’ ही अपेक्षित है। लेकिन कुछ लोगों को इस राष्ट्रनीति में भी मोदी की किसी चाल के दर्शन होते हैं। वास्तव में इसमें कोई चाल नही होकर ‘सुहेलदेव और रामनाथ पाण्डे’ जैसे लोगों का महिमामंडन होकर इन दोगले राष्ट्रवादियों द्वारा किये गये ‘पापों’ का भण्डाफोड़ हो जाने का भय इन्हें सताता है। बस इसी लिए ये ‘मोदी विरोध’ और हर स्थिति में मोदी विरोध को ही आज की राजनीति की मुख्य धुरी बनाये रखना चाहते हैं। जिसके लिए देश के लोगों को सब कुछ समझकर कार्य करने की आवश्यकता है।

हमें यह समझने की आवश्यकता है किजे.एन.यू. प्रकरण का एक आरोपी उमर खालिद नारे लगाते समय भी अफजल प्रेम के प्रति स्वयं को क्यों समर्पित दिखाता है? स्पष्टत: उसकी सोच राष्ट्रघाती है क्योंकि उसका मत उसे यही सिखाता है। मोदी के राष्ट्रवाद में सावरकरवाद है। सावरकरवाद धर्मांतरण को राष्ट्रान्तरण का मुख्याधार मानता है। इसलिए मोदी देश में धर्मांतरण की प्रक्रिया के हर स्तर पर और हर किसी की ओर से किये जाने के विरूद्घ हैं, यही उनकी देशभक्ति है। वह मानते हैं कि यदि एक व्यक्ति अपना धर्मांतरण करता है और हिंदुत्व को त्यागता है तो वह राष्ट्रविरोधी हो जाता है, उसे अलग राष्ट्र चाहिए। कन्हैया के संरक्षक धर्मांतरण को व्यक्ति का निजी मामला मानते हैं, और उससे राष्ट्र का कोई सरोकार नही देखते बाद में जब कोई धर्मांतरित व्यक्ति देश तोडऩे की बात करता है या ऐसे नारे लगाता है तो उसे ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर संविधान सम्मत बनाने और दिखाने का अनुचित और असंवैधानिक संरक्षण देते हैं। ऐसी स्थिति में आकर मोदी के पास स्पष्ट भाषा न होकर संसद में केवल कूटनीतिक भाषा रह जाती है, यदि वह स्पष्ट बोलेंगे तो उनका विकास का सपना विनाश की आंधी में बह जाएगा और उनके विरोधी उनसे शत्रुता दिखाते हुए देश में आग लगा देंगे।

मोदी के पास अच्छे राष्ट्रवादी चिंतकों, वक्ताओं और विशेषज्ञों की कमी है। ऐसा आभास संसद में चल रही बहस को देखकर होता है। योगी आदित्यनाथ, साक्षी जी महाराज और साध्वी प्रज्ञा की भाषा बिगड़ जाती है, जिससे नही लगता कि वे तपे-तपाये साधक की भांति बोल रहे हैं, उससे मोदी को कम और उनके विरोधियों को अधिक लाभ पहुंचने की संभावना रहती है। स्मृति ईरानी और अविनाश ठाकुर ने इस बार कुछ उम्मीद जगाई है, अच्छा हो कि मोदी अच्छी चिंतनशील और मर्यादित भाषा में ठोस विचार प्रस्तुत करने वाले वक्ताओं की टीम खड़ी करें जो संसद में उनके स्वयं के बोलने से पहले विपक्ष से निपटने में समर्थ हो।

1 COMMENT

  1. इस आलेख में नरेंद्र मोदी और उनके पक्षधरों के सिवा सबको राष्ट्र द्रोही घोषित किया गया है,पर अब तो यह आम बात हो गयी है,इसलिए इसके बारे में कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है.अब आता है राम नाथ पाण्डेय से तुलना.काकोरी कांड से सम्बंधित सबसे कम उम्र वाले क्रांतिकारी स्वर्गीय मन्मथ गुप्त द्वारा लिखित भारत में सशत्र क्रांति चेष्टा का इतिहास मैंने पढ़ा है.उसमे रामनाथ पाण्डेय का वर्णन है या नहीं मुझे याद नहीं है उभड़ते ,पर कुछ प्रश्न मन में अवश्य उभड़ते हैं.पहला प्रश्न तो यह है कि क्या स्वर्गीय रामनाथ पाण्डेय उस समय वैवाहित थे? क्या उन्हें ऐसा अवसर मिला था,जिसमे वे राज्य भोग करते हुए अपनी माँ की सेवा भी कर सकते थे?क्या मातृ भक्त पाण्डेय जी अपनी माँ के लिए अवसर बेअवसर आंसूं बहाते,पर उनको अपने राज्य भोग का हिस्सेदार नहीं बनाते?पत्नी बेचारी के बारे में तो सब भूल ही गए हैं.इस आलेख में कुछ ऐसे लोगों का भी नाम है,जिनके द्वारा सम्मानित किये जाने पर हमारे शहीद जार जार रो रहे होंगे. ऐसे मैं नहीं समझता कि मुहमद गजनवी के ज़माने में कोई भी ग्यारह लाख सेना के साथ आ सकता था.ग्यारह लाख सेना के मारे जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता
    अंत में मैं यह कहना चाहता हूँ कि मैंने पढ़ा है,जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.इसमें जननी को प्रथम स्थान दिया गया है.खैर हो सकता है,यह बात आज के नए राष्ट्र वाद में अनुपयोगी हो गयी हो.

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