क्या है अनुच्छेद 35A..

अनुच्छेद 35A एक ऐसा अनुच्छेद है जो अनुच्छेद 370 की ही तरह जम्मू-कश्मीर को एक विशेष अधिकार दे देता है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को स्थायी नागरिक की परिभाषा तय करने का विशेष अधिकार देता है। यही अनुच्छेद अस्थायी नागरिक की परिभाषा भी बताता है। संविधान में 14 मई 1954 को जोड़े गए अनुच्छेद 35A के तहत कश्मीर के लाखों लोगों को विशेषाधिकार भी मिले तो हजारों लोग ऐसे भी हैं जिन्हें कोई अधिकार ही नहीं मिला।

भूमिका : भारत देश के विभिन्न हिस्सों में 1947 के विभाजन के वक्त पाकिस्तान से आए लोगों को वह सभी अधिकार मिले जो भारत के बाकी नागरिकों के पास हैं। दिल्ली का तो एक बहुत बड़ा हिस्सा उन्हीं शरणार्थियों की आबादी से ही बना है और वह सभी लोग यहां आराम से रह भी रहे हैं। लेकिन जम्मू कश्मीर में हालात इससे बिल्कुल जुदा हैं।

नागरिकों के साथ सौतेला व्यवहार : अनुच्छेद 35A की सबसे ज्यादा मार,1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आए 20 लाख से ज्यादा प्रवासी ‘हिन्दू’ झेल रहे हैं। 1947 के विभाजन के वक्त पाकिस्तान से आकर हजारों परिवार जम्मू में बस गए थे और यही वह परिवार हैं जो अनुच्छेद 35A से सबसे ज्यादा पीड़ा झेल रहे हैं। इसके अलावा 50 साल से भी ज्यादा वक्त से यहां रह रहे गोरखा समुदाय के लोग और साल 1957 में पंजाब से लाकर सफाई कर्मचारी बनाने के लिए बसाए गए 200 के करीब वाल्मीकि परिवार भी इस दंश को झेल रहे हैं। इन परिवारों को न तो अब तक वोट देने का अधिकार मिला है और न ही सरकारी व्यावसायिक संस्थानों में दाखिले का अधिकार इनके पास है। सरकारी नौकरियों में भी इन लोगों को नहीं रखा जाता। पंजाब से आकर बसे वाल्मीकि परिवारों को सिर्फ सफाई कर्मचारी की ही नौकरी मिलने का प्रावधान राज्य सरकार ने किया हुआ है। वोट डालने में भी इन परिवारों के साथ भेदभाव हो रहा है। इनके पास वोटर कार्ड तो है लेकिन इस कार्ड से यह सिर्फ लोकसभा के चुनावों में ही वोट डाल सकते हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा या फिर पंचायत चुनावों में वोट डालने का अधिकार इन लोगों के पास है ही नहीं। अर्थात यह समुदाय भारत का नागरिक तो है लेकिन जम्मू-कश्मीर की नागरिकता इनके पास नहीं है। यानि यह लोग भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तो बन सकते हैं लेकिन अपने क्षेत्र में ग्राम प्रधान, पार्षद या विधायक नहीं बन सकते।

महिलाओं को अधिकार नहीं : इस अनुच्छेद से महिलाओं को अपनी पसंद के किसी शख्स से शादी करने का अधिकार तो है, लेकिन उस शख्स की जायदाद में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं है। यहां तक कि इस महिला के बच्चों को स्थायी निवास प्रमाणपत्र भी नहीं मिल सकता।

संविधान में जिक्र नहीं, संविधान के परिशिष्ट में शामिल : अनुच्छेद 35A की बात करेंगे तो आप पाएंगे कि संविधान में इसका कहीं जिक्र ही नहीं है। अनुच्छेद 35A को संविधान के परिशिष्ट में शामिल किया गया। इस अनुच्छेद के तहत यदि कहा जाए तो संविधान की मूल धारा को ही बदल दिया गया। संविधान की मूल धारा की बात करें तो कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है, लेकिन इस अनुच्छेद ने यह अधिकार विधानसभा को सौंप दिया।

अनुच्छेद 35A पंडित नेहरू की गलती, लोगों के साथ धोखा: अनुच्छेद 35A दरअस्ल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा हुआ है, लेकिन इस पर कोई बात करने को तैयार नहीं है। इस अनुच्छेद की पीड़ा झेल रहे लोगों का कहना है कि बाद की सरकारों को भी शायद इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने भी अनुच्छेद 35A पर कभी कोई काम या बात नहीं की। इनका मानना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल कराया था और इसे परिशिष्ट में इसलिए शामिल किया गया जिससे लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी न हो।

अनुच्छेद 35A का दंश झेल रहे लोग कहते हैं कि भारत में आतंकियों के मारे जाने या उन्हें फांसी दिए जाने पर भी मानवाधिकार संगठन बातें करने लगते हैं, लेकिन जम्मू कश्मीर में रह रहे लोगों के लिए कोई संगठन भी कुछ करने को तैयार नहीं है।

क्या कहना है एक्सपर्ट्स का: भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है. 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था. भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है. यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है. इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है.’ इस अनुच्छेद के लिए संसद में कोई बहस नही हुई। कोई मत विभाजन नही हुआ। यह संपूर्ण प्रक्रिया ही अलोकतांत्रिक है।

क्यों है चर्चा में : 2014 में एनजीओ (We The Citizens) ने आर्टिकल 35A को कानूनी तौर पर खत्म करने की मांग की है जिस पर अभी सुनवाई शुरू होगी। सुप्रीम कोर्ट में दायर पिटीशन पर फिलहाल सुनवाई पेंडिंग है। पिटीशन में कहा गया है कि आर्टिकल को संसद में नहीं रखा गया, बल्कि इसे सीधे राष्ट्रपति के ऑर्डर से लागू कर दिया गया। इसे 1954 में लागू किया गया, जब देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने संविधान के आर्टिकल 370 में जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष अधिकार के तहत इसका ऑर्डर जारी किया था।

थिंक टैंक “जम्मू एंड कश्मीर स्टडी सेंटर” संविधान के आर्टिकल 35A पर लगातार आवाज बुलंद करती रही है.

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