क्या यह असम की प्रतिक्रिया है?

 मनीष मंजुल

देश के कोने कोने में असम व दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों के भारतीयों पर असम दंगों की प्रतिक्रिया में आक्रमण का डर बना है| ऐसा क्यों हो रहा है? असम की पहली उपद्रवी प्रतिक्रिया मुंबई में आजाद मैदान पर हुई| उस पूरे घटनाक्रम में पुलिस उपद्रवियों से मार खाती हुई दिखाई दी, जबकि पुलिस नागरिकों की सुरक्षा, उपद्रवियों पर नियन्त्रण और देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए होती है|

 

मुंबई पुलिस जो देश की श्रेष्ठतम पुलिस मानी जाती है, वो उपद्रवियों से पिटती है तो देश के और प्रान्तों की पुलिस पर उन प्रान्तों के नागरिकोँ का विश्वास कैसे बना रहेगा? देश की श्रेष्ठ पुलिस की दुर्गति पूरे देश ने देखी| इस घटना के बाद पूर्वोत्तर के लोग भारतीय प्रशासन पर कैसे भरोसा करें? कमजोर पुलिस सत्तापक्ष की दूरदर्शिता की कमी स्पष्ट करता है| इस दूरदर्शिता की कमी से नार्थ ईस्ट के लोगो में जो डर बैठा है, वो दूर कैसे होगा? इसके अन्य प्रतिफल क्या होंगे? इसको सत्ता पक्ष, मीडिया और विपक्ष किसी ने नहीं सोचा|

 

 

 

मुंबई पुलिस की नाकामी ने लोगों के अंदर सुरक्षा के भरोसे को खत्म कर दिया| इसी कारण पूर्वोत्तर के लोगो में डर बैठ गया है| पढ़े लिखे नौकरीपेशा लोग भी अफवाहों के जंजाल में फंस रहे हैं| वे अपने घरों से भाग रहे हैं| नौकरी, पढ़ाई और व्यवसाय से ज्यादा जरूरी जीवन है और उस पर आए अज्ञात संकट का डर उन्हें ये करने के लिए बाध्य कर रहा है| यह डर उनके दिलोदिमाग पर तनाव की स्थिति में उनको अपने घर जाने के लिए मजबूर कर रहा है| इस तनाव का दुष्परिणाम क्या हो सकता है? इसकी कल्पना भी सरकार को नहीं है| क्या होगा जब बड़ी संख्या में ये डरे हुए लोग पूर्वोत्तर में अपने घरों तक पहुंचेंगे? पलायन के कारण उनका जो नुकसान हो रहा है उसकी टीस कहाँ, कैसे और किस पर निकलेगी?

 

असम में जो दंगे हुए उन्हें सही समय पर और सही प्रकार से नियन्त्रित नहीं करना भी केंद्र सरकार की दूरदर्शिता की कमी को स्पष्ट करता है| दंगों के पहले चरण के बाद ही वहां केंद्र सरकार ने राज्य सरकार पर असरदार कार्रवाई के लिए दबाव क्यों नहीं बनाया| असम और मुंबई दोनों में जो समानता है, वह विदेशी घुसपैठ है| असम में विदेशी घुसपैठिये सत्ता हासिल करने का साधन बन चुके है| इसलिए असम में विदेशी घुसपैठियों को स्थानीय लोगों ने अस्वीकार किया है| मुंबई में इन्ही विदेशी घुसपैठियों के समर्थन में भारतीय मुसलामानों ने पाकिस्तान का झंडा लेकर मजहब और मजहबी रिश्तों को देश की मिट्टी से बड़ा माना | यह इतनी भयावह मानसिकता है जिसके दुष्परिणाम की कल्पना भी नहीं की जा सकती |

यदि ये मानसिकता भारत में जड़ जमाएगी तो देश में सद्भाव और समरसता की जड़ें हिल जाएँगी और फिर आजादी के नायकों के धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना खाक में मिल जाएगा| यह मानसिकता भारत को किस दिशा में ले जायेगी? क्या हम इसकी कल्पना कर सकते है?

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