इस दहशत के पीछे आखिर क्या है इनका मकसद-अवनीश सिंह

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समय 6 बजकर 35 मिनट

स्थान – काशी का शीतला घाट

दिन – 7 दिसम्बर 2010

मंगलवार शाम शीतला घाट पर रोज कि तरह आज भी गंगा आरती देखने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों का तांता लगा है; तभी अचानक अचानक तेज धमाकों कि आवाज होती है और उसके बाद चारों तरफ चीख पुकार। भगदड़ में साल भर की बच्ची और एक महिला की मौत हो गयी और दो विदेशी पर्यटकों सहित 40 से ज्यादा लोग घायल। इस तरह से फिर एक और आतंकी घटना को अंजाम दे दिया जाता है।

धमाकों के बाद लोग सदमे में नजर आए, पर दुर्भाग्य की बात यह रही क‍ि हर बार की तरह इस बार भी धमाकों का धुआँ छँटते ही केन्द्र सरकार और राज्य सरकार ने एक-दूसरे पर दोषारोपण शुरू कर दिया। सही यह होता की बयानबाजी के बजाय इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई रूपरेखा बनाई जाती। इस पर गंभीरता से चिंतन की जरूरत है, क्योंकि इन घटनाओं के होने के पीछे कई कारण हैं, जो इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं क‍ि आतंकियों ने इस देश में किस हद तक जड़ें जमा ली हैं।

वाराणसी धमाके की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली। धमाके के करीब आधे घंटे बाद ईमेल लिखकर इंडियन मुजाहिदीन ने ना सिर्फ धमाके की जिम्मेदारी ली बल्कि और धमाकों को अंजाम देने की धमकी भी दी। इस दहशत के पीछे आखिर क्या है इनका मकसद.. पहले आतंकी हमला और फिर अपनी घिनौनी करतूत की जिम्मेदारी ईमेल के जरिए लेना, ये है इंडियन मुजाहिदीन का तरीका। इंडियन मुजाहिदीन यानि वो गुट जिसे केंद्र सरकार इसी साल जून में आतंकी संगठन घोषित कर चुकी है। अलग-अलग धमाकों में 500 से ज्यादा लोगों की जान लेने वाले इस आतंकी संगठन के तार पाकिस्तान से भी जुड़े हैं।

आतंकवादी संगठनों का बैक्टेरिया जिस दर से दुनिया में बढ़ रहा हैं उससे लगता है कि यह आने वाले सालों में लाइलाज बीमारी बन जाएगा। सिर्फ भारत की बात की जाए तो यहां विभिन्न राज्यों में 175 से अधिक आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं। प्रमुख राजनीतिक व व्यसायिक शहर इनके निशाने पर हैं। यह संगठन दिनोंदिन अपनी संख्या में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं। पाकिस्तान, तालिबान, ईराक तथा अन्य पड़ोसी देशों में बच्चों को आतंकवाद की पढ़ाई में अव्वल बनाया जा रहा हैं। इनके हाथों में किताबों की जगह हथियार होते हैं। राजनैतिक समर्थन से पोषित हो रहे यह संगठन इतने हाइटेक हैं कि लैपटॉप से लेकर रॉबोट रचने तक की कला इन्हें आती हैं।

इंडियन मुजाहिदीन को प्रतिबंधित सिमी और पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर का मुखौटा माना जाता है। दिल्ली, मुंबई, यूपी और बैंगलोर के कई ब्लास्ट में इंडियन मुजाहिदीन का नाम शामिल रहा है। सरकार ने इंडियन मुजाहिदीन को गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम के तहत आतंकवादी संगठनों की लिस्ट में डाला है। जेहाद के नाम पर बेगुनाहों का खून बहाने वाले इस आतंकी संगठन का नाम सबसे पहले 23 फरवरी 2005 को उस वक्त चर्चा में आया जब उसने वाराणसी में ब्लास्ट किया था। इस घटना में 8 लोग घायल हुए थे। पाबंदी लगने के बाद एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन ने वाराणसी को ही निशाना बनाया है।

खबर है कि देश का प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन ‘सिमी’ (स्टूडेंट्‌स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) ‘पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ के नये बैनर तले अपने को संगठित कर रहा है। 2006 में भारत सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया था, उसके बाद खुलेआम अपनी गतिविधियां चलाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। यद्यपि प्रतिबंध के बाद भी सरकार ने उसके सदस्यों को गिरफ्त में लेने का कोई प्रयास नहीं किया, जिसके कारण वह गुप्त रहकर अपनी कार्रवाइयों को अंजाम देता रहा, फिर भी गिरफ्तारी के डर से उसके बहुत से सदस्य इधरउधर हो गये। कई इंडियन मुजाहिदीन में चले गये, तो कई बंगलादेश व ख़ाडी के देशों से होकर पाकिस्तान पहुंच गये। यहां बचे लोगों ने ‘वहादते इस्लामी’ नाम से एक संगठन शुरू किया, लेकिन इसके तहत कोई खास काम नहीं हो सका।

वास्तव में किसी आपराधिक संगठन पर प्रतिबंध लगाना तब तक निरर्थक होता है, जब तक कि उसके सारे सदस्यों को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई न सुनिश्चित की जाए। केवल कानूनी प्रतिबंध लगा देने से तो पूरा संगठन निष्क्रिय नहीं हो जाता। पाकिस्तान में कितनी ही बार लश्करएतैयबा जैसे जिहादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की कार्रवाई की गयी, लेकिन ये संगठन केवल अपना नाम व बैनर बदलते गये। भारत में भी यही हो रहा है। प्रतिबंध लगाकर सरकार भी निश्चित हो जाती है और प्रतिबंधित संगठन के सदस्य बिखरकर जगहजगह अपने सुप्त संगठन बनाने में लग जाते हैं। पिछले कुछ सालों में इंडियन मुजाहिदीन सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाला आतंकी संगठन बनकर उभरा है। स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी SIMI से अलग हुए आतंकियों ने ये संगठन खड़ा किया है। लेकिन नए नाम के साथ उसके काम करने के तौर तरीकों में भी बदलाव आया है। पिछले 5 साल में इंडियन मुजाहिदीन का नाम करीब 10 बड़े आतंकी हमलों से जुड़ा है।

इसके साथ ही केन्द्र और राज्य सरकारों को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश की सुरक्षा के बारे में सोचना होगा। शीर्ष नेतृत्व को कुछ कठोर कदम उठाना ही होंगे, भले ही इसके लिए उन्हें अपने राजनैतिक हित भी खतरे में क्यों न डालना पड़ें, क्योंकि नेता हो या आम आदमी सबका वजूद इस देश से है, इसकी सुरक्षा सर्वोपरि है। दिल्ली, मुंबई या कोलकाता के वातानुकूलित क्लब और होटलों में गोष्ठी करने वाले कुछ भ्रष्ट बुद्धिवादियों के मन भले ही अपने इन साथियों के लिए धड़कते हों पर आम नागरिक के मन में इनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है। उसकी दृष्टि में ये सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। उसका बस चले तो अपराधियों के साथ इन तथाकथित बुद्धिवादियों का भी एनकाउंटर कर दे।

गड़बड़ी कहाँ है और इसका “मूल” कहाँ है, यह सभी जानते हैं, लेकिन स्वीकार करने से कतराते, मुँह छिपाते हैं। लेकिन दाद देनी होगी भारत देश की जहां देशभक्तों का अपमान और सेक्यूलरों का सम्मान होता है। कश्मीर घाटी में 32 दांतों के बीच जीभ की तरह काम कर रहे सैनिक एक ओर पत्थरबाजों और आतंकियों के निशाने पर हैं तो दूसरी ओर शासन-प्रशासन के। वे गोली चलाएं तो प्रदेश और देश का शासन उन्हें गरियाता है और न चलाएं तो पत्थर और गोलीबाज उनकी जान ले लें।

अब अहम सवाल यह है कि आखिर आतंकवादियों के मंसूबों पर पानी कैसे फेरा जाए। इसके लिए तो सबसे पहले देश के खुफिया तंत्र को मजबूत करने की दरकार है। इसके अलावा सुरक्षा-व्यवस्था को तो मजबूत करना ही होगा। अपने यहां हर आतंकी वारदात के बाद ठोस कदम उठाने का राग अलापा जाता है और कुछ दिन बाद सब लोग इस मसले पर खामोश हो जाते हैं और मौका पाते ही आतंकवादी फिर हमला करने में कामयाब हो जाते हैं।

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