वर्ष 2011 में क्या मिलेगे यक्ष प्रश्नों के उत्तर?

मृत्युंजय दीक्षित

समय चलता रहता है वह कभी नहीं रूकता और नहीं किसी यातायात व्यवस्था का इंतजार करता है न ही किसी के भाग्य धर्म, अर्थ और काम की चिंता करता है ।बिना किसी तनाव व अस्वस्थता के वह बराबर चलता रहता है। लेकिन फिर भी समय के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। यह समय ही तो है कि हम सभी लोग सोचतें ही रहे कि अभी तो पूरा दिन सप्ताह व महीना पड़ा है। लेकिन समय व घड़ी की सुई यह नहीं सोचती की वे चलती रहती हैं अनवरत। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की अच्छी व बुरी गतिविधियों आधे-अधूरे स्वप्नों की याद में एक वर्ष और बीत गया। अर्थात् अब वर्ष 2010 हम सबसे विदा ले चुका है। हर वर्ष के समापन अवसर पर समाज का प्रत्येक वर्ग व समाज का हर नागरिक वर्ष भर की गतिविधियों व क्रियाकलापों की समीक्षा करता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्ण-अपूर्ण सपनों की भी समीक्षा करता है तथा आगामी नूतन वर्ष में उनको पूर्ण करने का फिर संकल्प लेता है। इसी प्रकार वर्ष 2010 का एक बार फिर पूर्वावलोकन किया जा रहा है। वर्ष 2010 भारतीय राजनीति, न्यायिक व कानून व्यवस्था, विदेश नीति व अन्य विभिन्न क्षेत्रों यथा – फिल्म, टी.वी., साहित्य, विज्ञान और खेल जगत की गतिविधियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। वर्ष के अंत में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की परियोजना जी एस एल वी को गहरा आघात लगा। इस वर्ष आतंकवादी घटनाएं तो बहुत कम रहीं लेकिन फिर भी आतंक का साया वर्ष भर छाया रहा । भारत की सुरक्षा व खुफिया एजेंसिंया वर्ष भर हाई एलर्ट पर रहीं। आखिरकार वर्ष के अंत में इस्लामी चरमपंथियों ने वाराणसी के गंगा घाट को गंगा आरती के दौरान विस्फोट करके अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही दी। नक्सलवाद की समस्या वर्ष भर कायम रही और कई अवसरों पर बड़े खूनी खेल खेलकर अपने मिजाज से देशवासियों व केंद्र सरकार को परिचित कराते रहे। नक्सलवाद से देश का आर्थिक तंत्र बहुत अधिक प्रभावित हो रहा है।

वर्ष 2010 राजनैतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण वर्ष रहा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए – 2 का कार्यकाल विवादों के घेरे में आ गया है। प्रधानमंत्री बेहद कमजोर व नाकाम साबित हो रहे हैं विशेषकर भ्रष्टाचार और महंगाई के मामलों में । जबकि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रधानमंत्री ने सराहनीय उपस्थिति दर्ज करायी है। जम्मू और कश्मीर की समस्या का राजनैतिक समाधान खोजने की दिशा में सकारात्मक कदम तो उठायें हैं लेकिन घाटी के अलगावादी नेताओं के तेवरों के आगे केंद्र सरकार का ढुलमुल रवैया परेशानी का विषय है। वर्ष भर गिलानी व अरून्धती राय जैसे राष्ट्रविरोधी तत्व जहर उगलते रहे लेकिन केंद्र सरकार ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही का साहस नहीं दिखा सकी। इस वर्ष दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए अकूत भ्रष्टाचार व खेलों की तैयारी में हुई देरी ने भारत की पूरे विश्व के समक्ष किरकिरी कर दी। इसी बीच 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन व महाराष्ट्र में आदर्श सोसाइटी फ्लैट आवंटन घोटाले ने तो कांग्रेस पार्टी की छवि ही तार – तार कर दी। स्वतंत्रता के बाद देश के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकरणों और विपक्ष द्वारा जे.पी.सी. की मांग के कारण संसद का शीतकालीन सत्र विपक्ष के हंगामें व सरकार की हठधर्मिता की भेंट चढ़ गया। विपक्ष की मांगों के चलते क्या संसद का बजट अधिवेशन शांतिपूर्वक चल पाएगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। संगठनात्मक दृष्टि से कांग्रेस पार्टी ने इस वर्ष अपने स्थापना के 125 वर्ष पूर्ण होने पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया यही नहीं कांग्रेस अधिवेशन में तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेसाध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी एक दूसरे की प्रशंसा ही करते रह गये और श्रीमती गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद का कार्यकाल पांच वर्ष कराकर अपना रास्ता साफ कर लिया। म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह जहां संघ पर आक्रामक ढंग से हमलावर हुए वहीं उन्होंने मुस्लिमों को खुश करने के लिए आतंकवादियों की रिहाई के लिए अनाप-शनाप बयान भी देने प्रारम्भ कर दिये। वे मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर राष्ट्रीय सुरक्षा से ही खेलने लग गये और हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने में जुट गये। भगवा आतंकवाद के नाम हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहली बार पूरे देश भर में धरना प्रदर्शन किया। संक्षेप में यह वर्ष घोटालेबाजों, रिश्वतखोराें, मिलावटखोरों के नाम रहा । कोई क्षेत्र ऐसा नही रहा जहां से भ्रष्टाचार व घोटालों से संबंधित कोई समाचार न प्राप्त हुआ हो। अब देखना यह है कि वर्ष 2010 में बड़े – बड़े घोटालेबाज जेल की सलाखों के पीछें होंगे कि नहीं? इस वर्ष भ्रष्टाचार इस कदर सामने आया कि देश की सेना की भी साख को गहरा आघात लग गया। यह वर्ष भारतीय राजनीति में पतन की पराकाष्ठा का वर्ष कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। महंगाई ने तो आम आदमी का जीना ही दूभर कर दिया है और इस बात की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है कि महंगाई वर्ष 2011 में भी पीछा नहीं छोडेंग़ी। युवराज राहुल गांधी आखिरकार आम आदमी को कब राहत दे पाएंगे पता नहीं? वर्ष 2010 में न्यायिक सक्रियता की एक बार फिर शुरूआत हुई। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों यथा 2 जी स्पेक्ट्रम व सतर्कता आयुक्त पी. जी. थामस की नियुक्ति को लेकर जिस प्रकार से कठोर टिप्पणियां की, उससे केंद्र सरकार के माथे पर परेशानी के बल पड़ गये। यह न्यायालय का कड़ा रवैया ही था कि सी.बी.आई. व अन्य जांच एजेंसियां हरकत मे आ गयीं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने अयोध्या विवाद पर 60 वर्ष से लम्बित ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जो अब सर्वोच्च न्यायालय की दहलीज पर पहुंच चुका है। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े खाद्यान्न घोटाले की जांच सी.बी.आई. को सौंपकर भी ऐतिहासिक कार्यवाही कर दी है। अतः न्यायिक सक्रियता की दृष्टि से वर्ष 2011 बहुत ही महत्वपूर्ण होने जा रहा है क्योकि न्यायपालिका के समक्ष ऐतिहासिक महत्व के कई प्रकरण सामने आने वाले हैं और यह वर्ष न्याय के देवता शनि भगवान का वर्ष भी है क्योंकि वर्ष का प्रारम्भ शनिवार से और अंत भी शनिवार से हो रहा है।

क्षेत्रीय राजनीति में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती राष्ट्रीय राजनीति में छाये रहे और केंद्र सरकार के समक्ष चुनौतियां पेश करते रहे। इस वर्ष बिहार विधानसभा के चुनावों में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एन.डी. ए. ने ऐतिहासिक सफलता दर्ज कर एक नयी बहस को जन्म दिया। बिहार की जनता ने पहली बार धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर विकास को प्राथमिकता दी। लालू यादव व रामविलास पासवान के स्वप्न चकनाचूर हो गये। मुस्लिम वोट पाने की गरज से रामविलास पासवान ने मुस्लिम टोपी धारण कर हिंदू धर्म को अपमानित करके वोट मांगे लेकिन उनके स्वयं के भाई बन्धुवों को चुनावों में भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। बिहार में कांगेसी युवराज राहुल गांधी तो धड़ाम से गिर पड़े यहां तक की उनके राजनैतिक भविष्य पर ही दांव लग गया है। बिहार में राहुल की रणनीति क्या फेल हुई इसकी चर्चा उत्तर प्रदेश में भी होने लगी। वर्ष 2011 में कई बड़े और राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं जहां से राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं इस बात का रास्ता साफ हो सकता है। उधर भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगियों ने भी भविष्य की राजनीति पर अपनी रणनीति बनानी प्रारम्भ कर दी है एन.डी.ए. ने अपने नये सहयोगी खोजने प्रारम्भ कर दिये हैं। एन.डी.ए. की रणनीति से यह साफ हो गया है कि वह भ्रष्टाचार, महंगाई व नाकाम सरकारी तंत्र को एक बड़ा मुददा बनाएगा साथ ही भा.ज.पा. अपने स्तर पर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति, आतंकवादियों के खिलाफ केंद्र सरकार का ढीलाढाला रवैया आदि भी मुख्य मुददे उभरेंगे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्वदेश में तो नाकाम व कमजोर प्रधानमंत्री सिध्द हुए लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि चमकदार बनीं रही। अनेक देशों की यात्राएं की और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उन्होंने भारतीय पक्ष को पूरी मजबूती के साथ प्रस्तुत किया तथा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई व आर्थिक, पर्यावरणीय चिंताओं पर वैश्विक जगत के साथ तो कदम कदम मिलाया ही साथ ही भारतीय पक्ष को भी मजबूती के साथ रखा। उनके प्रयासों से पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तो अकेला पड़ गया लेकिन अमेरिकी साथ व चीनी मैत्री के कारण वह शेर बना रहा । आतंक के खिलाफ लड़ाई में उसने भारत का साथ नहीं दिया अपितु वहां पर भारत विरोधी गतिविधियां बराबर जारी रहीं। आर्थिक मंदी के बाद बेरोजगारी व भीषण आर्थिक संकटों से कराहते वैश्विक समुदाय को भारत एक बड़े बाजार के रूप में ऐसा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स मिला जहां सब कोई माल बेचने व देने के लिए लालायित नजर आने लगा। वर्ष के प्रारम्भ में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून भारत आये और एक बड़ा समझौता करके गये। दीपावली पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आये उन्होंने भी व्यापार और नौकरी पर अपना ध्यान केंद्रित किया। सबसे निराशाजनक दौरा चीनी प्रधानमंत्री का रहा। चीनी प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान चीन के साथ लम्बित विवादों और चीनी गतिविधियों पर किसी प्रकार की चर्चा नहीं हुई। हां, तिब्बतियों ने अवश्य अपनी मांगों को लेकर चीन के खिलाफ जोरदार आवाज उठायी। सबसे अच्छी मैत्री फ्रांस और रूस के साथ निभी, क्योंकि रूस अभी भी हमारा व्यावहारिक दृष्टिकोण से एक अच्छा सहयोगी है। भारतीय विदेश नीति में भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट मिले यह एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है तथा उसे अंतर्राष्ट्रीय समर्थन भी मिल चुका है , लेकिन चीन के प्रति संशय कायम है। उधर समाज के विभिन्न क्षेत्रों यथा खेल, विज्ञान, साहित्य, फिल्म, मनोरंजन आदि क्षेत्र में भी भारतीय उपलब्धियां कम नहीं रहीं। नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों मे भारत 100 पदकों के साथ जहां दूसरे स्थान पर रहा वहीं चीन में आयोजित एशियाई खेलों में 63 पदक जीतकर भारतीय खिलाडियों ने तो अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया। बैडमिंटन में साइना नेहवाल ने भारत का गौरव बढ़ाया और क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर ने कई कीर्तिमान अपने नाम किये। उन्होंने जहां एक दिवसीय मैंचों में दोहरा शतक लगाया वहीं टेस्ट मैंचों में शतकों का अर्धशतक लगाया। अब पूरा भारत सचिन को भारत रत्न देने की मांग कर रहा है। देखना है कि सचिन का यह सपना 2011 में पूरा होगा या नही? वर्ष 2011 में सचिन के कई और कीर्तिमान लाइन में लगे हैं। वर्ष 2011 में अंतर्राष्ट्रीय विश्व कप क्रिकेट का भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजन होने जा रहा है जिसे जीतना भी उनका एक स्वप्न है। इस वर्ष उनके शतकों का शतक भी पूरा हो सकता हैं देखतें हैं वर्ष 2011 सचिन के खाते में क्या क्या रंग लेकर आ रहा है। फिल्म जगत की दृष्टि से इस वर्ष फिल्में तो कम हिट हुईं लेकिन हीरोइनों के ठुमके और उनके कम कपड़े वर्ष भर चर्चा का केंद्र बिंदु बने रहे। ‘तीस मार खां’ के गीत ‘शीला की जवानी’ और दबंग की ‘मुन्नी’ पर लोग नाचे तो फिल्में नहीं चल पायीं। फिल्म अभिनेता शाहरूख खान पाकिस्तानी प्रेम के कारण वर्ष भर शिवसेना के निशाने पर रहे। जबकि सलमान खान, अमिताभ बच्चन व अन्य कलाकार टी. वी. पर छाये रहे। विभिन्न चैनलों के बीच टी. आर.पी. युध्द चलता रहा। टी.वी. चैनलों द्वारा जमकर अश्लीलता परोसी गई। अब वर्ष 2011 के गर्त में क्या छिपा है यह देखना है?क्या संसद का सत्र शांतिपूर्वक चल पाएगा ?क्या 2 जी स्पेक्ट्रम व राष्ट्रमंडल खेलों के अपराधी जेल जाएंगे?क्या सर्वोच्च न्यायालय के रवैये के चलते सतर्कता आयुक्त पी.वी.थामस को जाना होगा?संसद भवन पर हमले के आरोपी अफजल गुरू या फिर मुम्बई के गुनहगारों को इस वर्ष भी कड़ी सजा मिलेगी या नहीं या फिर हम लोग इस वर्ष भी शहीदों की याद में केवल मोमबत्तियां ही जलाते रहेंगे?क्या नक्सलवाद व आतंकवाद का भय समाप्त हो सकेगा ?वर्ष 20011 में इस बात का संकेत भी मिल सकता है कि राहुल गांधी देश के युवा प्रधानमंत्री बन सकेंगे या नहीं?वर्ष 2011 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल भी हो सकता है। क्या पाकिस्तान भारत के गुनाहगारों को भारत के हवाले करेगा?जम्मू कश्मीर शांति प्रक्रिया का क्या होगा?इस वर्ष भारतीय उपमहाद्वीप में एकदिवसीय विश्वकप क्रिकेट का आयोजन होने जा रहा है क्या कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के कुशल नेतृत्व में भारत यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर सकेगा?यह वर्ष कप्तान महेंद्र सिह धोनी के भविष्य का भी निर्धारण करने जा रहा है। एक छोटी सी बात यह कि क्या भारत का पड़ोसी राष्ट्र नेपाल राजनैतिक अस्थिरता का युग समाप्त हो सकेगा या फिर पड़ोसी राष्ट्र म्यांमार में लोकंतत्र समर्थक नेता आंग सांन सू की नेतृत्व में वास्तविक लोकतंत्र का उदय सम्भव हो सकेगा? क्या भारत में किसानों की आत्महत्याएं रूक सकेंगी या फिर सभ्य समाज में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर अंकुश लग सकेगा? इस प्रकार वर्ष 2011 को बहुत सारे यक्ष प्रश्नों के उत्तर देने ही हाेंगे? अब देखना यह है कि हमे कितने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो सकेंगे?

* लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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