क्या इस मंदी का अंदाजा है आपको

कुछ साल पीछे जाइये। 2007-08 की वैश्विक मंदी याद है न आपको। विश्व अर्थव्यवस्था अभी भी उससे पूरी तरह उभर नहीं पाई है। और अब उससे भी बड़ी वैश्विक मंदी की दस्तक पड़ने लगी है। आशंका है कि अक्टूबर 2015 में दुनिया की अर्थव्यवस्था के संकटग्रस्त होने की खबरें खुले आम हो जायेंगी। पूंजी का केंद्रीयकरण और कई बड़ी बहुराष्ट्रीय निजी कंपनियों का जिस तेजी से विलय हो रहा है और उन्हें खरीदा जा रहा है, वह अपने आप में गंभीर चेतावनी है।

दुनिया के प्रमुख बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेशन जिनमें क्रॉफ्ट, मोटोरोला, लीनोवो, टायसन और एचटीसी शामिल है, ने हाल के दिनों में अपने यहां नौकरियों में कटौती की घोषणा की है, वह भी तब, जब कि कंपनियों की खरीदी और विलय काफी तेजी पर है। निजी कंपनियों की खरीदी और विलय, इस साल अपना नया रिकॉर्ड बनाने की तरफ बढ़ रही है। संभवतः यह अब तक की चरम स्थितियां हैं। पिछले महीने डब्बाबंद खाना बनाने वाली निजी कम्पनी क्रॉफ्ट और एच. जे. हिंज का विलय हो गया है। यह विलय 49 बिलियन डॉलर का है। अब ‘क्रॉफ्ट-हिंज कंपनी’ ने 12 अगस्त को घोषित किया कि वह उत्तरी अमेरिका में अपने यहां काम करने वाले 2,500 लोगों की कटौती करेगा। यह दुनियाभर में इस कंपनी में काम करने वालों का 5 प्रतिशत है। इन कटौतियों में उसके मुख्यालय में की गयी 700 नौकरियों की कटौतियां भी शामिल हैं, जो शिकागो के करीब नार्थफिल्ड इलिनॉयस में स्थित है।

sensex13 अगस्त को चीन की कंप्यूटर बनाने वाली कंपनी लीनोवो ने 3,200 नौकरियों के कटौती की घोषणा की है। यह उसके ग्लोबल स्तर पर काम करने वाले लोगों का 5 प्रतिशत है। ये कटौतियां उसके अधीन कंपनी मोटोरोला मोबाईल में केन्द्रित होगीं। अगस्त के दूसरे सप्ताह में उसने अपने शिकागो स्थित हेडक्वाटर में 500 नौकरियों की कटौती की घोषणा की। अन्य 300 कर्मचारियों की नौकरियां फ्लोरिडा स्थित इकाई के बंद होने से चली जायेंगी। लीनोवो ने मोटोरोला मोबाईल को 2014 में गूगल से खरीदा था। 13 अगस्त को ही स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनी एचटीसी ने भी इस साल के अंत तक 2,250 नौकरियों की कटौती की घोषणा की, जो कि उसके कुल काम करने वालों का 15 प्रतिशत है। कंपनी अपनी लागत में 35 प्रतिशत खर्च को घटाना चाहती है।

नौकरियों में कटौती की घोषणा का यह सिलसिला पिछले महीने माइक्रोसॉफ्ट द्वारा 7,800 नौकरियों की कटौतियों की घोषणा के साथ शुरू हुआ। माइक्रोसॉफ्ट की ये कटौतियां ‘नोकिया मोबाइल डिविजन’ में की जाएंगी, जिसे कि उसने 2013 में खरीदा था। माइक्रोसॉफ्ट की घोषणा के कुछ ही सप्ताह बाद सेनडियागो स्थित सेमिकंडक्टर कंपनी क्वालकम इनकॉरपोरेटेड ने 4,700 नौकरी के कटौती की घोषणा कर दी।

सामूहिक रूप से की जा रही नौकरी में कटौतियों और वैश्विक स्तर पर कंपनियों के खरीदी-विक्रय एवं विलय में आई तेजी के बीच काफी नजदीकी रिश्ता है। कमजोर पड़ती विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर और उसके साथ कॉरपोरेट के बैलेंस शीट में नगद जमा राशि में वृद्धि होने की स्थिति का उपयोग वॉलस्ट्रीट निजी कंपनियों के खरीदी-बिक्री और विलय से, अमेरिका और विश्व कॉरपोरेशन पर अतिरिक्त दबाव बनाने के लिये कर रहा है। कॉरपोरेट के बैलेंस शीट में नगदी का उच्चतर जमा राशि अपने आप में एक रिकार्ड है। थॉमसन रॉयटर्स डाटा के अनुसार इस साल निजी कंपनियों और कॉरपोरेशनों की खरीदी-बिक्री और उनके विलय का आंकड़ा अब तक इस आंकड़े के रिकॉर्ड लेवल के काफी करीब है, जबकि अभी साल का एक तिमाही बाकी है। साल 2007 में, 2008 के वित्तीय संकट के ठीक पहले तक, यह आंकड़ा 3 ट्रिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था, जबकि इस साल यह आंकड़ा अभी ही 2.9 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है। इस साल अमेरिका में कंपनियों एवं कॉरपोरेशनों का विलय मूल्य 1.4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है, जो कि पिछले साल की तुलना में 62 प्रतिशत ज्यादा है।

विश्व अर्थव्यवस्था के संभलने की संभावनायें न सिर्फ लगातार कम हो रही हैं, बल्कि स्थितियां ऐसी बनती जा रही हैं, कि संभावनाओं के खत्म होने के नकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। मुक्त बाजारवादी व्यवस्था की सबसे बड़ी परेशानी पूंजी का राज्य के नियंत्रण से मुक्त होना और उसका निजी क्षेत्रों में लगातार केंद्रीयकरण और संकुचन है, जिसे रोक पाना उसके भी बस में नहीं है। यही कारण है, कि लड़खड़ाती हुई वैश्विक वित्त व्यवस्था को सुधारने और उसके विकास को बढ़ाने के बजाये वैश्विक वित्तीय ताकतें उसे मंदी के दौर में घुसाती जा रही हैं। अनुमान है, कि एक नया वैश्विक संकट करीब है।

Previous articleआरक्षण का विकल्प और वोटबैंक की राजनीति!
Next articleअंधविश्वासों का खण्डन समाज की उन्नति के लिए परम आवश्यक
अंकुर विजयवर्गीय
टाइम्स ऑफ इंडिया से रिपोर्टर के तौर पर पत्रकारिता की विधिवत शुरुआत। वहां से दूरदर्शन पहुंचे ओर उसके बाद जी न्यूज और जी नेटवर्क के क्षेत्रीय चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के भोपाल संवाददाता के तौर पर कार्य। इसी बीच होशंगाबाद के पास बांद्राभान में नर्मदा बचाओ आंदोलन में मेधा पाटकर के साथ कुछ समय तक काम किया। दिल्ली और अखबार का प्रेम एक बार फिर से दिल्ली ले आया। फिर पांच साल हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया। अपने जुदा अंदाज की रिपोर्टिंग के चलते भोपाल और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में खास पहचान। लिखने का शौक पत्रकारिता में ले आया और अब पत्रकारिता में इस लिखने के शौक को जिंदा रखे हुए है। साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, लेकिन फिर भी साहित्य और खास तौर पर हिन्दी सहित्य को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने की उत्कट इच्छा। पत्रकार एवं संस्कृतिकर्मी संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक “कुछ तो लोग कहेंगे” का संपादन। विभिन्न सामाजिक संगठनों से संबंद्वता। संप्रति – सहायक संपादक (डिजिटल), दिल्ली प्रेस समूह, ई-3, रानी झांसी मार्ग, झंडेवालान एस्टेट, नई दिल्ली-110055

1 COMMENT

  1. भारत इस मंदी को भी झेल लेगा,मुझे याद यही मेरे एक रिश्तेदार २००८ की मंदी में विदेश में कार्यरत थे ,वे बताते हैं की हमारे यहाँ जीवन सीधा साधा जिया जाता है. कठिनाई में हम कम और सस्ते साधनों में जीवन यापन करना जानते हैं. इन दिनों मैं स्वयं uk में हुन्य़हान के उपभोकतावादी जीवन को देखकर हैरान हुँ. हम पल्स्टिक की थैलियों को भी सहेजकर रखते हैं. यहां तो लेहे के तीन तक कचरापेटी में होते हैं कबाड़ में नही. मंदी का मुख्य कारण है विलासी जीवन और उपभोक्तावाद। हम उबर जाएंगे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here