दीपिका
बात है 2011 की जब मैंने अपने जीवन मे किसी खास को पहला तोहफा दिया . हम पीजी की पढ़ाई कर रहे थे और हॉस्टल मे रहते थे. पैसा घर से ही आता था (खर्च का) और उसी मे सब कुछ देखना पड़ता था. मेरे किसी खास का जन्मदिन आ रहा था.प्लान करना शुरू कर दिया था कि क्या दे. मेरी मदद करने के लिए मेरी रूममेट,मेरी बड़ी दीदी थी वो जो मेरे हर सुख दुख मे मेरे साथ खड़ी रहती थी (अभी वो पीएचडी कर रही है). जैसा कि मैंने बताया कि प्लान शुरू हो चुका था. तो सोचा क्या दिया जाए कोई ऐसी चीज जो इस्तमाल मे भी आए और हर वक़्त साथ भी रहे .
समय तो अपनी गति से चल रहा था एक दिन हम अपने खास के साथ घूमने गए हम ऑटो से उतरे तभी ऑटो वाले ने कहा कि भाई साहब टाइम क्या हो रहा है मेरे खास ने अपना छोटा वाला सैमसंग का फोन निकला और उसको समय बताया. मेरे दिमाग मे तभी चल क्यों न इसको घड़ी गिफ्ट दी जाए तभी मेरी खास ने मुझे कहा तुम क्या सोच रही हो चलो अब ? मै कहा हाँ चलो . कुछ दूरी पैदल तय करना था उसी बीच मैंने उससे पूछ ये बताओ तुमने कभी घड़ी नहीं पहनी उसके मुह का पहला शब्द नहीं कभी नहीं पहनी. मन ही मन मै खुश हो रही थी और सोच रही थी कि जल्दी से रूम पर पहुच कर दीदी की बताऊँ.फाइनली ………. मै हॉस्टल पहुच गई और रूम पे पहुचते ही दीदी को सबसे पहले यह बताया कि मैंने गिफ्ट सोच लिया दीदी क्या अब बता भी दी , मैंने बोला घड़ी ! दीदी सच मे तू घड़ी देगी मैंने बोला हा…… उसने कभी घड़ी नहीं पहनी .
रात भर मैंने सोच कि कैसे पैसा जोड़े कि एक अच्छी सी वॉच आ जाए मैंने अपने पाकेट मनी से पैसे जोड़ना शुरू किया और दीदी मै और दीदी की फ्रेंड (जिनके पास गाड़ी थी ) उनके साथ वॉच वाली शॉप पर गए मैंने शॉप अंकल से बोला मुझे ब्रांडेड वॉच दिखाए ? देखी तो और पसंद भी थी पर मेरे पास इतनी सविंग नही थी कि मै इतनी कॉस्टली वॉच ले सकू फिर मैंने अंकल से बोला कि मुझे फास्टट्रैक की वॉच दिखाइए ……..फास्टट्रैक की देखी उसमे भी महंगी वॉच थी जितना भी पैसा जोड़ा था वो सिर्फ मेरी पाकेट मनी से बचाया था, फाइनली ! एक वॉच मुझे बहुत पसंद आई और उसका रेट बहुत डर डर के पूछा अंकल ने जब उसका रेट बताया मानो उस समय दिल खुश हुई दीदी की तरफ देखा पूछा फिर उसको ही फाइनल पैक किया .
वापस हॉस्टल आए और अगले दिन का इंताजर कर रहे थे कि कब कब मै वो वॉच उसको दू ………आ ही गया वो दिन (जिसका मुझे था इंताजर वो घड़ी आ गयी आ गयी हाहाहाहा) जन्मदिन की बधाई देते हुए वो तोहफ़ा जो मैंने किसी खास को लिए पहली बार दिया………. वो दिन मुझे कभी नहीं भूलता है. तोहफ़ा खोला, घड़ी देखकर जो खुशी उसे मिली उससे कही ज्यादा मुझे ! साल बीते बीच मे अचानक उसकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गयी थी 10 दिन आईसीयू मे रहने के बाद वो स्वास्थ्य होकर घर वापस आया (भगवान की कृपा से वो एकदम ठीक हो गया ).
घर आने के बाद तीसरे दिन प्यार का दिन यानि ( valention day) था (इत्तफ़ाक की बात है कि जब वो हॉस्पिटल मे था तभी उसकी घड़ी बंद हो गयी थी जो उसकी पहली घड़ी थी )मैंने फिर से उसके लिए एक घड़ी ली इस बार मेरे पास पैसे थे इसलिए सीधे टाइटन के शोरूम मे गई और मुझे बहुत अच्छी सी वॉच पसंद आई और मैंने खरीद लिया उसे गिफ्ट पैक करा लिया . वो उसके जीवन की दूसरी घड़ी थी जो फिर से मैंने ही दी थी उसे………….. मै बहुत खुश थी पहला इसलिए क्योकि वो एकदम ठीक हो होगा घर आ गया था ……. दूसरा इसलिए क्योकि उसको वो घड़ी बहुत पसंद आई .
बीते कुछ वषों मे मेरा वो तोहफा पुराना हो गया जब उसने अपने लिए खुद घड़ी ले ली . एहसास तो तब हुआ जब उस घड़ी को उसके हाथ मे नहीं देखा ! बहुत अजीब सा एहसास होता है जब उसने अपनी पसंद घड़ी तो ली पर ,मेरी दी हुई पहना छोड़ दी . अब मेरा तोफा किसी कोने मे रखा रहता है . आज मन बहुत उदास है पर दुखी नहीं क्यूकी आज जीवन मे कुछ नया सीखा लोग कहते है ओल्ड इस गोल्ड पर ये कहावत आज की जिंदगी मे जा रही है जो आज है वही चमकता सितारा है जो कल बीत गया वो पुराना बन कर ही रह जाता है फिर उससे कितनी भी यादे क्यू न जुड़ी हो .आज के समय मे नई चीजों का महत्व ज्यादा है पुरानी चीजों ने तुम्हारा कितना भी साथ दिया हो वो पुरानी ही रह जाती है …………….किसी ने कहा है, नसीब से ज्यादा भरोसा तुम पर किया, फिर भी नसीब नहीं बदला, जितना तुम बदल गए !