जब औघड़-श्राप से मुक्त हुआ था काशी- राजघराना

1
638
augharअघोर-परम्परा का उदगम, सृष्टि के निर्माण से ही है ! कहा जाता है कि भगवान शिव इस दुनिया के पहले अघोरी थे ! उत्तर-भारत में भगवान शिव को औघड़-दानी कहने का चलन बरसों पुराना है ! किसी भी समय-काल में , विधाता की सम्पूर्ण शक्ति को समाहित किये, इस पृथ्वी पर हमेशा एक अघोरी मानव-तन में विचरण करते रहे हैं ! हालांकि कई स्वयंभू पत्रकारों ने “अघोरी” को कुकुरमुत्ते की तरह, सैकड़ों की संख्याँ में, जगह-जगह खोज निकाला है ! ये और बात है कि, इन पत्रकारों के “अघोरी”,  भय-मिश्रित सनसनी के नायक से ज़्यादा और कुछ नहीं !
खैर ! अघोर परम्परा की बात करें तो तकरीबन 16वीं शताब्दी तक ये परम्परा सुसुप्तावस्था में रही ! मगर इसी शताब्दी के महान संत और अघोर-परम्परा के पुनरागामित-स्वरूप को पुनः प्रज्ज्वलित करने वाले अघोराचार्य बाबा कीनाराम राम जी को (वर्तमान समय में ) इस परम्परा का जनक माना जा सकता है और (वाराणसी स्थित) उनकी तपोभूमि , “बाबा कीनाराम स्थल, क्री-कुण्ड” (जिसका ज़िक्र मैंने अपने पूर्वर्ती लेखों में किया भी है) को इस परम्परा का केंद्र-बिंदु ! यही कारण है, कि, अघोर परम्परा के साधक खुद को कीनारामी परम्परा में बताते हैं ! बाबा कीनाराम जी को विधाता का ही रूप माना जाता रहा ! उनसे जुडी कई अदभुत और औलौकिक कथाएँ, आज भी लोगों की जुबां पर है ! उनकी अतुलनीय आध्यात्मिक शक्ति, कईयों के जीवन का आधार बनी तो कई उनके श्राप के भागी बने ! कहते हैं , कि, अघोरी का इस सृष्टि पर पूर्ण नियंत्रण होता है लेकिन साथ में असीम करुणा और मानवता का प्रतीक भी होता है ! ये लोग प्रसन्न या क्रोध में आकर कुछ बोल देते हैं तो उसका प्रभाव तब तक दिखता है, जब तक वो स्वयं उसका निदान ना कर दें !
18वीं शताब्दी के मध्य में, काशी के तत्कालीन महाराजा चेतसिंह ने, बाबा कीनाराम जी का बुरी तरह अपमान कर दिया था ! बाबा ने दुखी होकर भावावेश में आकर कह दिया…..”” हे अहंकारी राजन, अब तुम्हारा ना राज-पाट बचेगा , ना ही ये किला और ना कोई उत्तराधिकारी , तुम्हारे इस किले पर कबूतर बीट करेंगें “! इतिहास गवाह है, कि, राजा चेतसिंह को वो किला छोड़कर भागना पड़ा और उनका कोई पता नहीं चल पाया ! चेतसिंह के (वाराणसी में) शिवाला स्थित किले पर कबूतर आज भी बीट करते हैं ! तब से लेकर सन 1960-70 तक काशी-राजघराना , गोद-गोद ले-ले कर ही चलता रहा ! कई जगहों पर कोशिश-मन्नतें-प्रार्थना की गयीं , लेकिन सब व्यर्थ !                  इसी दरम्यान , विख्यात तत्कालीन काशी-नरेश विभूति नारायण सिंह ने विश्व-विख्यात औघड़ संत बाबा अवधूत भगवान् राम (अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी के गुरू) जी से श्राप-विमोचन की प्रार्थना किया ! साथ ही अवधूत भगवान् राम के गुरू,  महान अघोरी बाबा राजेश्वर राम जी , से भी प्रार्थना  ! श्राप की कमी में आंशिक असर तो हुआ, पर पूर्ण रूप से ख़त्म नहीं ! स्वयं अवधूत भगवान् राम बाबा ने , काशी नरेश से कहा कि, “11वीं गद्दी पर (अपनी पूर्व-भविष्यवाणी के तहत) वो आयेंगें तो ही पूर्ण श्राप-मुक्ति संभव है, वो भी जब वो 30 साल की अवस्था पार कर लेंगें तब” ! यहाँ पाठकों के लिए ये बता देना ज़रूरी है कि सन 1750-1800 के बीच अपनी समाधि के वक़्त बाबा कीनाराम जी ने स्वयं कहा था, कि, “इस पीठ की 11वीं गद्दी पर मैं बाल-रूप में पुनः आऊंगा तो पूर्ण-जीर्णोद्धार होगा ” !  10 फरवरी 1978 को वो दिन भी आया, जब महाराजश्री बाबा कीनाराम जी, 11वें पीठाधीश्वर के रूप में,  पुनः बाल रूप (मात्र  9 वर्ष की आयु में) में उपस्थित हुए—- नया नाम—-अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम जी !
काशी राज-घराना इस सिद्ध पीठ पर उनकी वापसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था ! लेकिन सवाल महाराजश्री के बाल रूप के युवा होने तक का था ! यानि महाराजश्री के इस जीवन-काल में, 30 साल की आयु पूरी होने तक ! 1999 में महाराजश्री के बाल-रूप ने, 30 वर्ष की आयु का युवा स्वरूप जब हासिल कर लिया तो काशी राज-घराने से जुड़े लोगों ने श्राप-मुक्ति हेतु प्रार्थना-याचना , अनुनय-विनय की प्रक्रिया काफी तेज़ कर दी ! ऐसा करते-करते अगस्त 2000 भी आ गया ! एक बार फिर, अचानक, 20 अगस्त को राजकुमारी , फल-फूल के साथ एक बार फिर प्रार्थना-याचना करने पहुँची ! अघोराचार्य महाराजश्री ने कहा …. आऊंगा ! 30 अगस्त 2000 को वो दिन भी आया , जब बेसब्री के साथ काशी का राज-घराना, पूरी दुनिया में अघोर के आचार्य यानि अघोराचार्य महाराजश्री बाबा कीनाराम जी का इंतज़ार कर रहा था ! पूरे महल को सजाया गया था ! पूरी दुनिया में अघोर परम्परा के, शिव-स्वरुप, मुखिया का इंतज़ार था !  इंतज़ार की घड़ी ख़त्म हुई ! हर-हर महादेव का गगन-भेदी उदघोष होने लगा ! अपने नए नाम.…अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम, व् रूप में महाराजश्री वहाँ पहुंचे ! काशी-नरेश की अगुवाई में, फूलों की वर्षा के साथ अघोराचार्य महाराजश्री का भव्य स्वागत करते हुए उन्हें महल के पूजन-कक्ष में ले जाया गया ! पूजा-पाठ के बाद , बाबा ने मिष्ठान ग्रहण कर काशी-राजघराने को श्राप-मुक्त कर दिया ! बाबा ने दुखी-जनों की सेवा करने का भाव जगाते हुए, राज-घराने को आशीर्वाद दिया !
ये अदभुत आध्यात्मिक घटना इसी चरम वैज्ञानिक युग की है ! आस्था व् विश्वास निजी ख़्यालात हैं, लिहाज़ा मानने-ना मानने का सर्वाधिकार सबके पास सुरक्षित है ! ऐसे भी एक कहावत चलन में है——मानो तो भगवान, ना-मानो तो पत्थर !

नीरज

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here