स्त्रियों के प्रति कब बदलेगी पुरुष प्रधान समाज की सोच?

सिद्धार्थ शंकर गौतम

गुवाहाटी में नाबालिक लड़की के साथ २० लोगों द्वारा की कई अश्लील छेड़खानी और मारपीट का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रतनपुर के पास खूंटाघाट घूमने आए एक प्रेमी जोड़े को चार हथियारबंद लोगों ने पकड़ा और प्रेमी के सामने प्रेमिका को निर्वस्त्र कर उससे परेड करवाई तथा अश्लील एमएमएस बनाकर उसे सैकड़ों लोगों को मुहैया करा दिया| अब यह एमएमएस मीडिया चैनलों की सुर्खियाँ बढ़ा रहा है| यूट्यूब पर तो न जाने इसे कितने लोगों ने देखा होगा? कुछ यही हाल गुवाहाटी में भीड़ की सनक की शिकार नाबालिक लड़की के बनाए वीडियो का है जो चटखारे ले-लेकर सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर लगातार देखा जा रहा है| क्या यह मानसिक दिवालियापन समाज के हर तबके में घर कर गया है| सड़क से लेकर घर तक में महिलाएं-लडकियां सुरक्षित नहीं हैं| गुवाहाटी हो या दिल्ली, मुंबई हो या अहमदाबाद; कमोबेश सभी शहरों में अश्लील छेड़छाड़ व महिलाओं को प्रताड़ित करने में कोई बहुत अधिक अंतर नहीं है| रोजमर्रा की ज़िन्दगी में अधिकांश लड़कियां-महिलाएं अश्लीलता व छेड़छाड़ का शिकार होती हैं पर भीड़ का भेड़िये के रूप में अकेली असहाय लड़की व महिला के साथ अश्लील हरकतें करना ज़रूर समाज में नैतिकता के अत्यधिक पतन को दर्शाता है| पूरे देश में गुवाहाटी की घटना के प्रति आक्रोश है वहीं छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में घटी घटना के १५ दिनों बाद भी आरोपियों का कोई सुराग नहीं है| क्या इसके पीछे मीडिया का गैर-जिम्मेदाराना रवैया जिम्मेदार है या सरकार की हाई-प्रोफाइल मामले को लेकर अति-सक्रियता| गुवाहाटी की घटना के ४ दिन बाद ही महिला आयोग से लेकर केंद्रीय मंत्रियों ने इस घटना को शर्मनाक करार देते हुए इसकी भर्त्सना की मगर बिलासपुर की घटना के १५ दिनों बाद प्रकाश में आने पर भी किसी का मुंह नहीं खुला| आखिर क्यूँ? क्योंकि गुवाहाटी की घटना को सनसनीखेज बना कर बुद्धू बक्से ने इस प्रकार पेश किया मानो इससे बड़ी और अनोखी घटना देश में इससे पूर्व कभी घटी ही न हो जबकि ३१ दिसंबर २०११ की अर्धरात्रि गुडगाँव में नए साल के आगमन का जश्न मनाकर लौट रहे कपल को भी भीड़ ने इसी बर्बरता से अपने निशाने पर लिया था| यदि पुलिस मौके पर नहीं पहुँचती तो उनके साथ कुछ भी हो सकता था| एक तो नए साल के जश्न का नशीला उत्साह ऊपर से अकेले जोड़े को देख भीड़ का कामुक हो जाना; स्थिति बड़ी विकट हो सकती थी| इसी तरह मुंबई के मैरिएट होटल के बाहर २ महिलाओं को उनके घर वालों के सामने ही निर्वस्त्र करने की कोशिश की गई वह भी ३०-४० लोगों की भीड़ ने| इस मामले को भी मीडिया ने कई दिनों तक टीआरपी के चक्कर में कई दिनों तक भुनाया था|

 

आखिर इस तरह के मामलों में मीडिया का अधिकतर गैर-जिम्मेदाराना रवैया ही क्यूँ सामने आता है? जिस रात गुवाहाटी में नाबालिक लड़की के साथ दरिन्दे छेड़छाड़ व मारपीट कर रहे थे, उस वक्त कुछेक पत्रकारों ने पूरी फिल्म बनाई थी| क्या उस वक्त उस असहाय लड़की की इज्ज़त बचाने से अधिक फिल्म बनाना ज़रूरी था| आखिर क्यों कोई भी उसकी लुटती अस्मत को बचाने का साहस नहीं दिखा पाया| फिर फिल्म बनाकर उसे घंटों मीडिया में दिखाने से क्या उस लड़की के ज़ख्म भर जायेंगे? नहीं कदापि नहीं, क्योंकि मीडिया में आने से उस लड़की की पहचान सार्वजनिक हुई है जिसका हर्जाना उसे जीवन भर भुगतना पड़ेगा| क्या लगता है, निष्ठुर हो चुका यह समाज उस लड़की को चैन से जीने देगा? उसके कदम जहां-जहां पड़ेंगे, वहीं फब्तियों का सजा बाज़ार उसकी राह तकेगा| क्या पुरुषों की महिलाओं के प्रति सोच उस लड़की के भावी जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी? फिर सवाल सिर्फ उस लड़की का नहीं है, सैकड़ों-हज़ारों लड़कियां जो इस तरह के जुर्म का शिकार होतीं और जो खबरों की सुर्खियाँ भी नहीं बनती, उनके भावी जीवन पर क्या कुछ नहीं बीतती होगी? स्त्री जाति के खिलाफ इस तरह की घटनाओं में बढोत्तरी होना कहीं ना कहीं समाज के नैतिक पतन को दर्शाती हैं| फिर जिस तरह से समाज में एकल परिवारों का चलन बढ़ रहा है जिससे बच्चों में महिलाओं के प्रति वह इज्जत पैदा ही नहीं हो सकती जिसका जिक्र हमारे धर्म-ग्रंथों में है| नारी को देवी की तरह पूजने वाला भारतीय समाज ना जाने कहाँ लुप्त हो चुका है? अब उसके दिमाग में नारी की जो भोग्या छवि समाई है वही उसके भेड़िया बनने का कारण है| जो कसर बाकी बचती है उसे आसानी से इंटरनेट पूरी कर देता है जिससे दिमाग अतिकामुकता की वजह से कुंठाग्रस्त हो जाता है जिसकी परिणति के रूप में इस तरह की घटनाएं समाज के समक्ष आती हैं और तमाम रिश्तों को कलंकित कर मर्यादाओं की सीमाएं लांघ जाती हैं| वैसे भी घर हो या बाहर, महिलाएं-लडकियां कहीं सुरक्षित नहीं हैं|

 

महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो २०११ के आंकड़े भी समाज में उनकी दयनीय दशा-दिशा तय करते हैं| एक वर्ष में महिलाओं के अपरहरण से जुड़े मामलों का प्रतिशत जहां ३१.८ रहा वहीं बलात्कार की शिकार महिलाओं का प्रतिशत १७.६ रहा| दहेज़ हत्या के जुड़े अपराधों का प्रतिशत १४.० रहा तो उत्पीडन की शिकार महिलाओं का प्रतिशत १०.१ रहा| जहां तक वर्ष २०११ में महिलाओं के खिलाफ घटित अपराधों के दर्ज आंकड़ों की बात है तो इनकी संख्या ४४८९ रही| इस संख्या में अधिक इजाफा हो सकता था यदि स्त्री अपराधों से जुड़े तमाम मामलों में पुलिस रिपोर्ट दर्ज करवाई जाती| अधिकांश मामले सामाजिक इज्जत का हवाला देकर चारदीवारी में ही सुलझा लिए जाते हैं| हर ३ में से २ महिलाएं एक वर्ष में न्यूनतम दो बार व अधिकतम पांच बार यौन शोषण का शिकार होती हैं| वहीं ५४ प्रतिशत महिलाएं सार्वजनिक परिवहन, बस स्टॉप, रेलवे स्टेशनों पर स्वयं को सर्वाधिक असहज महसूस करती हैं| महिलाओं के प्रति समाज की विकृत सोच तो देखते हुए ४३.५ प्रतिशत महिलाओं-लड़कियों ने अपने पहनावे से समझौता किया है| करीब ६० प्रतिशत महिलाएं सार्वजनिक स्थलों पर पियक्कड़ों से डरती हैं| महिलाओं के साथ ४० प्रतिशत से अधिक यौन शोषण के मामले दिन के उजाले में होते हैं| एक और चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि करीब ७५ प्रतिशत पुरुष महिलाओं-लड़कियों के साथ हो रही बदसलूकी देखकर भी मूक दर्शक बने रहते हैं| आखिर एक सभ्य समाज की ओर अग्रसर देश में महिलाओं के प्रति पुरुषों की सोच में कब बदलाव आएगा? क्या कोई पुरुष अपनी माँ, बहन, बेटी के साथ इस तरह के अमानवीय व्यवहार को सहन कर सकता है? शायद नहीं, फिर ७५ प्रतिशत महिलाओं-लड़कियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देख उसका खून क्यों नहीं खौलता? क्यों वह मूक दर्शक बन सारी ज्यादतियों को देखता है? क्या इसके पीछे भी समाज और खुद में आए एकाकीपन का हाथ है| घटना चाहे गुवाहाटी की हो या बिलासपुर की, एक सवाल समाज के सामने छोड़ रही है कि क्या स्त्री जाति को लेकर पुरुष प्रधान समाज की दूषित मानसिकता में बदलाव आएगा? क्या नारी को देवी मान पूजने के दिन लौटेंगे? सवाल अनगिनत है पर सकारात्मक उत्तर सीमित हैं और उम्मीद की किरण भी धूमिल है

Previous articleपाकिस्तान और आतंकवाद
Next articleगजल:पूछो तो भगवान है क्या–श्यामल सुमन
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here