आखिर कब थमेगा यह मौत का मंजर? नरेन्द्र भारती,

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busएक बार फिर लाशों के ढेर लगे, चारों तरफ खून बिखरा, लाशों को ढकनें के लिए कफन भी कम पड़ गए । ऐसा ही दिल दहला देने वाला हादसा मंडी के झिड़ी में हुआ जब एक निजी बस चालक की लापरवाही के कारण 40 से अधिक लोगों की असमय मौत हो गई। व्यास नदी में गिरी इस बस में लगभग 70 सवारियां सवार थी। चालक कथित तौर पर मोबाईल फोन पर बात कर रहा था कि बस अनिंयत्रित हो गई और नदी में समा गई। पल भर में ही यात्री लाशों में तब्दील हो गये। गनीमत रही कि राफटिंग दल ने जान जोखिम में डालकर 17 लोगों की जिदंगियां बचा ली नही तो मरने वालों का आंकडा 60 हो जाता यह हादसा नहीं सरासर हत्या है कि चालक ने खुद छलांग लगाकर यात्रियों को असमय मौत के मुहं में धकेल दिया। बीते हादसों से न तो यात्रियों ने सबक सीखे और न ही प्रशासन ने कोई सबक सीखा ।अक्सर देखा गया है कि ज्यादातर हादसे ओवरलोडिगं के कारण होते है क्योकि इस 42 यात्रियों कि क्षमता वाली बस में 70 यात्री सफर कर रहे थे। यह काई पहला हादसा नही है इससे पहले कांगडा के आशापुरी में तथा बिलासपुर के बंदला में भी ऐसे भीषण हादसे हो चुके हैं। 2012 में इतने बड़े-बड़े हादसे हुए मगर इसमें सुधार नहीं हुआ। आखिर कब थमेगा यह मौत का मंजर इसका जबाव प्रशासन को देना होगा। 2013 में अब तक 82 मौतें हो चुकी है। प्रतिवर्ष हजारों लोग हादसों का शिकार होते है तथा इतने ही घायल होते है । अप्रैल माह में चंबा में भी 12 युवकों की मौत हो गई थी। हमीरपुर में भी मजदूर दिवस के दिन एक टाटा सूमों के खाई में गिरने से 10 मजदूरों की मृत्यु हो गई थी । आकडों के अनुसार 2003.04 में 2794 घटनाएं घटी जिसमें 2794 लोग मारे गये तथा 4293 घायल हो गये। 2005-2005 में 2758 घटनाओं में 920 लोग मारे गये तथा 4674 घायल हुए। 2005.2006 में 2868 घटनाएं घटी जिसमें 861 लोग मारे गये जबकि 4755 घायल हुए। 2006-2007 में 2737 घटनाओं में 929 लोग मारे गये। 2007-2008 में 2953 हादसों में 921 लोग मारे गये तथ 5272 घायल हुए। 2008-2009 में 2840 घटनाओं में 898 लोग मारे गये और 4837 घायल हुए। 2009-2010 में 3023 घटनाओं में 1173 लोग मारे गये और 5630 घायल हो गये। 2010-2011 में 3104 हादसों में 1105 लोग मारे गये जबकि 5350 घायल हुए। 2012 में 1450 सडक दुर्घटनाओं में 200 सें अधिक लोग मारे गये थे। अमूमन देखा गया है कि निजी बसों के कारण ज्यादातर दुर्घटनाएं हो रही है। क्योकि इन बसों में अप्रशिक्षित चालकों की लापरवाही के कारण भंयकर हादसे हो रहें हैं। मोबाइल पर प्रतिबन्ध है लेकिन इसकी खुलेआम धज्जियां उडाई जा रही है। प्रशासन भी हादसे के कुछ दिन सक्रियता दिखाता है फिर वही हालात हो जातें है। लोग भी किराये में कुछ रियायत के कारण सरकारी बसों में यात्रा न कर निजी बसों को अहमिहत देतें है और जिदंगियों से खिलवाड़ करवातें है। चंद चांदी के सिक्कों की खतिर बसों के परिचालक बसों में अपेक्षा से अधिक यात्रियों को बिठाते है और खुद मौत को निमंत्रण देते हैं। प्रतिदिन सडकों पर ओवरलोडिंग बसें सरपट दौड़ती रहती है मगर प्रशासन आखें बंद करके सोया रहता है जब हादसा हो जाता है तब इसकी कुभंकरणी नींद टूटती है । प्रशासन के पहुचनें तक लोगों की सासें खत्म हो चुकी होती है। यदि प्रशासन समय-समय पर कारवाई करता रहे तों इन हादसों पर लगाम लग सकती है। मगर ऐसा नहीं होता ।समझ से परे है कि प्रशासन जितना पैसा राहत कार्यों में बांटता है यदि पहले ही सुरक्षा बरती जाए तो लोगों की अनमोल जिन्दगियां बच सकती हैं। एक व्यक्ति की लापरवाही का खामियाजा लोगों को जान देकर भुगतना पड़ रहा है। ऐसे लोगों को सजा-ए -मौत देनी चाहिए जो जानबूझकर लोगों की मौत का कारण बनते हैं। यह हादसा इतने जख्म दे गया कि लोगों को उबरने में वर्षों लग जाएगें। इसमें घरों के चिराग बूझ गये कई बच्चों के सिर से बाप का साया उठ गया तो कई माताओं व बहनों के सुहाग छिन गये, माता -पिता के बुढापे के सहारे असमय काल के गाल मे समा गए। इस हादसे मे आनी के एक परिवार के चार सदस्यों की मौत हो गई। विशेषज्ञ रिपोटों में सामने आता है कि 80 फीसदी हादसे चालकों की लापरवाही के कारण होतें है जबकि 20 फीसदी तकनीकी खराबी के कारण होतें है। हर हादसे के बाद मैजिस्ट्रेट जांच होती है मगर कुछ समय बाद यह भी ठंडे बस्ते में पड जाती है। इस हादसे में कई बच्चे भी मौत के क्रूर पंजे से बच नहीं पाए और बेमौत मारे गये। इस दर्दनाक मंजर में एक वर्षिय तकशील, दो वर्षीय अराधना, और छह वर्षीय अरमान भी चालक की लारपवाही के कारण मारे गये, यह नन्हे फूल खिलने से पहले ही मुरझा गए सदा चिरनिद्रां में सो गए। ऐसे हत्यारे चालकों को सरेआम सजा देनी चाहिए ताकि भविष्य में कीमती जाने बच सके। ऐसे हादसे क्यों नहीं रूक पा रहे है यह एक यक्ष प्रश्न बनता जा रहा है। पुलिस भी इन हादसों को रोकनें में नाकाम साबित हो रही है। पुलिस पैट्रोलिंग करने वाले भी इन दुर्घटनाओं को राकेनें में अक्षम नजर आते है। यदि इस ओवरलोडिगं बस पर शिकंजा कसा होता तो शायद यह हादसा न होता, हर चैराहे पर पुलिस होती है क्या इस पर किसी की नजर नहीं पडी। ऐसे कई सवाल है जिनका जबाब लापरवाह व बहरे हो चुके प्रशासन को देना होगा। सरकार को इन हादसों पर रोक लगानें के लिए सुधारात्मक कदम उठाने होगें मात्र मुआवजा देकर कर्तब्य की इतिश्री नहीं करनी चाहिए। ऐसे चालकों पर हत्या का मामला दर्ज करना चाहिए। परिवहन विभाग को भी ऐसे चालकों के लाईसैसं रद्द करने चाहिए तथा बसों के रूट परमिट भी बंद कर देने चाहिए। सरकार को चाहिए कि क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों को भी निर्देश दिए जाएं कि बस अड्डे पर प्रत्येक बस की रूटिन चैकिगं की जाए तथा बीच में भी छापामारी की जाए ताकि दोषी चालको के विरूध मौके पर चालान काटा जाए। ऐसे हादसों से जनमानस खौफजदा होता जा रहा है। यदि प्रशासन सक्रिय होगा तो ऐसे बेलगाम चालकों पर नकेल कसी जा सकती है तथा लोगों की जिन्दगियां बच सकती हैं।बसों में मोबाइ्र्रल फोन पर रोक लगाई जाए। अगर अब भी कोई कदम न उठाये तो लोग बेमौत मरते रहेगें।

 

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