कश्मीर की कल की तीन घटनाओं ने हृदय को द्रवित कर दिया है। आखिर कब तक हम यूंही आंसू बहाते रहेंगे ? क्या समस्याओं का बढ़ता सिलसिला कभी थमेगा ? मां भारती का मुकुट कश्मीर आज सार्वधिक उत्पीड़ित हो रहा है । इस भूभाग पर इस्लामिक आतंकियों व उनके गुप्त साथियों ने संभवतः “जिहाद” के सभी हिंसक-अहिंसक उपायों को अपना कर “निज़ामे-मुस्तफा” की स्थापना का एकमात्र लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। अब विचारणीय बिंदू यह है कि हमारी केंद्रीय सरकार कब इन देशद्रोहियों पर अंकुश लगाने की ठोस और निर्णायक राजनैतिक इच्छाशक्ति का परिचय करायेगीं ?
पीड़ादायक घाव
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कल 10 जुलाई की रात को अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी आक्रमण पर क्या अब भी कोई प्रतिक्रिया करेगा कि “आतंकियों का कोई धर्म नही होता” ? धार्मिक यात्रा को ध्यान में रखते हुए पूरे क्षेत्र में रेड एलर्ट व अत्यधिक सुरक्षा व्यवस्था की तैयारियां होने के उपरांत भी मज़हबी जिहादियों ने हिन्दू श्रद्धालुओं पर घात लगाकर आक्रमण करके आतंकी बुरहान बानी की वर्सी के दो दिन के अंदर अपना जिहादी कार्य पूरा किया। कौन है और क्यों है इन हिन्दू श्रद्धालुओं का शत्रु ? क्या कोई मीडिया इसका विश्लेषण करेगा ? क्या अब कोई सरकारी/ समाजिक पुरस्कार प्राप्त ढोंगी सेक्युलर व मानवतावादी अपने सम्मान को लौटाएगा ? अनेक पीड़ा दायक प्रश्न एक साथ घाव कर रहें है, पर समाधान कोई नही ? केवल निंदा, भर्त्सना और केंडल मार्च से क्या भारत भूमि को उसके ही भक्तों के लहू से लहूलुहान होने से बचाया जा सकता है ? क्या जीवन के मूल्य का आंकलन रुपयों में करके धर्म के लिये बलिदान हुई हुतात्माओं को मोक्ष मिल जायेगा
सुरक्षा का महत्व तो समझो
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जम्मू कश्मीर के मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया है कि 9 अप्रैल को श्रीनगर संसदीय उपचुनाव के समय जीप पर बांध कर मानव ढाल बनाये गए एक पत्थरबाज युवक फारुक अहमद डार को दस लाख का मुहावज़ा दिया जाय। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सैकड़ों नागरिको की जान बचाने वाले मेजर गोगोई की राष्ट्रभक्ति व कर्तव्यपरायणता को संदेहात्मक करने का कुप्रयास करके उनके इस कृत्य को श्री बिलाल नाजकी (अध्यक्ष, जम्मू कश्मीर मानवाधिकार आयोग) आपराधिक समझ रहें है। क्या इस प्रकार सेना व सुरक्षाबलों का मनोबल तोड़ कर राष्ट्र को आतंकवाद मुक्त कर पायेगें ? भारतीय सेना के पराक्रमी मेजर नितिन लितुल गोगोई की सूझ-बूझ की जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी कम है। सेना ने उनके इस साहसिक कूटनैतिक कार्य के लिये उनको सम्मानित करके सभी राष्ट्रवादियों का गौरव बढ़ाया है।जिस प्रकार हम चुनावों में विजयी उम्मीदवारों का अभिनंदन करने में कोई कमी नही करते और स्थान स्थान पर बोर्ड लगा कर उनका महिमा मंडन करते रहते है, उसी प्रकार सेना व अन्य सुरक्षाबलों का सम्मान उनके समय समय पर किये गए साहसिक कार्यों पर हम सभी राष्ट्रभक्तों को भी अवश्य करना चाहिये ? इससे हमारे सभी सुरक्षाकर्मियों को प्रोत्साहन मिलेगा और उनका मनोबल भी बढ़ेगा।
परंतु अब यह विचार करना ही होगा कि मानवाधिकार आयोग और ऐसे ही अन्य आयोग जिनकी अनेक आतंकवादी घटनाओं में विवादित भूमिका रहती है कि क्या कभी राष्ट्रहित में भी सक्रियता देखी गई है ?
सच तो जानों**
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संदीप शर्मा उर्फ “आदिल ” यह मुज़फ्फरनगर के उस आतंकवादी का नाम है है जो कश्मीर में पकड़ा गया है और आज सभी मुख्य समाचार पत्रों की सुर्खियों में है। कुछ समाचार पत्र इसे धर्म से “हिन्दू” ही मानकर लश्करे तोइबा का सक्रिय आतंकी मान रहें है। जबकि वास्तविकता कुछ और हो सकती है ? यह लड़का एक मुस्लिम लडक़ी के प्यार में भी फंसा हुआ था या फंसाया गया था और फिर ये जम्मू-कश्मीर चला गया । संभव है कि इसका धर्मांतरण करवा कर संदीप से आदिल बनकर मुसलमान बनाया गया हो। क्योंकि दैनिक जागरण में छपे समाचार के अनुसार इसके भाई प्रवीण ने दुख प्रकट करते हुए कहा कि “भाई (संदीप) ने ब्राह्मण होते हुए धर्म परिवर्तन का घिनौना कार्य किया है।”
प्रायः देश विदेश के अनेक स्थानों पर इस्लामिक स्टेट आदि आतंकी संगठन दौलत व जन्नत में हूरों का लालच देकर गैर मुस्लिम युवकों को मुसलमान बना कर आतंकी बना रहे है। परंतु अभी संदीप से आदिल बनने की पुष्टि होनी शेष है। ध्यान देना होगा कि बहुचर्चित/विवादित “इशरत जहां कांड 2004” में भी इसी प्रकार एक हिन्दू ‘प्रणेश पिल्लै’ जो इशरतजहां का दोस्त था, को भी “जावेद शेख” मुसलमान बनाकर आतंकी बनाया गया था । ये अपने दो और पाक/कश्मीर आतंकी साथियों के साथ अहमदाबाद में श्री नरेन्द्र मोदी जी को लक्ष्य बनाने की इच्छा से (15 जून 2004) गये थे। परंतु गुजरात पुलिस की सजगता से वह सब जन्नत पहुचायें गये। ये चारों भी लश्करे-ए-तोइबा से संबंधित थे।
अतः यह कहना व सोचना उचित नही कि ‘जिहाद’ में सक्रिय आतंकी कोई गैर मुस्लिम भी हो सकता है ? उसके छदम नाम या उर्फ नाम की गहरी जांच पड़ताल हो तो सत्यता सामने आ जायेगी ? वैसे भी पकड़े गये आतंकियों के कई कई छदम/उर्फ नाम होना सामान्य बात है।
विनोद कुमार सर्वोदय