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बाल श्रम के कलंक से मुक्ति कब? - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
स्निग्धा श्रीवास्तव मैं उसका नाम नहीं जानती। लेकिन अकसर अपने घर से मेट्रो तक आने-जाने के दौरान उसे सड़कों से पालीथिन, कागज, प्लास्टिक और लोहे के टुकड़ों को बीनते देखती हूं। अगर हम अपने आसपास नजर दौड़ाएं, तो रेस्टोरेंट, ढाबों, दुकानों और अन्य जगहों पर बच्चे काम करते हुए मिल…