कब मिलेगा न्याय

0
275


संविधान की व्याख्या के अनुसार भारत सरकार के तीन प्रमुख अंगों मंे व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के अधीन विभिन्न मंत्रालय और विभाग कार्यरत हैं । चूॅंकि नैसर्गिक न्याय से बढकर कुछ नहीं, अतः न्यायपालिका की कार्यकारी और महती भूमिका का जनतंत्र पर प्रभावी होना बहुत जरूरी है । संविधान के अनुसार भले ही दस गुनाहगार मुक्त हो जावें लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए की तर्ज पर अग्रसर भारत की न्यायपालिका के कार्य-कलापों की ओर नजर डालने पर जो आॅंकडे सामने आते हैं, उन पर लंबी अवधि में सकारात्मक उम्मीद रखना के अलावा और कोई चारा नहीं दिखता है क्योंकि पूरे भारत में विभिन्न न्यायलयों में जारी और लंबित मामलों की फेहरिस्त बहुत लंबी हो चली है।
पिछले साल सितम्बर माह में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के नाम से एक पब्लिक पोर्टल प्रारंभ किया है, जिसके माध्यम से पूरे भारत की निचली अदालतों में लंबित मामलों पर आसानी से नजर डाली जाकर उनका अवलोकन किया जा सकता है ।
विभिन्न माननीय न्यायलयों में लंबे समय से जजों के खाली पडे पदों पर एक नजर डालें तो हमें पता चलेगा कि सुप्रीम कोर्ट में जजों के 5 पद, हाईकोर्ट में 464 पद तथा जिला अदालतों मंे जजों के 4,166 पद रिक्त हैं ।
फरवरी, 2016 की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के पास सिविल के 48,418 और क्रिमिनल केसेस की संख्या 11,050 है । पिछले दस सालों के आॅंकडों पर नजर डालें तो सिविल के 1,132 और क्रिमिनल के 84 प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में ही लंबित हैं ।
हाईकोर्ट के विवरणों पर नजर डालें तो पता चलता है कि जनवरी, 2015 की स्थिति में सिविल के 31,16,492, क्रिमिनल के 10,37,465 प्रकरण हाईकोर्ट्स में लंबित हैं । पिछले दस सालों के आॅंकडे देखें तो पता चलेगा कि हाईकोर्ट में सिविल के 5,89,631 और क्रिमिनल के 1,87,999 प्रकरण अब तक लंबित हैं।
राज्यवार विवरणों पर नजर डालें तो प्रथम पाॅंच राज्यों – यूपी, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार और बंगाल की जिला अदालतों में यथाक्रम 53,63,613, 31,54,681, 21,98,280, 14,33,511 और 13,42,122 प्रकरण सुनवाई हेतु लंबित हैं ।
अकेले यूपी, बिहार और महाराष्ट्र ये तीन राज्य ऐसे हैं, जहाॅं महिलाओं और सीनियर सिटिजन द्वारा दर्ज मुकदमों की लंबित संख्या पूरे भारत में सर्वाधिक 3.19 फीसदी है । इनमें केवल महिलाओं द्वारा दर्ज मुकदमों की संख्या 20 लाख से अधिक है जो कि कुल लंबित प्रकरणों का 9.6 फीसदी है ।
अदालतों में इतनी बडी संख्या में लंबित मुकदमों की वजह राज्य और केन्द्र के कानूनों में विसंगति, साधारण सिविल अधिकार क्षेत्र के मुकदमों का उॅंची अदालतों में लगातार चलना, जजों के खाली पद, विभिन्न न्यायिक फोरम द्वारा पारित निर्णयों के खिलाफ उॅंची अदालतों में अपील, पूर्व की लंबित अपील, कार्य-स्थगन की पुनरावृत्ति, अविवेकी और अव्यवस्थित याचिका तथा उनकी निगरानी की यथोचित व्यवस्था का अभाव, सुनवाई हेतु प्रकरणों को चिन्हित और उनका समुचित एकत्रीकरण न कर पाना हो सकता है ।
न्याय व्यवस्था में गति और स्वच्छता लाने के लिये विधि और न्याय मंत्रालय तथा इलेक्ट्राॅनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त प्रयासों द्वारा हाल ही में प्रायोगिक तौर पर यूपी और बिहार में 1000 सामान्य सेवा केंद्रों की स्थापना की है, जिनके जरिये टेली-लाॅ प्रणाली का उद्घाटन किया गया है । इसका ध्येय अलग-थलग पडे समुदायों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को कानूनी सहायता आसानी से उपलब्ध कराना होगा । डिजिटल इंडिया के तहत ये दोनों मंत्रालय पूरे भारत में पंचायत स्तर पर गठित सामान्य सेवा केन्द्रों का इस्तेमाल करेंगे ।
कार्यक्रम के अनुपालन में टेली-लाॅ नाम का एक पोर्टल आरंभ किया जाएगा जो समूचे सामान्य सेवा केन्द्रों के नेटवर्क पर उपलब्ध होगा । इसकी सहायता से नागरिकों को कानून सेवा प्रदाताओं के साथ जोडा जाएगा । इसके जरिये लोग वीडियो काॅफ्रेंसिंग की सहायता से वकीलों से कानून मदद प्राप्त कर सकेंगे । आगे चलकर लाॅ स्कूल क्लीनिक, जिला विधि सेवा प्राधिकारियों, स्वयं सेवी सेवा प्रदाताओं और कानूनी सहायता एवं अधिकारिता के क्षेत्र में सेवा दे रहे गैर सरकारी संगठनों को भी इस पोर्टल के माध्यम से दायरे में लाकर उनका पैनल तैयार किया जा सकेगा, जो आवेदकों को वीडियो कांॅफ्रंेसिंग के जरिये कानूनी सलाह प्रदान करेंगे ।
उम्मीद है, भारत सरकार द्वारा इस ओर किये जा रहे सराहनीय प्रयासों के सार्थक और उत्साहवर्धक नतीजे हम सभी को नजर आयेंगे । इस नवोन्मेषी योजना का अभिप्राय तभी सिद्ध हो सकेगा, जब इसके प्रायोगिक परिणाम सकारात्मक रूप में हम सबके सामने आयेंगे । सरकार की इस सराहनीय पहल को सफल बनाना हम सबका फर्ज है । आईये इस योजना का अधिक से अधिक लाभ उठावें ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here